सन 2021-22 का आम बजट जो गत 1 फरवरी को संसद में पेश किया गया था, उसमें केंद्र सरकार की उस महत्त्वाकांक्षी योजना को रेखांकित किया गया है जिसके मुताबिक वित्त वर्ष 2020 और 2025 के बीच अधोसंरचना क्षेत्र में 111 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की बात कही गई है। छह महीने बाद अगस्त 2021 में नीति आयोग ने ‘नैशनल मॉनिटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी)’ शीर्षक से एक अध्ययन जारी किया। पहले खंड में एनएमपी दस्तावेज यह रेखांकित करता है कि वित्त वर्ष 2021-2025 के बीच निजी स्रोतों से 6 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई जाएगी। इसके लिए सरकारी परिसंपत्तियों को पट्टे पर दिया जाएगा। एनएमपी के दूसरे खंड में उस राशि का ब्योरा है जो हर श्रेणी की परिसंपत्तियों से आने वाली है। भारतीय बुनियादी परियोजनाओं के वित्त पोषण में आमतौर पर 20 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की, 55 फीसदी राज्य सरकारों, बैंकों, गैर बैंकिंग निकायों और बॉन्ड की होती है जबकि शेष 25 फीसदी राशि इक्विटी भागीदारी तथा अन्य नवाचारी वित्तीय उपायों से जुटाई जाती है। फंडिंग स्रोतों की यह हिस्सेदारी परियोजनाओं के मुताबिक अलग-अलग हो सकती है। अनुमान है कि एनएमपी अगले चार वर्षों में सरकार के अनुमानित बुनियादी ढांचा व्यय में बमुश्किल 5.4 फीसदी योगदान करेगी। बहरहाल, छोटी से छोटी मदद भी काम आती है।
एनएमपी के तहत सरकार कई तरह की परिसंपत्तियों को बेचने के बजाय उन्हें पट्टे पर देगी। टोल रोड, रेलवे स्टेशन और बिजली पारेषण से जुड़ी परिसंपत्तियों को पट्टे पर देने से एनएमपी के 6 लाख करोड़ रुपये के क्रमश: 27,25 और 15 फीसदी के बराबर फंड प्राप्त होने की आशा है। यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर सरकारी परिसंपत्तियों को कितने लंबे समय के लिए पट्टे पर दिया जाएगा। उदाहरण के लिए टोल रोड को पट्टे पर देने की अवधि रेलवे स्टेशन को निजी प्रबंधन को सौंपने की अवधि से अलग हो सकती है। यह भी संभव है कि निजी पक्ष अपने फायदे को बढ़ाने के लिए लंबी अवधि के लिए पट्टा चाहें। एनएमपी के पक्ष में दलील शायद केवल इतनी नहीं है कि सार्वजनिक परिसंपत्तियों से प्रतिफल हासिल किया जाए बल्कि इससे यह संकेत भी निकलेगा कि सरकारी कंपनियों के प्रबंधन को बेहतर बनाया जाए।
हम नीचे कुछ आंकड़े दे रहे हैं जो विशुद्ध रूप से व्याख्या के लिए हैं। किसी सड़क को 10 वर्ष के लिए पट्टे पर लेने के लिए निजी पक्ष सरकार को 60 रुपये अग्रिम रूप से चुकाती है, बशर्ते कि 10 वर्षों के लिए राजस्व के मौजूदा मूल्य पर 100 रुपये होने का अनुमान हो। निजी क्षेत्र का आकलन यह हो सकता है कि 10 रुपये की राशि शुरुआती पूंजी निवेश के लिए जरूरी होगी। 10 रुपये की अतिरिक्त राशि वैधानिक लागत समेत जोखिम के बचाव के लिए रख दी जाएगी और 20 रुपये की राशि मुनाफे के रूप में अलग रख दी जाएगी। सार्वजनिक हित में ऐसी सरकारी परिसंपत्तियों को पट्टे पर देना होगा क्योंकि सरकार को शुरुआती निवेश वाली 10 रुपये की राशि की आवश्यकता होगी। बहरहाल, एनएमपी के अधीन काफी हद तक यह भी संभव है कि निजी कंपनियां बेहतर संचालन वाली और मुनाफे में चल रही सरकारी परिसंपत्तियों को चुनेंगी जिनमें किसी शुरुआती निवेश की आवश्यकता नहीं होगी।
एनएमपी के प्रस्ताव में जो विचार पेश किया गया है उसके पीछे एक विचार यह है कि सरकारी क्षेत्र का प्रबंधन काफी हद तक अक्षम है और निजी क्षेत्र ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करेगा। 21वीं सदी के पहले दशक में निजी-सार्वजनिक भागीदारी के कमजोर प्रदर्शन के कारण बहुत खराब अनुभव रहे। कई निजी कंपनियां जिन्होंने सरकारी बैंकों से भारी भरकम कर्ज लिया था वे अपनी देनदारी में चूक गईं। कुछ मामलों में ऋण डिफॉल्ट निस्तारण प्रक्रिया में परिसंपत्तियों को उनके मूल्य के 10 फीसदी से भी कम में बेचना पड़ा। सरकार ने ऋणशोधन निस्तारण के लिए राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) की स्थापना की बात की। सरकार ने 30,600 करोड़ रुपये की गारंटी एनएआरसीएल द्वारा जारी की जाने वाली सुरक्षा प्राप्तियों के लिए दी है ताकि असुरक्षित ऋण का अधिग्रहण किया जाए। जाहिर है अतीत में डिफॉल्ट करने वालों को एनएमपी के तहत किसी भी पट्टे की बोली नहीं लगाने दी जाएगी।
एनएमपी अचल संपत्ति निवेश न्यास का संदर्भ देती है तथा वह इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के उदाहरण देती है जो भारत में लिए प्रासंगिक नहीं हैं। एनएमपी के दस्तावेज अधिक व्यावहारिक होते अगर उनमें सरकारी संपत्तियों में रुचि लेने वाली निजी कंपनियों का नाम लिए बिना मूल्य को लेकर होने वाले मशविरे के बारे में संकेत दिए गए होते। एनएमपी दस्तावेज में यह उल्लेख है कि सरकारी उपक्रमों के बीच परिसंपत्ति हस्तांतरण पर स्टांप शुल्क नहीं लगेगा। बहरहाल, यह स्पष्ट नहीं है निजी कंपनियों को पट्टे पर देने पर ऐसा कोई शुल्क लगेगा या नहीं। लगातार घाटे में चल रही एयर इंडिया ऐसी सरकारी कंपनी का उदाहरण है जिसे बेचने या पट्टे पर देने की आवश्यकता है। यदि सरकार एक निजी खरीदार को इसे लेने के लिए आश्वस्त कर पाती है तो निरंतर हो रहा घाटा रुक जाएगा। इसमें सारा बकाया कर्ज शामिल है। एयर इंडिया तथा ऐसी अन्य घाटे वाली सरकारी कंपनियों के निजीकरण को एनएमपी से अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए।
एनएमपी का अनुमान है कि सड़कों को पट्टे पर देेने से उसके 6 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य में सबसे अधिक योगदान होगा। बेहतरीन विशेषज्ञों के साथ भी यह आकलन करना मुश्किल होगा कि किन सरकारी परिसंपत्तियों को पहले पट्टे पर दिया जाए और प्राप्त होने वाली नकदी के आकलन के लिए क्या मानक तय किए जाएं? एनएमपी प्रस्ताव इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार राजस्व जुटाने के लिए अपेक्षाकृत जटिल तरीका अपना रही है। केंद्र सरकार और खासतौर पर रक्षा क्षेत्र तथा रेलवे के पास शहरी क्षेत्रों में काफी जमीन मौजूद है। इसमें से कुछ जमीन को पट्टे पर दिया जा सकता है क्योंकि उस मामले में करीब की निजी जमीन के चलते कीमत का आकलन संभव होगा। निजी पक्ष द्वारा इस जमीन के उपयोग के लिए किया गया कोई भी पूंजीगत व्यय पट्टे के शुल्क से पहले ही काटा जा सकता है। यह सामूहिक राष्ट्रीय हित में है कि एनएमपी को पारदर्शी तरीके से क्रियान्वित किया जाए और वह सफल हो। बहरहाल, कितनी भी वित्तीय इंजीनियरिंग कर ली जाए वह संचालन की व्यवस्थागत कमियों तथा भारतीय न्याय व्यवस्था की अनावश्यक देरियों को दूरी नहीं कर सकती। यदि एनएमपी को आंशिक रूप से भी सफल बनाना है तो इन दोनों समस्याओं को दूर करना होगा।
(लेखक भारत के पूर्व राजदूत एवं वर्तमान में सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के फेलो हैं)
