हिसार (हरियाणा) के वन संरक्षक वी. एस. तंवर चुनाव डयूटी के लिए पिछले हफ्ते दक्षिण भारत की यात्रा पर थे।
हालांकि उन्हें गरम हवाओं के थपेड़ों से आराम तो मिला है लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने घर की याद सता रही है। हालांकि चुनाव भी महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन इसके मुकाबले कुछ और चीजों से लगाव उनके लिए ज्यादा मायने रखता है।
पिछले दो साल से वह सिरसा के किसानों के साथ जिस तरह से व्यस्त हुए हैं तो उनके पास करने के लिए काफी कुछ है। तंवर और उनके सहयोगियों ने आठ गांवों के किसानों को 370 एकड़ बंजर जमीन वन संबंधी परियोजना की खातिर देने के लिए मना लिया है। इनमें से छह गांव सिरसा के हैं जबकि बाकी दो गांव सिरसा के पास स्थित ब्लॉक के।
तंवर का कहना है कि बड़ी मुश्किल से किसान इस परियोजना में जमीन देने के लिए सहमत हुए। मौसम परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म के तहत आने वाले कार्बन क्रेडिट की खातिर यह विचार अपनाया गया था।
तंवर ने कहा कि इस परियोजना के जरिए अगले 20 साल में 12 हजार टन कार्बन डाईऑक्साइड सोख लिया जाएगा और हर पांच साल में कार्बन क्रेडिट के जरिए किसानों की कमाई होगी। करीब दो सौ किसानों की सहभागिता से सोसायटी की स्थापना कर ली गई है और इसी व्यवस्था के तहत किसानों को भुगतान किया जाएगा।
यूरोपीय आयोग के मुताबिक, यह पहली ऐसी वन संबंधी छोटी परियोजना है जिसे सीडीएम प्रमाणपत्र मिलेगा। इस जमीन पर लगाए गए पौधे जैसे ही बड़े होंगे, वे कार्बन एमिशन रिडक्शन पॉइंट हासिल करना शुरू कर देंगे। इस पॉइंट को औद्योगिक देशों की उन कंपनियों को बेचा जा सकेगा, जो कार्बन उत्सर्जन की बाबत पहले से तय लक्ष्य के वादे से बंधे हुए हैं।
तंवर के मुताबिक, इन कंपनियों को कार्बन एमिशन रिडक्शन पॉइंट 5 डॉलर प्रति सीईआर की दर से बेचा जा सकेगा और पांच साल बाद हर किसान सालाना 1200 रुपये कमा पाएंगे। उनका कहना है कि यह जमीन बेकार थी और ऐसी बेकार जमीन से जो कुछ कमाई होगी, वह सिर्फ और सिर्फ मुनाफा ही होगा।
यह परियोजना हरियाणा सरकार की विस्तृत सामुदायिक वानिकी परियोजना का हिस्सा है, जिसने सीडीएम सर्टिफिकेट के लिए आवेदन नहीं किया है। एक दशक पुरानी यह परियोजना 11 जिलों में चल रही है और वानिकी और समान पौधारोपण को जीविका के साधन से जोड़ने की कोशिश में जुटी हुई है।
तंवर के मुताबिक, सीडीएम के प्रस्ताव का विचार बाद में आया था और इसके लिए अलग से एक परियोजना बना दी गई। उनका कहना है कि इसके महत्त्व को देखते हुए अब हरियाणा सरकार इसे पायलट परियोजना के तौर पर देख रही है और इस तरह के प्रस्ताव उन इलाकों में लागू करने पर विचार कर रही है जहां की जमीन या तो अनुपजाऊ है या फिर जहां खेती नहीं होती।
तंवर ने बताया कि कुछ राज्य जिन्होंने हरियाणा का दौरा किया है, इसे आदर्श परियोजना की तरह देख रहे हैं और अपने इलाके में ऐसी परियोजना चलाने की खातिर जानकारी मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु, गुजरात और हिमाचल प्रदेश पहले इस बाबत पूछताछ कर चुका है और सीडीएम प्रस्ताव तैयार करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है।
तंवर के मुताबिक, सच्चाई यह है कि विश्व में सीडीएम की खातिर प्रमाणित होने में छोटे समुदाय वानिकी प्रस्ताव को दशक लग गए क्योंकि सीडीएम विकल्प के तौर पर यह नया है और इस संबंध में जागरूकता में कमी देखी गई है।
कार्बन उत्सर्जन से लड़ने में जंगल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लेकिन क्या सीडीएम के लिए अर्हता प्राप्त नए बनाए गए कृत्रिम जंगल मौजूदा जंगल की तरह अच्छे हैं जो कि अपने संरक्षण की बाबत शोर मचा रहे हैं? यह एक सवाल है जिसके जवाब की प्रतीक्षा हो रही है और यह जवाब नीति निर्माता और वैश्विक मौसम परिवर्तन में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले जर्मनी के बॉन में देंगे। वन कटाई न करने वाले राज्यों की तरफ से मुआवजे की मांग हो रही है, लेकिन इस प्रस्ताव पर कोई सकारात्मक रिस्पांस अब तक नहीं मिला है।
वनों को लगाने की खातिर मुआवजा के आसान विकल्प या वन कटाई से उत्सर्जन में कमी लाने के मामले से इसकी प्रतियोगिता हो रही है, जिसके तहत राज्यों को पहले वनों की कटाई की अनुमति मिलती है और उसके बदले किसी दूसरी जगह नए पौधे लगाए जाते हैं। हालांकि यह कार्बन सिंक बना सकता है, जो जैव विविधता की संपत्ति का मुआवजा नहीं हो सकता क्योंकि यह प्राकृतिक जंगल की समाप्ति के साथ खत्म हो जाएगा।
