यूक्रेन में छिड़ी जंग के कारण आपूर्ति बाधित हुई है तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। भारत पर इसका प्रभाव केवल उर्वरक सब्सिडी में इजाफे तक सीमित नहीं रहने वाला। इस संकट ने घरेलू बाजारों में इस अहम कृषि संसाधन की उपलब्धता को प्रभावित किया है तथा कई राज्यों में इसकी कालाबाजारी शुरू हो गई है। यह सच है कि सरकार ने जमाखोरी करने वालों तथा अन्य गलत व्यवहार अपनाने वालों को दंडित करने के लिए उर्वरक नियंत्रण आदेश जारी कर दिया है लेकिन नियंत्रणमुक्त उर्वरक मसलन डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) तथा मुरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) अभी भी कई हिस्सों में काफी ऊंचे दामों पर बेचे जा रहे हैं। यदि इसके चलते उर्वरक के इस्तेमाल में कमी आई, जो कि हो सकती है तो ऐसी स्थिति में अगले सत्र में उपज प्रभावित होगी। इससे किसानों की आय प्रभावित होगी और कृषि जिंसों का मूल्य बढ़ेगा। कुल मिलाकर इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी।
हालिया युद्ध के कारण सभी प्रकार के उर्वरकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है क्योंकि आपूर्ति बाधित है तथा कई यूरोपीय देशों तथा चीन ने निर्यात कम कर दिया है। इससे भारत जैसे उन देशों के सामने मुश्किल पैदा हो गई है जो उपज बढ़ाने वाले उर्वरकों की बढ़ती जरूरत के लिए आयात पर निर्भर हैं। भारत अपनी जरूरत का करीब 25 फीसदी यूरिया, 90 फीसदी फॉस्फेट (कच्चा और तैयार माल दोनों) और 100 प्रतिशत पोटाश आयात करता है। हालांकि रामगुंडम, सिंदरी, बरौनी और गोरखपुर में निष्क्रिय पड़ेउर्वरक संयंत्रों को शुरू करने से यूरिया का स्थानीय उत्पादन सुधरने की आशा है और आपूर्ति क्षेत्र की दिक्कत को काफी कम किया जा सकता है लेकिन फॉस्फेट और पोटाश से बनने वाले उर्वरकों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। रूस, बेलारूस और यूक्रेन तीनों मिलकर वैश्विक बाजारों में उर्वरक के कुल कारोबार में एक तिहाई के हिस्सेदार हैं। भारत की उर्वरक जरूरतों का भी बड़ा हिस्सा इन देशों से आता है। खासतौर पर डीएपी और एमओपी के मामले में।
इस क्षेत्र से आवक रुकने तथा भारत को यूरिया की अहम आपूर्ति करने वाले चीन की ओर से उर्वरक निर्यात में कटौती के कारण पर्याप्त आपूर्ति हासिल करने की राह कठिन हो गई है और खरीफ सत्र की मांग भी पूरी होनी मुश्किल नजर आ रही है। तथ्य यह है कि कई निजी आयातकों ने पहले ही कनाडा तथा अन्य देशों से उर्वरक खरीदने पर विचार करना शुरू कर दिया है, भले ही कीमत ज्यादा चुकानी पड़े। यदि सरकार किसानों को आयातित उर्वरक की ऊंची कीमतों से बचाने के लिए फॉस्फोरिक, पोटाश और अन्य उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ाना चाहती है तो उसका कुल सब्सिडी बिल 2022-23 के 1.05 लाख करोड़ रुपये के बजट से बहुत ऊपर निकल जाएगा। चालू वित्त वर्ष में कुल उर्वरक सब्सिडी 1.3 लाख करोड़ रुपये रह सकती है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के पहले ही कीमतें अप्रत्याशित रूप से बढ़ चुकी थीं जो बाद मेंं और अधिक बढ़ गईं। ऐसे में अगले वर्ष सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ आधिकारिक अनुमान से 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये तक ज्यादा हो सकता है।
भारत को यूरिया के मामले में आत्मनिर्भरता के प्रयास तेज करने होंगे और इससे भी अहम बात यह है कि उसे फॉस्फेट आधारित तथा पोटाश आधारित उर्वरकों के मामले में आयात निर्भरता कम करने के प्रयास करने होंगे। अच्छी बात है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में फॉस्फेट के भंडार पता चले हैं, खासतौर पर राजस्थान, मध्य प्रायद्वीप, मध्य प्रदेश के हीरापुर क्षेत्र तथा आंध्र प्रदेश के कडप्पा में। उनका इस्तेमाल करके फॉस्फेट आधारित उर्वरक बनाने का काम बिना देरी से शुरू किया जाना चाहिए। इसके अलावा पोटाश आधारित उर्वरकों के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं के साथ दीर्घकालिक व्यवस्था की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न बने।
