केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अधीन आने वाले श्रम ब्यूरो ने अपनी नई तिमाही रोजगार सर्वेक्षण (क्यूईएस) रिपोर्ट जारी कर दी है। यह रिपोर्ट शहरी अर्थव्यवस्था के नौ बड़े क्षेत्रों में रोजगार के रुझान में बदलाव पर केंद्रित है। ये क्षेत्र हैं: विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वागत, सूचना प्रौद्योगिकी और वित्तीय सेवा क्षेत्र। क्यूईएस को प्रमुख तौर पर ‘औपचारिक’ या संगठित क्षेत्र पर ध्यान देना है क्योंकि यह उन प्रतिष्ठानों तक सीमित है जहां 10 से अधिक कर्मचारी हैं। योजना यह है कि एक वर्ष बाद इसे छोटे उपक्रमों के साथ मिला दिया जाए ताकि अर्थव्यवस्था की समग्र तस्वीर सामने आ सके। सरकार की कोशिश यह है कि रोजगार को लेकर उच्च तीव्रता वाले आंकड़ों के संदर्भ में भारतीय सांख्यिकीय क्षेत्र की एक बड़ी कमी को दूर किया जा सके। अधिकांश परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं में बेरोजगारी के मासिक आंकड़े जारी किए जाते हैं लेकिन भारत में हाल के वर्षों में बेमियादी ढंग से किए गए बड़े-बड़े सर्वेक्षणों को निजी क्षेत्र के छोटे प्रयासों से मिलाकर आंकड़े जुटाए गए हैं।
क्यूईएस का पहला दौर प्रमुख तौर पर कोविड-19 महामारी के दूसरे दौर के समय किया गया और इसलिए सर्वे का अधिकांश काम टेलीफोन के माध्यम से करना पड़ा। सर्वेक्षण वाले प्रतिष्ठानों से संबंधित मूल डेटाबेस 2013-14 की आर्थिक गणना से लिया गया। आर्थिक गणना का ताजा दौर 2020 में संपन्न हुआ लेकिन वह अब तक सार्वजनिक नहीं है। सरकार ने सन 2013-14 की आर्थिक गणना में दिए गए नौ क्षेत्रों के संपूर्ण आंकड़ों में से कुल रोजगार के आंकड़ों को तुलना के क्रम में लिया और यह निष्कर्ष निकाला कि इन क्षेत्रों में उपलब्ध रोजगारों की तादाद में अच्छी वृद्धि हुई है। परंतु यह तुलना गलत हो सकती है क्योंकि सन 2013-14 के नमूने में शामिल कई प्रतिष्ठानों ने प्रतिक्रिया नहीं दी और कुछ तो बंद भी हो चुके हैं। इन क्षेत्रों में रोजगार में इजाफा या नुकसान तभी बेहतर निर्धारित हो सकता है जब 2020 की आर्थिक गणना के आंकड़े जारी हों। यह काम बिना देरी किए होना चाहिए ताकि क्यूईएस को अधिक प्रासंगिक बनाया जा सके।
क्यूईएस ने अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत और महामारी के प्रभाव को लेकर जो तुलना की हैं वह अधिक दिलचस्प और भरोसेमंद हैं। यह ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि इन अपेक्षाकृत संगठित क्षेत्रों में भी भारतीय उपक्रमों का आकार सूचना प्रौद्योगिकी और बीपीओ जैसे क्षेत्रों की तुलना में छोटा है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि वे कौन से क्षेत्र हैं जो कम शैक्षणिक अर्हता वाले लोगों को रोजगार देने में सक्षम हैं। स्वागत उद्योग, व्यापार, निर्माण और विनिर्माण सभी क्षेत्रों में हाईस्कूल स्तर या उससे कम पढ़े लिखे कर्मचारियों की अच्छी खासी हिस्सेदारी है। यह बात परिवहन, वित्तीय सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर लागू नहीं है। संगठित प्रतिष्ठानों में करीब 18 फीसदी कौशल विकास कार्यक्रम कराने का दावा करते हैं। ये आंकड़े कौशल बढ़ाने के प्रयास में सरकार की मदद कर सकते हैं। महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़े भी महत्त्वपूर्ण हैं। क्यूईएस के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में रोजगारशुदा लोगों में से अधिकांश को मार्च-जून 2020 के देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन मिलता रहा। इनमें विनिर्माण और व्यापार क्षेत्र के तीन चौथाई कर्मी शामिल हैं। यहां तक कि निर्माण और स्वागत क्षेत्र में भी जहां बड़े पैमाने पर लोगों ने नौकरी गंवाई, वहां भी 10 से अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों में दो तिहाई कर्मचरियों को पूरा वेतन मिला। ऐसे में संभव है वेतन और रोजगार में कमी छोटे उपक्रमों में ज्यादा आई जहां कम कर्मचारी काम करते हैं। सरकार ने देश में श्रम के आंकड़ों के गठन को लेकर अच्छी शुरुआत की है। अब उसे 2020 की आर्थिक गणना के आंकड़े पेश करने चाहिए और क्यूईएस में पेश आंकड़ों से संबंधित अकादमिक जगत की रचनात्मक आलोचना पर भी ध्यान देना चाहिए।
