भारतीय वाहन बाजार, विद्युतीकरण के क्षेत्र में ऐतिहासिक छलांग लगाने की ओर अग्रसर है। पूंजीगत लागत घटने और ईंधन की बढ़ती कीमतों की वजह से इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने की जो गति दिख रही है यह काफी चौंकाने वाली है। यह कुछ ऐसा ही है जब एक वक्त में मोबाइल फोन को बड़ी तेज रफ्तार से अपनाया गया था। ईवी के लिए चार्जिंग नेटवर्क की शुरुआत होने के साथ ही देश में एक अनूठी समस्या खड़ी हो गई है। ईवी पहले आएं, तो उनके लिए चार्जिंग का बुनियादी ढांचा जरूरी है और अगर चार्जिंग का बुनियादी ढांचा मौजूद है तो उतनी तादाद में ईवी भी होने चाहिए। कई अध्ययनों से अंदाजा मिलता है कि नए वाहनों की बिक्री में निजी कार की मांग का योगदान 30 प्रतिशत, वाणिज्यिक कारों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत, बसों की 40 प्रतिशत और दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों की वर्ष 2030 तक 80 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है। भारत में कम समय में ई-रिक्शा एक बड़े बाजार के रूप में उभरा है। इस बाजार का एक बड़ा हिस्सा अब भी असंगठित है और यह सीसा-एसिड वाली बैटरियों से चलता है। हालांकि उम्मीद है कि इनमें 2024-25 तक लिथियम-आयन बैटरी इस्तेमाल होने लगेगा और करीब 40 प्रतिशत ई-रिक्शा इसी बैटरी से चलेंगे।
ईवी निर्माताओं के एक संगठन के अनुसार देश में मार्च 2021 तक लगभग 16,200 ईवी के लिए 1,800 चार्जिंग स्टेशन तैयार हो गए थे। इसके विपरीत देश में करीब 70,000 पेट्रोल पंपों का नेटवर्क है। ऐसा अनुमान है कि साल 2030 देश में 29,00,000 चार्जिंग स्टेशन की जरूरत होगी और इसमें करीब 21,000 करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी।
ऊर्जा मंत्रालय ने ईवी चार्जिंग स्टेशनों पर लागू करने के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। राज्य वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) अनिवार्य नोडल एजेंसी है। हालांकि, राज्य सरकारें इसे केंद्र या राज्य की किसी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई को सौंपने के लिए स्वतंत्र होंगी। सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए किसी भी तरह के लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी और कोई भी व्यक्ति या इकाई सार्वजनिक जगह पर इन्हें लगाने और चार्ज करने के लिए स्वतंत्र है। राज्य विद्युत नियामक आयोग ही शुल्क का निर्धारण करेगी और यह आपूर्ति की औसत लागत तथा 15 प्रतिशत अतिरिक्त से अधिक नहीं होगा। घरों में निजी चार्जिंग की अनुमति है और इसके लिए घरेलू शुल्क लागू है।
सड़क परिवहन मंत्रालय ने घोषणा की है कि ईवी को ग्रीन लाइसेंस प्लेट जारी की जाएगी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और भारतीय मानक ब्यूरो स्वदेशी चार्जिंग विकल्प तैयार करने में एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। राज्य वितरण कंपनियों ने कई तरह के सुविधाजनक उपायों की घोषणा की है। जीएसटी परिषद ने स्टेशन उपकरण शुल्क पर दरें 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दी हैं।
ऊर्जा मंत्रालय के तहत आने वाले एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज (ईईएसएल) और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज जमीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन के काम को आगे बढ़ा रही हैं और राज्य सरकारों के साथ साझेदारी कर रही हैं। ये भारत इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के भागीदारों और इस क्षेत्र में आने के लिए इच्छुक कई निजी कंपनियों को जोड़ रही हैं। नीति आयोग, मिशन फॉर ट्रांसफॉरमेटिव मोबिलिटी ऐंड बैटरी स्टोरेज का नेतृत्व कर रहा है जिस अभियान के तहत विभिन्न गतिविधियों के बीच भारत में दोपहिया और तिपहिया वाहनों के लिए कम लागत वाले चार्जिंग प्वाइंट तैयार किए जा सकें।
बैटरी की अदला-बदली करने के लिए ईवी में लगीं बैटरियों के मानक लगातार तय करने की जरूरत होती है। चार्जिंग के ढांचे के साथ-साथ बैटरी बदलने की सुविधाएं भी दी जानी हैं। तीन प्रकार के परस्पर संचालन पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है जैसे कि प्लग के प्रकार, चार्जर और नेटवर्क संचार, नेटवर्क से नेटवर्क संचार आदि में सामंजस्य बिठाने की जरूरत है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने जून में अपनी एजीएम में हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक बैटरियों में बड़ा दांव लगाने की घोषणा की जिससे ईवी के बाजार में खलबली मच गई। यह घोषणा उस वक्त हुई जब कोबाल्ट, लिथियम और निकल में चीन के दबदबे को देखते हुए चिंता बढ़ रही थी जो बैटरी के इस्तेमाल के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री है।
हाइड्रोजन वाली ऊर्जा बिल्कुल विपरीत विकल्प है जिसे टेस्ला और अन्य मोटर वाहन क्षेत्र की उन दिग्गज कंपनियों के सामने प्रतिस्पद्र्धा के रूप में पेश किया गया है जो बैटरी वाली तकनीक पर जोर देते हैं। रिलायंस मौजूदा पेट्रोल पंपों का इस्तेमाल भी वाहनों में तरल हाइड्रोजन भरने के लिए करेगी जिससे नए चार्जिंग नेटवर्कों की जरूरत ही खत्म हो जाएगी।
अगर हम कुल संयंत्र प्रणाली की ऊर्जा लागत के साथ-साथ भंडारण और परिवहन की ऊर्जा लागत को नहीं भी गिनते हैं तब भी एक किलोग्राम हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए लगभग 50 यूनिट बिजली की आवश्यकता होती है। अब ऐसे सवाल उठ खड़े हो रहे हैं कि हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए बिजली का इस्तेमाल ही क्यों करना जब पहले से ही आपके पास यह मौजूद है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने औपचारिक रूप से एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा करते हुए स्पष्ट किया कि इस तरह का हाइड्रोजन उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके ‘हरित’ श्रेणी में आएगा और इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होगा ।
अब जबकि ईवी बनाम हाइड्रोजन की बहस तेज होने की संभावना है तब निश्चित रूप से जिस तरह से वाहन बाजार विकसित हो रहा है उस पर सवाल उठता है क्योंकि विभिन्न देश, वाहन निर्माता और संस्थान प्रौद्योगिकी के विकल्प पर अलग-अलग रुख अख्तियार कर रहे हैं। हालांकि चौतरफा प्रयासों से यह उम्मीद जगी है कि मोबाइल टेलीफोन की तरह, भारत दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में स्वच्छ ऊर्जा वाले वाहनों को अपनाने में तेजी दिखाने में सक्षम हो सकता है।
(लेखक फीडबैक इन्फ्रा के सह-संस्थापक एवं गैर-कार्यकारी अध्यक्ष हैं)