जो लोग देश के बिजली क्षेत्र पर निगाह रखते हैं, उन्हें यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि पिछले साल देश में जोड़ी गई बिजली उत्पादन क्षमता लक्ष्य के एक तिहाई से भी कम है।
यह तथाकथित चूक हर साल और प्रत्येक योजना में देखने को मिलती है तथा हमेशा इस चूक के लिए कोई न कोई सफाई मौजूद रहती है। इस साल भी ऐसा ही हुआ। बिजली संयंत्र के लिए सहायक उपकरणों की कमी को दोष दिया जा रहा है। इनकी आपूर्ति पिछले कई वर्षों से तंग चल रही है।
जरा पूछिए कि इस कमी को दूर करने के लिए क्या किया गया और आपके सामने कई तरह की अविश्वसनीय व्याख्याओं का एक सैलाब खड़ा कर दिया जाएगा। इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का यह बयान मुझे पूरी तरह से धोखा लगता है-
‘पिछले दो वर्षों के दौरान बिजली उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के लिहाज से काफी तेजी से काम हुआ है। इस गति को बनाए रखा जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि देश में कोयला, जल ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा अक्षय ऊर्जा स्रोतों के जरिए हर साल उत्पादन क्षमता में 12,000 मेगावॉट से 15,000 मेगावॉट की बढ़ोतरी की जाएगी।’
सवाल यह है कि आखिर यह तथाकथित तेजी कहां हुई है? मौजूदा पंचवर्षीय योजना के पहले साल के दौरान उत्पादन क्षमता में 9,200 मेगावॉट की बढ़ोतरी की गई। बीते साल मुश्किल से 3,450 मेगावॉट उत्पादन क्षमता को चालू किया गया। अगर उत्पादन शुरू होने की परिभाषा में ढील दी जाए तो भी ग्रिड तक बमुश्किल 4,9000 मेगावॉट बिजली ही पहुंच सकी है।
अगर यह वह गति है जिसे बनाए रखने की इच्छा जताई जा रही है तो फिर हर साल 12,000 मेगावॉट से 15,000 मेगावॉट उत्पादन क्षमता जोड़ने के वाद को पूरा करना असंभव होगा। दूसरे प्रमुख राष्ट्रीय दल भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में अपेक्षाकृत अधिक आक्रामक लक्ष्य दिए गए हैं।
इसमें कहा गया है कि, ‘हमारा लक्ष्य अगले पांच वर्षो के दौरान बिजली उत्पादन क्षमता में कम के कम 1,20,000 मेगावॉट की बढ़ोतरी करना है। इसमें से अक्षय ऊर्जा स्रोतों की 20 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी।’ इसका अर्थ है कि प्रति वर्ष बिजली उत्पादन क्षमता में 24,000 मेगावॉट की बढ़ोतरी की जाएगी।
यह आंकड़ा समूची दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान जोड़ी गई 20,000 मेगावाट क्षमता के मुकाबले अधिक है। इस तरह के असंभव लक्ष्य को हासिल करने के लिए धरती आसमान को एक कर देना होगा। बिजली क्षेत्र इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे राजनीतिक दल एक दूसरे से बढ़चढ़ कर वादे करते हैं और उसके बाद उन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं।
वादे करना आसान है। सबके लिए बिजली। सबको शिक्षा। सबके स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल। सबके लिए आवास। सबकी सुरक्षा की जिम्मेदारी और सभी के लिए आजीविका के साधन। इस देश की एक अरब से अधिक की आबादी को इस सभी बुनियादी सुविधाओं की जरुरत है और इन्हें मुहैया कराने के लिए प्रत्येक राजनीतिक दल और सरकार को प्रयास करना चाहिए। फिर भी ये सरकार की सैकड़ों दूसरी प्राथमिकताओं में दबी पड़ी हैं।
इसलिए सत्ताधारी दल के घोषणा पत्र में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाना उसकी प्राथमिकता है। गंगा नदी घाटी प्राधिकरण भी उसकी शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है। घोषणा पत्र में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण विद्युतीकरण और वितरण घाटे में कमी को शीर्ष प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा विदेशों में बसे भारतीयों से जुड़े मुद्दे भी प्राथमिकताओं में शामिल हैं।
भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र में कृषि (खासकर मृदा और जल प्रबंधन, मानव और पशु पोषण और मत्स्य पालन), पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग, ऊर्जा, संचार और परिवहन जैसे क्षेत्रों को शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल किया गया है। इसके साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी और धातु विज्ञान जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की बात भी कही गई है। गंगा नदी और संघ शासित प्रदेशों पर भी खास ध्यान दिया जाएगा।
देश के लिए एक आदर्श योजना में किए गए वादों की प्राथमिकताएं प्रभावी ढंग से स्पष्ट होनी चाहिए। यह एक ऐसा विचार है जो देश को एक बेहतर दौर में ले जाने की क्षमता रखता है। आजादी के बाद बांधों के निर्माण को खास तरजीह दी गई। इन्हें आधुनिक भारत का मंदिर कहा गया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की गई।
देश के चार कोनों को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क कार्यक्रम एक ऐसा विचार था जिसके फायदे लंबे समय तक मिलते। दुर्भाग्य से दोनों राजनीतिक दलों को विज्ञापन में इस तरह के किसी बड़े विचार का पूरी तरह से अभाव है।
ऐसे में रचनात्मक विचारक एडविन डे बोनो का प्रसिद्ध उदाहरण याद आता है – पतवार ठीक से काम नहीं कर रही थी। इंजन भी दम तोड़ रहा था। चालक दल अक्षम और हतोत्साहित है। उम्मीद खत्म हो रही है। तभी अचानक एक नया कैप्टन और प्रबंधन दल सामने आता है। समस्याएं साफ हैं। चालक दल उत्साहित है। सब कुछ उत्कृष्ट है। लेकिन जहाज अभी भी गलत दिशा में जा रहा है!
लग रहा है कि कोई भी जहाज को सही दिशा में नहीं ले जा रहा है। इसके बजाए व्यापक परिदृश्य पर गौर किए बगैर छोटी-छोटी चिंताओं को दूर करने पर जोर दिया जा रहा है। शायद इस समय एक महत्त्वपूर्ण विचार एक मेगाहाउसिंग परियोजना की शुरुआत का हो सकता था, ताकि 2 करोड़ से अधिक मकानों की कमी को पूरा किया जा सके।
इस परियोजना को सार्वजनिक निजी साझेदारी के जरिए पूरा किया जा सकता है। इससे इस्पात, सीमेंट, पेंट और साज-सामान, श्रम और भूमि की मांग तैयार होगी। इससे पूंजी एक हाथ से दूसरे हाथ में जाएगी और आर्थिक गतिविधियों में इजाफा होगा।
एक बड़ा विचार यह भी हो सकता है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मसौदा विधेयक, 2009 के तहत सभी को मुफ्त में स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध हो। इसमें पर्याप्त भोजन, पानी, साफ-सफाई और बुनियादी आवास शामिल होंगे। कृषि का औद्योगीकरण एक और बड़ा विचार हो सकता है। अगर सभी इंजन सही दिशा में काम करें तो देश में कुछ भी हासिल करने की असीमित क्षमताएं हैं।
