जब किसी शख्स को यह बताया जाए कि धोखेबाजी के बगैर धांधली और किसी पीडि़त के न होते हुए भी चोट पहुंचाई जा सकती है तो उसे बखूबी पता चल जाएगा कि वह नियामकीय गड़बड़ी की आड़ में भटक चुका है। दुर्भाग्य से प्रतिभूति बाजार का नियमन एवं प्रवर्तन तेजी से इसी दिशा में बढ़ता दिख रहा है।
बुनियादी तौर पर कानून की दो इकाइयां काम कर रही हैं। प्रतिभूति बाजार में उल्लंघनकारी भेदिया कारोबार पर रोक लगाने वाले नियम और धोखाधड़ी एवं अनुचित कारोबारी बरताव पर रोक लगाने वाले नियम। नियामकीय प्रवर्तन की समूची व्यवस्था का निर्माण मूलत: सिद्धांतों के एक निकाय के नियमों के तौर पर किया गया है लेकिन ये नियम संकीर्ण तरीके से लागू किए जाते हैं। इस वजह से भारतीय प्रतिभूति बाजार में ऐसी धांधली की भरमार हो गई है जिसमें धोखाधड़ी नहीं होती है।
इस समस्या के मूल में वह सामान्य धारणा है कि भारत में धोखाधड़ी करने वाले हल्के में छूट जाते हैं और वे इतने नए तरीके ईजाद कर लेते हैं कि किसी को दोषी ठहराने के लिए निर्धारित प्रक्रिया एवं मानदंड भी उनके आगे छोटे पड़ जाते हैं। इस संदर्भ में प्रतिभूति बाजार नियमन के डिजाइन से जुड़ी समस्या है। धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार आचरण पर रोक लगाने वाले नियम ‘धोखाधड़ी’ को दुनिया भर में मान्य धोखाधड़ी की परिभाषा के हिसाब से ही देखते हैं। धोखाधड़ी में झूठ बोलने, धूर्तता के प्रदर्शन, गलतबयानी, भौतिक सूचनाओं को छिपाने जैसे कार्य शामिल हैं।
हालांकि धोखाधड़ी की यह परिभाषा अनुचित व्यापार आचरण से युक्त धोखाधड़ी भरे लेनदेन से इसकी साम्यता दिखाता है। इस शब्दावली को तय ढांचे के भीतर लाकर और खास तरह के आचरण को कानूनी रूप से चालाकी से भरा, अनुचित या धोखेबाजी से भरपूर बताकर ऐसा किया जाता है।
इस तरह इस्तेमाल किए जाने पर कोई भी ‘अनुचित कार्य बरताव’ की व्याख्या ऐसे व्यापार आचरण के तौर पर कर सकता है जो अनुचित है और उसकी प्रकृति धोखाधड़ी या तिकड़म से भरपूर है। इस क्रम में प्रयुक्त शब्दों को उसी तरह पढ़ा जाना है। लेकिन इस शब्दावली को पढऩे का दूसरा तरीका यह है कि कोई भी अनुचित आचरण अनिवार्य रूप से निषिद्ध है और इस तरह ऐसा आचरण करने वाले को एक धोखेबाज शख्स जैसा ही दंड मिलना चाहिए। इस बिंदु पर इसका समस्यापरक स्वभाव शीर्षासन करने लगता है।
असल में, यह दलील दी जाती है कि प्रतिभूति नियमों के प्रवर्तन में मंशा और मनोदशा को स्थापित करने की जरूरत नहीं होती है। अविवेकपूर्ण आचरण को उल्लंघनकारी मानने के संदर्भ में इसे लागू करें तो यह एक टिकाऊ दलील बन जाती है। लेकिन जब यह कहा जाए कि किसी के लिए भी अनुचित कोई बरताव धोखाधड़ी की ही तरह जटिलताओं की तरफ लेकर जा सकता है तो वह प्रतिभूति बाजार में गए बगैर एक पति एवं पत्नी के बीच हुए शेयर कारोबार जैसी ही स्थिति बन जाती है। इस सौदे को इस आधार पर प्रतिभूति बाजार की धांधली के बराबर ठहराया जाए कि इसे बाजार कीमतों से इतर कीमत पर अंजाम दिया गया। भले ही यह सुनने में अटपटा लगे लेकिन असल में यही हो रहा है।
इसी तरह, भेदिया कारोबार पर रोक लगाने वाले नियम भी हैं। कंपनी के बारे में किसी अप्रकाशित संवेदनशील सूचना को अंदरूनी शख्स द्वारा इस्तेमाल कर गैरकानूनी शेयर कारोबार करना ही भेदिया कारोबार है। इस पर रोक लगाने का यह सिद्धांत है कि मस्तिष्क में भरी हुई चीजें निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं। लिहाजा अगर एक अंदरूनी शख्स को कंपनी की अघोषित भावी योजनाओं के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में पता है तो उस कंपनी के शेयरों की बिक्री करने का फैसला संभवत: उस जानकारी के आधार पर लाभ कमाने की मंशा से प्रेरित हो सकता है। फिर भी प्रतिभूतियों के कारोबार में लगे लोगों की मनोदशा को ध्यान में रखे बगैर प्रवर्तन कार्रवाइयां अक्सर देखी जाती हैं। सलाहकार पहले सिद्धांत को ध्यान में न रखते हुए अक्सर यह राय जाहिर करते दिखाई देते हैं कि अप्रकाशित सूचना की जानकारी होने पर भी शेयरों की खरीद या बिक्री करना भेदिया कारोबार का उल्लंघन है।
भेदिया कारोबार का नियमन करने वाले प्रावधानों में एक नवाचारी बदलाव आया है। वे न केवल नियमों में इन सिद्धांतों को कूटबद्ध करते हैं बल्कि टिप्पणियों के रूप में निहित सिद्धांतों से विधायी मंशा भी दिखाते हैं। ये टिप्पणियां यह स्पष्ट करती हैं कि भेदिया कारोबार का ताल्लुक प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री करने वाले शख्स की मनोदशा से है, न कि उस व्यक्ति की मनोदशा से संबंधित है जिसके नाम पर शेयर खरीदे गए हैं। इसके बावजूद एक प्रबंधक द्वारा विवेक का इस्तेमाल कर किए गए शेयर कारोबार के मामलों में भी उन्हीं लोगों को गिरफ्त में लिया जा रहा है जिनके नाम पर खरीद-फरोख्त हुई है। यह कहा गया है कि एक बड़ी कंपनी के एक स्वतंत्र निदेशक को उसकी पत्नी के पोर्टफोलियो प्रबंधक द्वारा किए गए शेयर खरीद के लिए घसीटा गया है।
इस बीच, भेदिया कारोबार संबंधी नियमों में निहित सिद्धांतों का छोटा समूह अब सचिवों द्वारा तैयार निर्देशों की एक लंबी सूची की शक्ल ले चुका है। वर्ष 2015 में जो चीज सिद्धांत-आधारित नियमन के तौर पर शुरू हुई थी, अब वह विविध लिपिकीय अनुपालन शर्तों का पुलिंदा बन चुकी है। संबंधित लोगों का एक रजिस्टर बनाना और संवेदनशील सूचना पाने वालों का ब्योरा रखने का इरादा बढिय़ा है। लेकिन अगर भेदिया कारोबार के पहले सिद्धांत को ही भुला दिया जाता है तो गलत बातों का ढेर लग जाएगा।
धोखाधड़ी से मुक्त गड़बड़ी लांछन-रहित अभियोग का सबब बनेगी। अगर समाज को यह लगता है कि भेदिया कारोबार पर रोक लगाने वाले नियम किसी निर्दोष को भी दोषी ठहरा सकते हैं तो दोषी पाए जाने से जुड़ा कलंक भी धीरे-धीरे कम हो जाएगा। यह एक बड़ा खतरा है।
(लेखक अधिवक्ता एवं स्वतंत्र परामर्शदाता हैं)
