मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की द्विमासिक समीक्षा बैठक में नीतिगत दरें यथावत रखने का निर्णय लिया गया। इसकी उम्मीद पहले से की जा रही थी। नीतिगत दरें तय करने वाली भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की समिति ने नीतिगत रीपो दर में कोई बदलाव नहीं किया और आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए आवश्यकता महसूस होने तक अपना उदारवादी रुख कायम रखने का निर्णय लिया है। नीतिगत स्तर पर विशेष प्रोत्साहन धीरे-धीरे वापस लिए जाने पर एमपीसी में कोई चर्चा नहीं हुई। समिति ने वृहद आर्थिक हालात पर अपने रुख में भी कोई बदलाव नहीं किया है। मगर कोविड-19 वायरस के नए स्वरूप ओमीक्रोन के प्रसार के बाद अब अनिश्चितता बढ़ गई है। समिति के अनुसार चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत रह सकती है। महंगाई दर वर्तमान वर्ष में 5.3 प्रतिशत के औसत स्तर पर रहने का अनुमान जताया गया है। समिति के अनुसार चौथी तिमाही में महंगाई 5.7 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच सकती है मगर अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही में यह कम होकर 5 प्रतिशत रहनी चाहिए।
यद्यपि महंगाई दर हाल के महीनों में नरम जरूर हुई है और इसके आरबीआई के सहज दायरे में भी रहने की उम्मीद है मगर वास्तविक नीतिगत दर ऋणात्मक रह सकती है। प्रमुख महंगाई दर ऊंचे स्तर पर बनी हुई है और 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा के करीब है। आने वाली तिमाहियों में अर्थव्यवस्था में सुधार और मांग में तेजी होने से खुदरा महंगाई में भी तेजी दिख सकती है। इस संदर्भ में देखें तो आरबीआई धीरे-धीरे वित्तीय प्रणाली में आवश्यकता से अधिक नकदी कम करने के उपायों पर भी ध्यान दे रहा है। केंद्रीय बैंक ने वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो (वीआरआरआर) नीलामी का आकार बढ़ा दिया है। 3 दिसंबर को वीआरआरआर के जरिये वित्तीय प्रणाली से 6 लाख करोड़ रुपये वापस लिए गए। आरबीआई इस महीने के अंत तक यह आंकड़ा बढ़ाकर 7.6 लाख करोड़ रुपये तक करना चाहता है। केंद्रीय बैंक मुख्य रूप से नीलामी के जरिये अतिरिक्त नकदी वापस लेना चाहता है और फिक्स्ड-रेट रिवर्स रीपो के माध्यम से नकदी वापस लेने की प्रक्रिया धीमी करना चाहता है। बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर आरबीआई वीआरआरआर की अवधि भी बढ़ाएगा।
वित्तीय प्रणाली में अतिरिक्त नकदी कम होने से अल्प अवधि की दरें बढ़ जाएंगी और इस तरह आरबीआई बिना कोई खलल डाले प्रोत्साहन उपाय वापस ले सकता है। आरबीआई ऐसा करने की स्थिति में है क्योंकि वेटेड एवरेज रिवर्स रीपो रेट इस समय 3.8 प्रतिशत के स्तर पर है।
आर्थिक मोर्चे पर अनिश्चितता अभी दूर नहीं हुई है जिसे देखते हुए केंद्रीय बैंक अपने विकल्प खुले रखना चाहता है। हालांकि वृहद स्तर पर अब इस पर चर्चा की जा सकती है कि मौद्रिक नीति किस सीमा तक आर्थिक वृद्धि को समर्थन दे सकती है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियां कोविड-19 महामारी पूर्व की अवधि की तुलना में थोड़ी ही अधिक रहीं। चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में वृद्धि दर कम होकर 6 प्रतिशत रह सकती है और न्यून आधार के कारण अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसमें फिर तेजी आएगी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कोविड महामारी की दूसरी लहर की वजह से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई थीं। अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मौद्रिक नीति ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है और आरबीआई अब नीतिगत स्तर पर हालात सामान्य करने की पहल करे तो अच्छा होगा। इससे केंद्रीय बैंक को मूल्य स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित करने में आसानी होगी। अब यहां से आर्थिक वृद्धि को दिशा देने में सरकार की भूमिका अधिक कारगर होगी। मौद्रिक नीति पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता जोखिम बढ़ा सकती है।
