रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने गत सप्ताह एक जलवायु सम्मेलन में कहा कि एक दशक के भीतर एक किलोग्राम हरित हाइड्रोजन एक डॉलर में तैयार की जा सकेगी। यह संभव हुआ तो ऊर्जा क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव आएगा। इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और व्यापार संतुलन भी बेहतर होगा। परंतु इस दिशा में होने वाले प्रयासों में इंजीनियरिंग संबंधी तमाम दिक्क्तें हमारे सामने आएंगी।
चुनौतियां कई हैं। देखना होगा कि यह काम कितने बड़े पैमाने पर होगा, अनेक नई तकनीक अपनानी होंगी, वितरण शृंखला पर काम करना होगा और भंडारण की व्यवस्था बनानी होगी। यदि इन दिक्कतों को दूर कर लिया गया तो अगली चुनौती बड़ी कीमत चुकाने की होगी क्योंकि भारत ऊर्जा संसाधनों के क्षेत्र में अत्यंत पीछे है और वह कार्बन उत्सर्जन करने वाली बिजली का उत्पादन अधिक करता है। देश अपने कच्चे तेल का 85 फीसदी आयात करता है और जरूरत की गैस का 50 फीसदी वह आयात करता है। देश में घरेलू रूप से उत्पादित कोयला जलाकर भी ताप बिजली परियोजनाएं चलाई जाती हैं। ऐसा करके ही 65 फीसदी बिजली उत्पादित होती है। देश के सकल घरेलू उत्पाद के साथ ही बिजली की मांग बढ़ेगी।
‘हरित हाइड्रोजन’ नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का एक अहम घटक होगी। इससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी। मौजूदा 100 मेगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा बिल्कुल नहीं है। यदि अंबानी की योजना फलीभूत होती है तो अकेले आरआईएल ही सन 2030 तक 100 मेगावॉट हाइड्रोजन आधारित क्षमता विकसित कर लेगी। यह देश की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का करीब एक तिहाई होगा। हाइड्रोजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया के जरिये पानी में करेंट के माध्यम से इसे आसानी से हासिल किया जा सकता है। जब हाइड्रोजन ऑक्सीजन के साथ दोबारा मिलती है तो वह पानी के उत्सर्जन के साथ बिजली उत्पन्न करती है। यदि इलेक्ट्रोलिसिस को नवीकरणीय ऊर्जा के साथ किया जाए तो यह पूरा चक्र कम कार्बन उत्सर्जन वाला होता है और पर्यावरण पर बहुत कम असर डालता है। परिवहन के अलावा हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा माध्यमों से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली के भंडारण के लिए भी बेहतर साबित हो सकती है। सौर और पवन ऊर्जा में निरंतरता नहीं होती और कई बार इनसे कोई बिजली नहीं उत्पन्न होती तो कई बार ये अतिरिक्त बिजली का उत्पादन करते हैं। अतिरिक्त बिजली की मदद से हाइड्रोजन का इलेक्ट्रोलिसिस हो सकता है और इसे भंडारित कर सकते हैं। यह पारंपरिक लिथियम आयन बैटरियों से बेहतर विकल्प है। इसका भंडारण लंबी अवधि के लिए हो सकता है और कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है।
एक किलो हाइड्रोजन में एक किलो डीजल से करीब तीन गुना अधिक ऊर्जा होती है। परंतु हल्की होने के कारण सामान्य घनत्व पर एक किलो हाइड्रोजन को 11,000 लीटर जगह चाहिए जबकि एक किलो डीजल को केवल एक लीटर। इसके भंडारण और वितरण के लिए विशेष टैंकों में संकुचित करके रखना होगा या 250 डिग्री सेल्सियस ऋणात्मक दर पर तरल बनाना होगा। यह प्रक्रिया सीएनजी और एलपीजी के प्रबंधन से ज्यादा जटिल होगी। बिजली की कीमत के अनुसार हरित हाइड्रोजन प्रति किलोग्राम 3.5 डॉलर से 6.5 डॉलर मूल्य पर उत्पादित हो सकती है। आरआईएल का कहना है कि इसे नई तकनीक के जरिये पहले दो और फिर एक डॉलर प्रति किलो पर लाया जा सकता है। सौर और पवन ऊर्जा की लागत में उचित नीतिगत मदद के साथ हम ऐसी गिरावट देख चुके हैं। साथ ही यह भी मानना होगा कि भंडारण की ऐसी सुविधा विकसित हो सकेगी जहां हाइड्रोजन ऊर्जा का वाणिज्यिक इस्तेमाल हो सकेगा। सस्ती हरित हाइड्रोजन के कई लाभ होंगे। इस क्षेत्र में नीतियां तकनीक निरपेक्ष होनी चाहिए। प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जो उद्यमी इस नए क्षेत्र में स्टार्टअप लाना चाहते हों उन्हें जरूरी फंड जुटाने में सक्षम बनाया जाना चाहिए।