यूट्यूब द्वारा हाल में जारी एक रिपोर्ट में भारत में ‘क्रिएटर इकनॉमी’ के बारे में कुछ दिलचस्प बातें कही गई हैं। इस रिपोर्ट पर शोध करने वाली कंपनी ऑक्सफर्ड इकनॉमिक्स के अनुसार यूट्यूब ने 68 लाख पूर्णकालिक नौकरियां सृजित कीं और वर्ष 2020 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6,800 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान दिया। क्रिएटर इकनॉमी से तात्पर्य सॉफ्टवेयर समर्थित अर्थव्यवस्था से है जिसमें सामग्री सृजन करने वाले लोग (क्रिएटर) अपनी कलाओं, खूबियों के इस्तेमाल से राजस्व अर्जित करते हैं।
इस अध्ययन में कहा गया है कि करीब 40,000 भारतीय चैनलों के 1 लाख से अधिक सबस्क्राइबर (उपभोक्ता) है और 1 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले चैनलों की संख्या सालाना आधार पर जून 2001 में 60 प्रतिशत तक बढ़ गई। इनमें कुछ आंकड़ों का अंकेक्षण (ऑडिट) हो चुका है और यूट्यूब को मालूम है कि भारत में परिचालन करने वाले चैनलों को उसने कितना भुगतान किया है। सबस्क्राइबर एवं चैनल से जुड़े आंकड़ों की जानकारी भी उसके पास होगी। अनुमानित 68 लाख रोजगार सृजन के निष्कर्ष तक पहुंचने वाली विधि और इससे जुड़े तर्कों से कई लोग असहमत हो सकते हैं। मगर इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये बड़े आंकड़े हैं। इनकी तुलना सृजनात्मक तंत्र (क्रिएटिव ईकोसिस्टम) से जरूर की जानी चाहिए। वर्ष 2019-20 (कोविड महामारी से पहले) भारतीय सिनेमा उद्योग (सभी भाषाओं में) को टिकटों की बिक्री, चैनल सबस्क्रिप्शन आदि से 14,000 करोड़ रुपये अनुमानित राजस्व प्राप्त होने का अनुमान था। इसके अलावा लोकप्रिय टीवी कार्यक्रमों से भी अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता है। अगर उक्त विधि का इस्तेमाल करें तो अप्रत्यक्ष राजस्व काफी अधिक होगा।
यूट्यूब में सिनेमा के अलावा काफी दूसरी तरह की काफी सामग्री उपलब्ध होती है। इनमें रसोई में नए व्यंजन बनाने से लेकर एयर कंडीशन मशीन साफ करने तक के नुस्खे सिखाने के वीडियो मौजूद होते हैं। पढ़ाई-लिखाई से जुड़े चैनलों के साथ अनूठे प्रयोगों से जुड़ी सामग्री भी बहुतायत में उपलब्ध होते हैं। यह सच है कि ज्यादातर यूट्यूब चैनल कोई कमाई नहीं करते हैं या न के बराबर कमा पाते हैं। मगर यह भी वास्तविकता है है कि यूट्यूब पर चैनल बनाना बहुत आसान है और इसके लिए कोई शुल्क आदि भी नहीं देना पड़ता है। लोगों के दिलो-दिमाग पर असर डालने वाले लोग अपनी टीम तैयार करते हैं और नए-आधुनिक उपकरणों की मदद से स्टूडियो बनाते हैं और वैकल्पिक विपणन एवं राजस्व सृजन के विकल्प तलाशते हैं।
डिजिटल मनोरंजन तंत्र में यूट्यूब सबसे बड़ा माध्यम है। अगर भारत में टिकटॉक पर प्रतिबंध नहीं लगा होता तो यह शायद यूट्यूब को कड़ी टक्कर देता। पाबंदी लगने के लंबे समय के बाद भी भारत में टिकटॉक के चाहने वालों की अब भी कमी नहीं है। मैं व्यक्तिगत रूप से से ऐसे दर्जनों लोगों को जानता हूं जो पाबंदी की काट खोज कर टिकटॉक इस्तेमाल कर रहे हैं। व्हाट्सऐप पर हमेशा देसी टिकटॉक वीडियो दिख जाते हैं। इसके अलावा इंस्टाग्राम पर भी कई लोग छाए हुए हैं। भारत में इंस्टाग्राम इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 18 करोड़ से अधिक है। इसके अलावा स्पॉटीफाई, पॉडकास्टर, गेमर्स और ट्विच पर भी कई लोग सक्रिय हैं।
इन सभी माध्यमों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और साथ में इनका बाजार भी। इस वक्त भी देश में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोगों में केवल आधे के पास ही स्मार्टफोन हैं। इनमें ज्यादातर 4जी स्पीड का इस्तेमाल करते हैं जिनका प्रदर्शन सुस्त कहा जा सकता है। अगर 5जी सेवा शुरू होती है तो स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार और तेज हो जाएगी। डिजिटल तंत्र में ये सभी गतिविधियां सफलता की कहानियां लिख रही हैं। सामग्री का विशाल दायरा भी उत्साह बढ़ाने वाली बात है।
मगर यह एक ऐसा बाजार है जहां कुछ ही लोगों का बोलबाला है। सामान्य स्थिति में 80 प्रतिशत राजस्व 20 लोग मिलकर अर्जित करते हैं मगर यहां 95-99 प्रतिशत तक राजस्व 1 से 5 प्रतिशत लोगों के पास चला जाता है। बाजार में प्रवेश की राह में कुछ बाधाएं भी होती हैं। उदाहरण के लिए एक लोकप्रिय गेम पर करोड़ों डॉलर खर्च आ सकता है।
अफसोस की बात है कि सरकार इस तंत्र की ओर समुचित ध्यान नहीं दे पा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि वह भारत में गेमिंग बाजार को दुनिया में अपनी विशेष पहचान बनाते देखना चाहते हैं। सरकार डिजिटल इंडिया तैया करने के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करती हैं। मगर डिजिटल क्रिएटर की राह में ज्यादातर बाधाएं नीतिगत संबंधी होती हैं। सीमा पर चीन के साथ विवाद बढऩे के बाद टिकटॉक पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है। इन डिजिटल मंचों पर सामग्री तैयार करने वाले लोगों को 18 प्रतिशत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा उन्हें राजस्व के मोर्चे पर कई तरह की पेचीदा कागजी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। क्रिप्टोकरेंसी पर सरकार 30 प्रतिशत कर लगा रही हैं। दुनिया के 90 देशों में 5जी सेवा पहले ही शुरू हो चुकी है मगर भारत में स्पेक्ट्रम की नीलामी तक नहीं हो पाई है। ऐसी अनेक बाधाएं क्रिएटर इकनॉमी को आगे बढऩे नहीं दे रही हैं। प्रयासों में गंभीरता लाने, नीतिगत बाधाएं समाप्त करने और अधिकारियों की मनमानी पर नियंत्रण लगाने से क्रिएटर अपनी क्षमता का पूर्ण इस्तेमाल कर पाएंगे।
