भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के लिए इस सप्ताह होने वाली समीक्षा बैठक में दरों संबंधी निर्णय अपेक्षाकृत आसान हो सकता है। किसी को यह आशा नहीं है कि समिति नीतिगत दरों में कोई बदलाव करेगी। काफी संभावना है कि यथास्थिति बरकरार रहे। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति पिछले कई महीनों से केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित दायरे से ऊपर है। सामान्य परिस्थितियों में शायद आरबीआई द्वारा कुछ कड़ाई की जाती। अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति 7.6 फीसदी रही। परंतु ऐसे समय में जबकि उत्पादन में कमी आ रही है, एमपीसी से आशा की जा रही है कि वह आर्थिक गतिविधियों में मददगार बनेगी और मौद्रिक समायोजन बनाए रखेगी।
बहरहाल, एमपीसी और आरबीआई दोनों को उन मसलों को संबोधित करना होगा जो निकट से मध्यम अवधि के दौरान नीतिगत चयन को प्रभावित करेंगे। उदाहरण के लिए कहा जाता रहा कि कोविड-19 संबंधित प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति क्षेत्र में समस्या आई जिसका असर कीमतों पर पड़ा और कीमतें बढ़ीं। बहरहाल, प्रतिबंध शिथिल हो गए और दूसरी तिमाही में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया अपेक्षाकृत तेज नजर आई। ऐसे में संभव है कि अन्य कारक मुद्रास्फीति की दर बढ़ा रहे हों और यह आने वाले महीनों में ऊंची बनी रहे। केंद्रीय बैंक को वर्ष के वृद्धि अनुमानों के साथ मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमानों को भी संशोधित करना होगा। सरकार को आशा थी कि वर्ष की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति की दर घटकर 5.4-4.5 फीसदी तक हो जाएगी लेकिन अब ऐसा होना मुश्किल नजर आ रहा है। हालांकि नकदी प्रबंधन का काम एमपीसी के दायरे में नहीं है लेकिन यदि वह यह विचार करे तो बेहतर होगा कि अतिरिक्त नकदी मुद्रास्फीति संबंधी निष्कर्षों पर क्या असर डालेगी। व्यवस्था में फिलहाल 6.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त नकदी है और अल्पावधि की बाजार दरें रिवर्स रीपो दर से नीचे जा चुकी हैं। इसका असर लंबी अवधि में देखने को मिल सकता है और यह मौद्रिक नीति की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर सकता है।
आर्थिक हालात सुधरने के साथ-साथ आरबीआई को नकदी की स्थिति पर अपने रुख की समीक्षा करनी होगी। समस्या का कुछ हद तक समाधान उस वक्त होगा जब चालू वित्त वर्ष के अंत में नकद आरक्षित अनुपात में की गई आपातकालीन कटौती भी स्वत: वापस हो जाएगी। परंतु केवल इतना पर्याप्त नहीं होगा। इसके अलावा मुद्रा बाजार में आरबीआई का हस्तक्षेप जारी रहने की संभावना है ताकि विदेशी मुद्रा के रूप में अतिरिक्त नकदी के प्रवाह का समायोजन किया जा सके। यह विदेशी मुद्रा घरेलू नकदी में बढ़ोत्तरी की अहम वजह है। अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ आयात बेहतर होने की आशा है। निकट भविष्य में भुगतान संतुलन अधिशेष की स्थिति भी बेहतर हो सकती है क्योंकि पूंजी प्रवाह मजबूत होगा। आरबीआई रुपये में ज्यादा अधिमूल्यन नहीं होने दे सकता क्योंकि इससे भारत की बाहरी प्रतिस्पर्धी क्षमता पर असर होगा। ऐसे में उसे नकदी की समस्या से निपटने के अन्य उपायों पर विचार करना चाहिए। एक विकल्प यह हो सकता है कि डेट पूंजी की आवक की समीक्षा की जाए। वह विदेशी मुद्रा के बहिर्गमन को प्रोत्साहन देने पर भी विचार कर सकता है। इसके अलावा सरकार के साथ मशविरा कर वह बाजार स्थिरीकरण बॉन्ड पर भी विचार कर सकता है।
यह सब सावधानीपूर्वक करना होगा ताकि वित्तीय हालात अचानक तंग न हो जाएं। यह समझना आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारों की उधारी बहुत अधिक है। हकीकत में अतिशय नकदी के साथ सरकार कुछ अधिक खर्च करके आर्थिक गतिविधियों की मदद कर सकती है क्योंकि अगले वर्ष से राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की शुरुआत हो जाएगी। कुल मिलाकर एमपीसी के लिए दरों का निर्णय आसान होगा लेकिन उसे निरंतर उच्च मुद्रास्फीति और अतिशय नकदी की चुनौतियों से निपटने को लेकर भी बहस शुरू करनी होगी।
