कहा जा रहा है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) बाजार के रुझानों को लेकर नियमित ‘जोखिम कारक खुलासे’ जारी करने पर विचार कर रहा है। नियामक को आशा है कि समय-समय पर और अधिक सूचना जारी करके तथा अपने पर्यवेक्षण की घोषणा करके वह निवेशकों की निर्णय लेने में मदद करेगा और इस प्रकार उन्हें उस ‘भेड़ चाल’ वाली मानसिकता से उबारेगा जो अक्सर बाजार को संचालित करती है। जानकारी के मुताबिक इस बात पर सहमति बनी है कि ये खुलासे एक खास अवधि में निवेशकों के व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करेंगे, मुनाफे या घाटे पर ध्यान देंगे तथा बाजार के ऐसे हिस्सों को तरजीह देंगे जो मुनाफा कमाने वाले या घाटे वाले रहे हों।
शायद ऐसा इसलिए किया जा रहा हो कि हाल के दिनों में अनेक प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकशों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। डेरिवेटिव में भी घाटा हुआ है। इस विचार में फायदे और नुकसान दोनों हैं। सकारात्मक पहलू की बात करें तो बाजार नियामक की पहुंच बहुत अधिक आंकड़ों तक है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। वह इस आंकड़े का अधिक गहराई से और ज्यादा सटीक ढंग से विश्लेषण कर सकता है तथा ज्यादा गहन नजरिया प्रस्तुत कर सकता है। पारदर्शी ढंग से और आंकड़े साझा करके वह यकीनन निवेशकों की मदद कर सकता है।
बहरहाल, बाजार नियामक उच्च कारोबारी संचालन, पारदर्शिता, मूल्य संवेदी जानकारी तक समान पहुंच और वित्तीय एक्सचेंज के सहज कामकाज के साथ सभी निवेशकों के लिए समान कारोबारी माहौल तैयार करना चाहता है। सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली सभी कंपनियां, बाजार में संचालित वित्तीय संस्था और शेयर और जिंस एक्सचेंज समेत बाजार अधोसंरचनाओं को अपने कामकाज, नीतियों और भविष्य की रणनीतियों को लेकर खुलासे प्रस्तुत करने चाहिए। नियामक ने कारोबारी संचालन मानकों को मजबूत बनाने और सूचीबद्ध कंपनियों के लिए खुलासे की आवश्यकताओं को लेकर काम किया है। लेकिन वह निवेशकों की निर्णय प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। वह कारोबारी संस्थाओं से अधिक से अधिक सूचना अवश्य जुटा सकता है। हालांकि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसी स्थिति की कल्पना आसानी से की जा सकती है जहां सेबी के जोखिम संबंधी आंकड़ों को गलत समझा जा सकता है या उनकी चयनित व्याख्या की जा सकती है और कहा जा सकता है कि सेबी ने अमुक काम की ‘अनुशंसा’ की है।
ऐसे मामलों में बाजार जोखिम के कारकों पर अपनी राय देकर बलि का बकरा बनने की संभावना के अलावा सेबी वास्तव में शायद भेड़चाल को बढ़ावा भी दे सकता है। यदि ज्यादातर निवेशकों को इस बात पर यकीन हो जाता है कि सेबी किसी खास जोखिम की ओर संकेत कर रहा है या एक खास अवसर को रेखांकित कर रहा है तो लोगों में एकतरफा कदम उठाने की
प्रवृत्ति और बढ़ेगी। यहां एक और बात पर विचार करना जरूरी है। भले ही नियामक पूर्वग्रह से रहित नजरिया और गहन
अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करना चाहता हो लेकिन इसमें रुचि रखने वाले पक्ष ऐसी जानकारी को प्रभावित करना चाहेंगे। ऐसे मामलों में प्रभावित करने के लिए जमकर लॉबीइंग देखने को मिलेगी। उदाहरण के लिए यह भी माना जा सकता है कि किसी बड़ी सरकारी कंपनी के विनिवेश के मौके पर सरकारी स्रोत से भी दबाव पड़ सकता है। यह भी एक प्राथमिक वजह है जिसके चलते बाजार नियामक स्वतंत्र सांविधिक संस्था है और बाजार रुझानों के बारे में कम ही राय प्रकट करता है।
यदि सेबी ज्यादा आंकड़े सार्वजनिक करने और निवेशकों को वित्तीय परिदृश्य के बारे में बेहतर नजरिया देने का फैसला करता है तो यह अच्छी बात होगी। लेकिन ऐसे आंकड़ों का विश्लेषण और उनकी संभावित व्याख्या हमेशा निवेशकों पर ही छोड़ दी जानी चाहिए। इसके लिए एक बारीक रेखा खींचनी होगी और बेहतर होगा कि ऐसा सूक्ष्म प्रबंधन न किया जाए।
