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  लेख  ‘नव समाजवाद’: तकनीक में सरकार की बढ़ती पैठ
लेख

‘नव समाजवाद’: तकनीक में सरकार की बढ़ती पैठ

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —December 14, 2021 11:33 PM IST
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समाचार एजेंसी रॉयटर्स में हाल में प्रकाशित एक खबर में कहा गया था कि भुगतान सेवा प्रदाता कंपनी वीजा ने अमेरिका की सरकार से कथित भेदभावपूर्ण व्यवहार के लिए भारत की शिकायत की है। खबर के अनुसार वीजा की शिकायत है कि भारत सरकार ‘अनौपचारिक एवं औपचारिक’ रूप से घरेलू भुगतान कंपनी रुपे को ‘अनुचित लाभ’ पहुंचा रही है। वीजा की प्रतिस्पद्र्धी कंपनी मास्टरकार्ड ने भी 2008 में आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुपे को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रवाद का सहारा ले रहे हैं। मोदी ने 2018 में कहा था कि रुपे का इस्तेमाल करना एक तरह से देशभक्ति का प्रदर्शन करना है क्योंकि सभी लोग देश की सुरक्षा के लिए सीमाओं पर नहीं जा सकते हैं। उन्होंने कहा था कि रुपे कार्ड का इस्तेमाल भी देश सेवा का एक माध्यम हो सकता है। पिछले वर्ष केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मल सीतारमण ने कहा था कि बैंकों को केवल रुपे कार्ड जारी करना चाहिए। रुपे के अलावा भारत सरकार ने यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) को बढ़ावा दिया है और इस पहल को शानदार सफलता भी मिली है। दुनिया भर में यूपीआई की सफलता ने सबका ध्यान आकृष्ट किया है। इस समय देश में 69 करोड़ रुपे कार्ड हैं जिनके माध्यम से पिछले वर्ष 1.3 अरब लेनदेन हुए थे। दूसरी तरफ यूपीआई से अकेले पिछले महीने 4.2 अरब लेनदेन हुए हैं। नवंबर 2020 तक भारत में जितने डेबिट और क्रेडिट कार्ड जारी हुए हैं उनमें 63 प्रतिशत रुपे कार्ड हैं। 2017 में इसकी हिस्सेदारी मात्र 15 प्रतिशत थी। वीजा की शिकायत है कि भारत सरकार की ‘औपचारिक एवं अनौपचारिक’ नीतियों की वजह से रुपे को फायदा हो रहा है।
इससे भी एक कदम और आगे जाते हुए मोदी सरकार ने 1 जनवरी, 2020 से रुपे डेबिट कार्ड और यूपीआई के इस्तेमाल पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) समाप्त कर दिया। ग्राहक जब कार्ड के जरिये भुगतान करते हैं तो कारोबारी प्रतिष्ठान संबंधित बैंक को एमडीआर का भुगतान करते हैं। जब कोई ग्राहक मास्टरकार्ड या वीजा डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करता है तो कारोबारी प्रतिष्ठानों को 0.4 से 0.9 प्रतिशत एमडीआर का भुगतान करना होता है। मोदी के इस निर्णय से रुपे को बढ़ावा मिला क्योंकि इसका इस्तेमाल कर कारोबारी प्रतिष्ठानों को एमडीआर का भुगतान नहीं करना होगा। सालाना 50 करोड़ रुपये से अधिक कारोबार करने वाली सभी भारतीय कंपनियों के लिए रुपे कार्ड से भुगतान का विकल्प देना अनिवार्य है।
भारत जैसे देश में पहल तो कई हुई हैं मगर तकनीकी बाधा, देरी एवं भ्रष्टाचार की वजह से वे अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाई हैं। इस पृष्ठभूमि में रुपे और यूपीआई की सफलता सराहनीय और कुछ हद तक हैरान करने वाली हैं। भारत के लोग शक्तिशाली कंपनियों वीजा, मास्टरकार्ड, पेपाल और अन्य वैश्विक वित्त-तकनीक (फिनटेक) कंपनियों के बीच रुपे और यूपीआई की सफलता पर गर्व की अनुभूति करते हैं। उपभोक्ताओं के नजरिये से देखें तो वे मध्यस्थ पर आने वाले खर्च एवं अन्य झंझट से निजात दिलाने वाले डिजिटल भुगतान ढांचे को एक बड़ी सफलता मानते हैं। मगर सरकार का सीधा हस्तक्षेप, भले ही वह कितना प्रभावी और लाभकारी क्यों न हो, एक महत्त्वपूर्ण बात छुपा लेता है। सत्ता में आने से पहले मोदी ने बार-बार कहा था कि सरकार को बाजार और कारोबार में एक सीमा से अधिक दखल नहीं देना चाहिए। मगर प्रधानमंत्री के इस नजरिये के संदर्भ में देखें तो निजीकरण प्रक्रिया को अब तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। केवल एयर इंडिया ही इसका एक अपवाद है।
अधिक आकर्षक कारोबार में रुचि दिखाने में किसी भी राजनीतिज्ञको शायद अधिक आनंद आता है। खासकर, जब वह सरकार में होता है तो उसकी दिलचस्पी और बढ़ जाती है। नेहरू सरकार ने अपने समय में अभियांत्रिकी और लौह एवं इस्पात कारोबार में सरकार का दखल बढ़ाया था। इसी तरह, मोदी फिलहाल अधिक आकर्षक एवं तेजी से बढऩे वाले डिजिटल भुगतान कारोबार में सरकार का दखल बढ़ाना चाह रहे हैं। आलोचकों का एक बड़ा खेमा निजी पूंजी निवेश को पूर्ण स्वतंत्रता देने के लिए भारत की आर्थिक नीतियों को ‘नव-उदार’ मानता है मगर मैं उन्हें तकनीक खंड पर एक बार विचार करने का सुझाव दूंगा। यह सरकार एक के बाद एक तकनीकी पहल कर रही है जिससे नव-समाजवादी गौरवान्वित और निजी इक्विटी निवेशक ईष्र्या का अनुभव करेंगे।
दवा कारोबार में अमूमन निजी क्षेत्र का दखल होता है। इस खंड में निजी इक्विटी समर्थित ई-फार्मेसी एवं चिकित्सा परामर्श वेबसाइट जैसी 1एमजी, नेटमेड्स एवं फार्मईजी, प्रैक्टो और डॉकप्राइम जैसी कंपनियों की मौजूदगी है मगर सरकार यहां भी पीछे नहीं है। उसके दिमाग में टेलीमेडिसन मंच ईसंजीवनी डॉट इन शुरू करने की बात आई। यहां कोई भी पंजीयन कराकर चिकित्सक से परामर्श लेकर सलाह डाउनलोड कर सकता है। सरकार ने ‘प्रधामनंत्री जन औषधि केंद्र’ की भी शुरुआत की है। इन केंद्रों से जेनेरिक दवाएं खरीदी जा सकती हैं।
पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी में पांबदी के दौरान सरकार ने बिग बास्केट का एक देसी संस्करण शुरू किया था। ग्रामीण स्तर पर शुरू किया गया यह ऑनलाइन खुदरा मंच ऑनलाइन और ऑफलाइन ऑर्डर लेकर लोगों को उनके घरों तक सब्जी, दूध, दलहन, फल और अन्य उत्पाद पहुंचा रहा था। यह महत्त्वाकांक्षी योजना साझा सेवा केंद्रों के जरिये चल रही है। साझा सेवा केंद्र गांवों में सरकार द्वारा की गई एक डिजिटल पहल है जो करीब 3,80,000 केंद्रों से 60 करोड़ से अधिक लोगों को जरूरी सेवाओं में मदद करती है।
यूपीआई और रुपे के अलावा सरकार ने भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) नाम से भुगतान सुविधा शुरू की है। पहले भीम के साथ एक बैंक खाता जोडऩे की अनुमति थी मगर 2019 में एक अधिकारी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया कि ‘भीम का अगला संस्करण निजी भुगतान कंपनियों को कड़ी टक्कर देगा।’
दो वर्ष पहले भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीएल) ने भारत बिल पे सिस्टम (बीबीपीएस) की शुरुआत की थी। यह सभी सेवा कंपनियों को हरेक महीने नियमित भुगतान करने का एक समोवशी मंच था। उसी समय बीबीपीएस के माध्यम से केवल पांच सेवाओं-डाइरेक्ट-टू-होम, बिजली, गैस, दूरसंचार और पानी बिलों- के लिए भुगतान किए जा सकते थे। फिर एक दिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा, ‘बीबीपीएस का लाभ उठाने और इसकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए सभी श्रेणियों के बिलर (प्री-पेड रीचार्ज को छोड़कर) को बीबीपीएस पर आने की अनुमति दे दी गई है।’ यह निजी भुगतान कंपनी बिलडेस्क के लिए सीधा झटका था।
एक समाचार पोर्टल ने इसे वित्त-तकनीक खंड के ‘समाजीकरण’ का नाम दिया। रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने देश भर में ब्रॉडबैंड ढांचा खड़ा करने के लिए अरबों रुपये खर्च किए हैं मगर सरकार यहां भी अपनी भूमिका निभानी चाहती थी। उसने देश के सभी 2,50,000 ग्राम पंचायतों में न्यूनतम 100 एमबिट/एस ब्रॉडबैंड संपर्क देने के लिए 7.1 अरब डॉलर निवेश करने का निर्णय ले लिया। देश के करीब 6,25,000 गांव इस योजना की जद में आएंगे। देश में जब ब्रॉडबैंड की पहुंच कमजोर थी तो पिछली सरकार ने इस योजना का खाका खींचा था मगर मोदी सरकार ने इसके क्रियान्वयन पर पूरा जोर दे दिया।
मैं इनमें किसी भी कदम का समर्थन या विरोध नहीं करता हूं। मैं केवल इस ओर ध्यान दिला रहा हूं कि सरकार भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल), शिपिंग कॉर्पोरेशन और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बेचना चाह रही है मगर वित्त-तकनीक क्षेत्र में उसने अपनी पकड़ बनाने में पूरी ताकत झोंक दी है। इन बातों का सूचना संग्रह एवं निजता पर भी असर होगा।
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं) 

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