एक वक्त था, जब सिटीग्रुप दुनिया का सबसे अमीर बैंक हुआ करता था। लेकिन कहते हैं न, वक्त कभी एक सा नहीं रहता।
पिछले 11 महीनों की आर्थिक उथल-पुथल की वजह से उसकी संपत्ति आज 83 फीसदी तक कम हो चुकी है। ऐसे हालात में अमेरिकी सरकार का सिटीग्रुप को दिया गया बेल-ऑउट पैकेज, पिछले महीने की गई ब्रिटिश सरकार की घोषणा से काफी बेहतर है।
यह पैकेज, बैंक के नियंत्रण के साथ छेड़छाड़ किए बगैर ही उसे मुसीबतों से लड़ने में मदद करेगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि इस पैकेज ने एक ऐसे बैंक को मुसीबत से बचाया है, जिसके शेयरों की तेजी से गिरती कीमत की वजह से लोगों ने बैंक से अपने जमा पैसे निकालने शुरू कर दिए थे।
इसकी वजह से एक और बड़े बैंक के डूबने का खतरा भी टल गया है। जाहिर तौर पर यह अमेरिकी वित्त मंत्रालय, फेडरल रिजर्व और फेडरल डिपोजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन के लिए एक और व्यस्त समय होगा। इन्हीं तीनों ने मिलकर सिटीग्रुप के लिए बेल-ऑउट पैकेज तैयार किया था।
इस पैकेज की वजह से बैंक को जबरदस्त राहत मिली है। साथ ही, इसने बैंक के 306 अरब डॉलर के मुसीबत में फंसे कर्जों के लिए गारंटी मुहैया करवाकर बैंक प्रबंधन के सिर पर एक भारी बोझ उतार दिया है। इस पैकेज की वजह से बैंक की इन परिसंपत्तियों से जुड़े जोखिम भी काफी कम हो चुके हैं। इस वजह से भी बैंक की पूंजी में काफी इजाफा होगा।
डेरिवेटिव्स और हाउसिंग लोन में भारी घाटा होने की वजह से बैंक पिछले चार तिमाहियों में 20 अरब डॉलर की पूंजी गंवा चुका है। साथ ही, इसने 24 अरब डॉलर के घाटे के लिए भी तैयारी कर ली है। ऐसे में इस गारंटी (बेस स्लैब पर 100 फीसदी की और उसके बाद 90 फीसदी की) की वजह से लोगों का भरोसा फिर से बैंक पर जम सकेगा।
वैसे, इससे शेयरधारकों को काफी चोट लगी है। पहले से ही बाजार के हाल से वे बेहाल हैं। ऊपर से, इस बेल-ऑउट पैकेज में तीन साल तक के लिए सिर्फ एक फीसदी तक का लाभांश देने की सीमा बांध दी गई है। दूसरी तरफ, बैंक सरकार से मिले 25 अरब डॉलर के प्रिफ्रेंशियल कैपिटल पर आठ फीसदी की दर से ब्याज चुकेगा।
हालांकि, इस सबके बावजूद अगर अंत में शेयरों की कीमत पहले के स्तर पर आ गया, तो वह सबके लिए अच्छा रहेगा। इस पैकेज के तहत प्रबंधन में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इसीलिए विक्रम पंडित की कुर्सी पर कोई खतरा नहीं है, लेकिन टॉप मैनेजरों को अपनी वेतन में कटौती को अपनाना ही होगा।
असल में यह सरकार के बेल-ऑउट प्लान की अहम शर्त है। इस पूरी कसरत के बाद सरकार के पास सिटीग्रुप के आठ फीसदी शेयर तो होंगे, लेकिन प्रबंधन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
अगर यहां के बाद बैंक के साथ सब अच्छा होता है, तो सरकार के पास मुनाफा कमाने का मौका होगा। लेकिन इसके लिए उसे शेयरों की मौजूदा कीमत में दोगुने इजाफे का इंतजार करना होगा।
वैसे, इस पैकेज ने अमेरिकी वित्त बाजार के बारे में बड़े सवाल तो उठा ही दिए हैं। पंडित हर मोड़ पर कहते आए कि बैंक की हालत काफी मजबूत है, जो एक सफेद झूठ था।
दिक्कत पैदा हुई बैंक का बड़े स्तर पर टे्रडिंग में उतरने की वजह से, जबकि जोखिमों को ध्यान में नहीं रखा गया। यह दिखलाता है अंदरूनी प्रबंधन की घटिया के बारे में, जो कई सारे सवालों को भी जन्म देता है।