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  लेख  गाल बजाना छोड़ बुनियादी ढांचे में निवेश करे सरकार
लेख

गाल बजाना छोड़ बुनियादी ढांचे में निवेश करे सरकार

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 11, 2008 9:19 PM IST
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आम चुनाव को 6 महीने या कहें तो उससे भी कम समय बचा है। केंद्र सरकार से उम्मीद की जानी चाहिए थी कि वह तमाम बड़ी योजनाएं और परियोजनाओं की घोषणा करेगी।


भारतीय अर्थव्यवस्था अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, इसलिए भी उम्मीद की जा रही है कि सरकार विभिन्न क्षेत्रों में निवेश कर निराशा का माहौल दूर करने की कोशिश करेगी। खासकर बड़ी परियोजनाओं में निवेश करने से नौकरियों का सृजन होगा और मांग में बढ़ोतरी होगी।

यह बात लोगों को आश्चर्यचकित करती है कि सरकार इस मामले में करीब करीब शांत बनी बैठी है। किसी भी वृहत परियोजना के बारे में कोई फैसला नहीं लिया जा रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंत्रिमंडल और आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) की पिछली बैठक 6 नवंबर को हुई, इस पर नजर डालने से आपको स्पष्ट हो जाएगा कि केंद्र सरकार की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था की सोच क्या है।

सरकार के राजनीतिक नेतृत्व की सोच और भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति में कोई तालमेल नहीं है। यह अंतर इतना ज्यादा है कि  इसको नजरअंदाज किया ही नहीं जा सकता।
कैबिनेट ने 6 नवंबर को अफगानिस्तान के संसद भवन और भारतीय दूतावास परिसर के निर्माण के लिए 950 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दे दी।

इसके साथ ही,  बंदरगाहों और डॉक पर काम करने वालों को उत्पादकता पर आधारित नकद प्रोत्साहन राशि बढ़ाने, राष्ट्रीय जैव विविधता योजना को मंजूरी, भारत और हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र में सजायाफ्ता  लोगों को एक दूसरे देश को सौंपे जाने को मंजूरी देने का फैसला किया।

सीसीईए की बैठक में हुए विचार विमर्श और किए गए फैसलों से उम्मीद की एक किरण जरूर निकलती है। सीसीईए ने सिक्किम में 53 किलोमीटर लंबी ब्रॉड गेज रेलवे लाइन बनाने के लिए 1339 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय योजना को मंजूरी दी।

अरुणाचल प्रदेश में 574 करोड़ रुपये की 110 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना, कोच्चि स्थित वल्लारपदम टर्मिनल के तलकर्षण (ड्रेजिंग) के लिए 381 करोड़ रुपये, 350 करोड़ रुपये के जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान कार्यक्रम जिसमें उद्योग जगत से साझेदारी की गई है, और कुछ सीमाओं पर स्थित चेकपोस्ट की योजनाओं और शैक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों के लिए स्कूल जैसे कुछ बड़े मुद्दों पर भी सीसीईए की बैठक में विचार किया गया।

केंद्र सरकार के अधिकारियों का मानना है कि निश्चित रूप से ये फैसले यह संकेत नहीं देते हैं कि सरकार आम चुनावों से कुछ ही महीने दूर है। न तो इनसे यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए सरकार कुछ बड़ी परियोजनाओं की घोषणा कर रही है, जिससे भारतीय उद्योग जगत की जरूरतों को पूरा किया जा सके, जैसा कि उद्योगपतियों के साथ सरकार की बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट को देखते हुए मांग उठी थी।

 बहरहाल अब वे कह रहे हैं कि सरकार ने अभी तक भारतीय वित्त बाजार और पूंजी बाजार पर वैश्विक संकट के प्रभाव के बारे में ही सोचा है। इस तरह वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड उन मुद्दों से निपट रहा है जो बैंक, म्युचुअल फंड, बीमा कंपनियां और स्टॉक मार्केट को प्रभावित कर सकते हैं।

यही कारण है कि बैंकों के लिए तरलता बढ़ाने के लिए तमाम कदम उठाए जा रहे हैं। और इसी तरह के कुछ कदम अन्य वित्तीय संस्थाओं के लिए भी उठाए जा रहे हैं। यह सही है कि अंतत: इन सभी कदमों से लाभ पाने वाले सभी संभावितों में कार्पोरेट सेक्टर भी है, जो नई परियोजनाओं के लिए धन जुटा सकेगा और जो परियोजनाएं पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के अभाव में रुक गई हैं, उन्हें फिर से चालू किया जा सकेगा।

लेकिन भारत का उद्योग केवल आसानी से वित्तीय सहायता ही नहीं चाह रहा है। उसे कुछ बड़ी आधारभूत ढांचा परियोजनाओं की जरूरत है, जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर मिल सके। अगस्त 1998 में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने तमाम बड़ी आधारभूत ढांचागत परियोजनाओं की नींव डाली थी, जिनमें राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण, जिसे सामान्य रूप से ईस्ट-वेस्ट और नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर कहा जाता है और देश के बड़े हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण शामिल था।

राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं तो तेजी से शुरू हुईं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में पांच सालों तक विकास की रफ्तार बनी रही। लेकिन हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण की परियोजनाओं में वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में देरी हुई। हालांकि मनमोहन सिंह सरकार ने उसे लागू करना शुरू किया। इसके साथ ही मनमोहन सरकार ने राजमार्ग परियोजना को और विस्तार दिया।

सरकारी अधिकारी इस बात को मानते हैं कि अब कुछ और बड़ी परियोजनाओं की घोषणा की जरूरत है जैसा कि एक बार वाजपेयी सरकार ने किया था। न केवल 6 महीने में होने वाले चुनावों में लाभ पाने के लिए, बल्कि अर्थव्यवस्था के सुधार और मंदी की आफत से बचने के लिए भी यह जरूरी है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह केवल इतना कर रहे हैं कि वह बार बार यही कह रहे हैं कि भारत के बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में 500 अरब डॉलर के भारी भरकम निवेश की जरूरत है। अगर तीखे शब्दों में कहें तो चीन ने बार-बार कहने की बजाय यह कर दिखाया है। उसने चीन की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में 586 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा कर दी है।

govt should concentrate on investment in fundamental sectors
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