केंद्र सरकार ने गत सप्ताह आर्थिक गतिविधियों की सहायता के लिए करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये मूल्य के एक नये पैकेज की घोषणा की है। हालांकि लगता नहीं कि सरकार चालू वर्ष में अपनी उधारी को 12 लाख करोड़ रुपये के संशोधित लक्ष्य से बढ़ाएगी। इससे यह संकेत भी मिलता है कि सरकार राजकोषीय घाटे को एक तय सीमा से अधिक बढ़ाना नहीं चाहती। हालांकि अंतिम आंकड़े सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 फीसदी के तय लक्ष्य से अधिक ही होंगे। वित्त वर्ष की पहली छमाही में कुल राजस्व संग्रह में 22 फीसदी की कमी आई। कर संग्रह में इस कमी की भरपाई के लिए व्यापक तौर पर उच्च उत्पाद शुल्क की मदद ली गई। ऐसा इसलिए हो सका कि पेट्रोलियम उत्पादों पर कर काफी बढ़ा दिया गया। वर्ष की दूसरी छमाही में हालात में काफी सुधार आने की आशा है। आर्थिक गतिविधियां बहाल हो रही हैं और कर संग्रह में भी सुधार होगा। उदाहरण के लिए क्रेडिट सुइस का एक हालिया शोध पत्र दर्शाता है कि चालू वर्ष में केंद्र सरकार का व्यय सात फीसदी तक बढ़ सकता है। इसमें अनुमान जताया गया है कि वर्ष की दूसरी छमाही में सकल कर प्राप्तियों में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 19 फीसदी का इजाफा हो सकता है। चूंकि राज्य सरकार की प्राप्तियों में काफी हिस्सा केंद्र के हस्तांतरण का होता है इसलिए राज्यों पर भी दबाव कम होगा। इसके अतिरिक्त उनके खुद के राजस्व में भी सुधार हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक के एक नये अध्ययन में कहा गया है कि वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था संकुचन से बाहर निकल सकती है। यह पहले जताए गए अनुमानों से एक तिमाही बेहतर होगा। इससे वर्ष की असमायोजित जीडीपी में सुधार हो सकता है और राजकोषीय घाटा नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
हाल के सप्ताहों में राजकोषीय पूर्वानुमान में सुधार हुआ है लेकिन सरकारी वित्त का प्रबंधन आने वाले समय में बहुत कठिन बना रहेगा। इसे अत्यंत सावधानी से संभालना होगा। उदाहरण के लिए सरकार ने सरकारी उपक्रमों से कहा है कि वे उच्च लाभांश का भुगतान करें। यकीनन यह वर्ष असाधारण है लेकिन सरकार अपने बजट लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकारी उपक्रमों का दोहन कई वर्षों से करती आ रही है। आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच वर्षों में 55 सूचीबद्ध सरकारी उपक्रमों का लाभांश भुगतान अनुपात निफ्टी 50 की कंपनियों के दोगुने से भी अधिक रहा है। सरकारी उपक्रमों द्वारा अतिरिक्त लाभांश भुगतान का परिणाम निवेश में कमी और दीर्घावधि में उनकी वृद्धि में गिरावट के रूप में सामने आएगा। आगे चलकर यह भी सरकारी वित्त को प्रभावित करेगा। कमजोर बहीखाता इन कंपनियों के मूल्यांकन पर असर डालेगा और विनिवेश पर भी इसका असर दिखेगा। ऐसे में सरकार को अपने सालाना बजट लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारी उपक्रमों पर दबाव नहीं डालना चाहिए। चूंकि चालू वर्ष में राजकोषीय घाटा बढऩे की आशंका है इसलिए सरकार के पास मौका है कि बजट को अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाया जाए। व्यापक स्तर पर देखें तो अभी भी काफी अनिश्चितता है क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि महामारी का खौफ कब समाप्त होगा। सरकार से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह आम बजट के साथ मध्यम अवधि के राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की योजना पेश करेगी। समझदारी यही होगी कि अगले वर्ष से राजस्व में सुधार के साथ सुसंगत अंदाज में घाटे में कमी की योजना बनाई जाए। सुदृढ़ीकरण में देरी और व्यय में अनुमान से अधिक कटौती दोनों में जोखिम हैं। इसमें संतुलन साधना मशक्कत का काम होगा।
