बीते कुछ दिनों में देश के टीकाकरण कार्यक्रम में अहम बदलाव नजर आए हैं। सरकार ने 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को बूस्टर खुराक लगाने की इजाजत दे दी है और इसे ‘प्रिकॉशन डोज’ यानी एहतियाती खुराक का नाम दिया गया है। 18 वर्ष से अधिक आयु के जिन लोगों को टीके की दूसरी खुराक लिए नौ महीने से अधिक हो चुके हैं वे बूस्टर खुराक लगवा सकते हैं। स्वास्थ्य कर्मियों, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं तथा 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को यह टीका पहले ही लगना शुरू हो चुका है। यह अतिरिक्त खुराक नि:शुल्क टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है और इसे निजी क्षेत्र से लगवाना होगा। देश की दोनों प्रमुख टीका निर्माता कंपनियों ने जिनका टीका अधिकांश भारतीयों को लगा है, अपने टीकों की कीमत भी कम की है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अपने टीके कोविशील्ड का दाम 600 रुपये से घटाकर 225 रुपये कर दिया है जबकि भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सीन का दाम 1,200 रुपये से कम करके 225 रुपये किया गया है। निजी क्षेत्र के केंद्र सेवा शुल्क के रूप में 150 रुपये तक की राशि लेते रहेंगे।
कोरोनावायरस लगातार रूप बदल रहा है और वह प्रतिरक्षा तंत्र को भी छका रहा है, ऐसे में सरकार का बूस्टर खुराक लगवाने का निर्णय अच्छा है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा, कोविड-19 के खतरे का कोई एक चेहरा नहीं है और टीकाकरण कार्यक्रम का मजबूत होना आवश्यक है, तभी हम निरंतर रूप बदलते वायरस के हमले से बच पाएंगे। बूस्टर खुराक इससे निपटने का एक जरूरी उपाय है और इसकी मदद से जन स्वास्थ्य को न्यूनतम खतरे के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को खोला जा सकेगा। संभव है कि ओमीक्रोन स्वरूप डेल्टा स्वरूप की तुलना में कम घातक हो लेकिन हॉन्गकॉन्ग और शांघाई का उदाहरण बताता है कि यह मौत और आर्थिक उथलपुथल दोनों पैदा कर सकता है। इनसे बचना जरूरी है और बूस्टर खुराक इस बचाव का एक तरीका है। सरकार के लिए यह भी महत्त्वपूर्ण है कि वह इस बात को समझने का प्रयास करे कि गैर बूस्टर वाला नियमित टीकाकरण कार्यक्रम क्यों अभी भी कुल 85-85 फीसदी लोगों तक ही पहुंच सका। पहली खुराक लगभग सभी लोगों को लग चुकी है जबकि दूसरी खुराक के लिए लोगों का समय पर नहीं आना एक समस्या है। यदि तुलना की जाए तो बांग्लादेश में लगभग 100 फीसदी आबादी को दूसरी खुराक लग चुकी है।
बहरहाल, खेद की बात है कि सरकार मूल्य निर्धारण और वितरण के मामले में अपने पुराने सोच पर लौट गई है। उसने निजी क्षेत्र को टीके की खुराक की कीमत कम करने पर मजबूर करके तथा 18 से 60 की आयु के लोगों को सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बूस्टर खुराक लगाने से इनकार करके दोनों ही ढंग से नुकसानदेह कदम उठाए। नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में दोनों खुराक नि:शुल्क लगाने की जो वजह थी वह तो बूस्टर खुराक पर भी लागू होती है। यह आवश्यक है कि लोगों को बूस्टर खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और ऐसा तभी किया जा सकता है जब सार्वजनिक टीका वितरण व्यवस्था काम करे और नि:शुल्क टीकाकरण का विकल्प हो। लोगों को बूस्टर खुराक के लिए पैसे देने को कहकर प्रेरित करना मुश्किल है। उस स्थिति में बहुत कम लोग बूस्टर खुराक लगवाने जाएंगे और यह जन स्वास्थ्य तथा आर्थिक सुधार दोनों के लिए नुकसानदेह होगा। इस बीच निजी क्षेत्र को कीमतें कम करने के लिए विवश करना भी अनुचित है क्योंकि उन्हें बूस्टर खुराक के लिए उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। इस विषय पर अवश्य पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
