भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक को तय शुरुआत से एक दिन पहले टालने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि सरकार तीन नए स्वतंत्र बाहरी सदस्यों की नियुक्ति करने में नाकाम रही। जानकारी के मुताबिक खोज समिति ने नाम तय कर लिए थे लेकिन कुछ प्रक्रियात्मक अनिवार्यताओं के कारण प्रक्रिया स्थगित कर दी गई। यह बात विचित्र है कि सरकार प्रक्रिया को समय पर पूरा नहीं कर सकी जबकि 2016 में एमपीसी के गठन के साथ ही यह भी तय हो गया था कि बाहरी सदस्यों का कार्यकाल कब समाप्त हो रहा है। ऐसे हालात में जब आर्थिक अनिश्चितता बहुत अधिक हो तब सरकार को ऐसी गड़बड़ी से बचने के लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए थी। नियुक्ति में देरी से न केवल केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता प्रभवित हुई बल्कि इससे यह संकेत भी निकलता है कि देश का नीतिगत प्रतिष्ठान उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं है। आदर्श स्थिति में सरकार को बाहरी सदस्यों की नियुक्ति कुछ सप्ताह का समय रहते हुए ही कर लेनी चाहिए थी। ऐसा करने से इन सदस्यों को भी आर्थिक हालात और नीतिगत संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने का समय मिल जाता। यह कहा जा सकता है कि देरी होने से नीतिगत मोर्चे पर कोई बदलाव नहीं होगा लेकिन यह सवाल बनता है कि यदि बाहरी सदस्यों का कार्यकाल कुछ माह पहले समाप्त हो जाता तो क्या होता? तब बैठक के यूं स्थगित होने का आरबीआई की अर्थव्यवस्था की मदद करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता। वह भी ऐसे समय पर जब मौद्रिक नीति से काफी काम करने की आशा थी। सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया को यथाशीघ्र पूरा करना चाहिए।
नीतिगत कदमों के संदर्भ में देखें तो अधिकांश अर्थशास्त्री दरें निर्धारित करने वाली समिति से यह आशा करते हैं कि वह नीतिगत दरों में इस बार कोई बदलाव नहीं करेगी। मुद्रास्फीति पिछले कई महीनों से आरबीआई के लक्षित दायरे से ऊपर है। इसके अलावा व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी बनी हुई है और यह बात भी मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित कर सकती है। चूंकि निकट भविष्य में पूंजी प्रवाह अधिशेष बना रहने की आशा है तो ऐसे में मुद्रा बाजार में आरबीआई का हस्तक्षेप रुपये की तरलता बढ़ाएगा। इस संदर्भ में केंद्रीय बैंक के लिए बेहतर यही होगा वह स्पष्ट करे कि वह आयातित मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए रुपये में कितना अधिमूल्यन होने देना चाहता है। हालांकि नकदी और मुद्रा प्रबंधन एमपीसी के दायरे में नहीं आता लेकिन ये दोनों कारक मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में संबद्ध जोखिमों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना चाहिए।
इसके अलावा जानकारी यह भी है कि सरकार मांग में नई जान फूंकने के लिए एक और प्रोत्साहन पैकेज पर विचार कर रही है। यदि एमपीसी अगला नीतिगत कदम उठाने के पहले राजकोषीय रुख के और अधिक स्पष्ट होने की प्रतीक्षा करे तो बेहतर होगा। यह बतौर सरकारी ऋण भी प्रबंधक आरबीआई के लिए महत्त्वपूर्ण होगा, खासकर ऐसे समय जब वह सरकारी बॉन्ड को वांछित कीमत पर नहीं बेच पा रहा है। सरकारी उधारी में इजाफा और निरंतर उच्च मुद्रास्फीति मौद्रिक नीति की आर्थिक गतिविधियों के समर्थन की क्षमता को प्रभावित करेगा। बाजार केंद्रीय बैंक से यह अपेक्षा करेंगे कि वह मुद्रास्फीति और वृद्धि संबंधी पूर्वानुमान पेश करे। केंद्रीय बैंक ने महामारी के दस्तक देने के बाद से ऐसा नहीं किया है। यह देखना महत्त्वपूर्ण होगा कि केंद्रीय बैंक आने वाली तिमाहियों में मुद्रास्फीति और वृद्धि को लेकर क्या अनुमान रखता है। खासतौर पर मौजूदा हालात में। इससे उसके निर्णयों को विश्वसनीयता मिलेगी और अनुमानों के प्रबंधन में सहायता भी होगी।
