गत 10 अक्टूबर को चीन के साथ पूर्वी लद्दाख से सैनिकों को पीछे हटाने को लेकर होने वाली कोर कमांडर स्तर की 13वें दौर की वार्ता भी विफल रही। इससे यही संकेत मिलता है कि भारत को चीन के साथ लगने वाली 3,440 किलोमीटर लंबी सीमा पर सीमा विवादों के प्रबंधन के लिए तत्काल एक नई नीति बनाने की जरूरत है। गत वर्ष जून में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झड़प के दौरान दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचा था। उसके बाद से चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लगातार भारतीय सीमा में अतिक्रमण करता रहा है। हालांकि चीन कुछ जगहों पर पीछे हटा है लेकिन कुछ रिपोर्टों के अनुसार चीन की सेना फिलहाल पहले की तुलना में अधिक भारतीय क्षेत्र पर काबिज है। अब तक भारत की नीति मजबूती दिखाने वाली बातें करने और चीनी ऐप्स और निवेश पर रोक लगाकर देशप्रेमी ढंग से विरोध करने और एलएसी के पास सैन्य संसाधन बढ़ाने की रही है।
इस वर्ष फरवरी में पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम करने के बाद भारत ने उस सीमा से सैनिकों को हटा लिया। जून में उसने 50,000 से अधिक सैनिक तथा लड़ाकू बेड़े चीन सीमा पर तैनात किए और वहां कुल तैनाती करीब 3,00,000 हो गई। यह तादाद एक वर्ष पहले की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक है। वहां तोपों की भी तैनाती की गई है जबकि लंबी दूरी तक वार करने में सक्षम मिसाइलों से लैस राफेल लड़ाकू विमान भारत-चीन सीमा पर बनने वाली किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
ऐसा लगता नहीं कि इस बढ़े हुए सैन्य जमावड़े ने चीन को भयभीत किया हो। हालांकि यह भी स्पष्ट नहीं है कि चीन ने इस क्षेत्र में कितने जवान तैनात किए हैं। रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन की सेना ने गलवान घाटी के जिस इलाके को खाली किया था वहां वह नए सिरे से घुसपैठ कर रही है। इसके अलावा विगत कुछ सप्ताह में अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी घुसपैठ के प्रयास किए गए हैं। इतना ही नहीं चीन की सेना अपनी हमलावर क्षमताओं को इस तरह बढ़ा रही है कि अगर दोनों देशों के बीच बड़े पैमाने पर जंग के हालात बने तो भारत को काफी नुकसान होगा। रक्षा स्थापनाओं को मजबूत करने के अलावा चीन की सेना ने एलएसी से लगे इलाकों में अपने हथियार तथा मालवहन क्षमताओं में भी काफी इजाफा किया है। उसने दक्षिणी लद्दाख में रूस की एस-400 वायु प्रतिरक्षा प्रणाली स्थापित की है। भारत को भी अगले एक-दो महीनों में यह प्रणाली मिलेगी। चीन गलवान घाटी के आसपास संचार उपकरणों और सड़कों की स्थिति में भी सुधार कर रहा है। उसने पैंगोंग सो में अपने क्षेत्र में गश्ती नौकाएं बढ़ा दी हैं। उसने तिब्बत में तीन अग्रिम लड़ाकू ठिकाने भी बनाए हैं जो पूरी सीमा का ध्यान रख सकते हैं।
इन बातों से यही संकेत निकलता है कि भारत को भी मजबूत प्रतिक्रिया देनी होगी। यह सोच भ्रामक है कि इस क्षेत्र में भारत के सैन्य विकल्प सीमित हैं। बुनियादी ढांचे के पुराने सर्वेक्षण और सीमा पर हमारी क्षमताओं से यही संकेत निकलता है कि भारतीय सीमा के पास कई मजबूत बिंदु हैं जहां वह उसी प्रकार लाभ ले सकता है जैसा कि चीन ने गत डेढ़ वर्षों में किया है। चीन ने गत वर्ष की घुसपैठ के बाद केवल पैंगोंग सो के इलाके को पूरी तरह खाली किया और यह इस बात का उदाहरण है कि भारतीय सेना ने इस क्षेत्र में अपनी बेहतर स्थिति का लाभ उठाया। इसके लिए निवेश चाहिए। यह जाहिर है कि चीन हमारी तुलना में बहुत अधिक व्यय करता है। महामारी ने हमारे बजट पर और अधिक दबाव बनाया है। सैन्य विवाद का उचित हल यही है कि निरंतर वार्ता की जाए। लेकिन चीन ने दिखाया है कि बातचीत के साथ दबाव बनाए रखना कारगर तरीका है।
