कोविड-19 महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन से भारत के उबरने की प्रक्रिया त्वरित, आंशिक, कमजोर एवं विभेदकारी रही है। अप्रैल 2020 में रोजगार में 30 फीसदी की भारी गिरावट आई थी। वास्तविक संदर्भ में वर्ष 2019-20 में मौजूद 40.35 करोड़ रोजगार में से सिर्फ 28.22 करोड़ ही दुनिया के सर्वाधिक कठोर लॉकडाउन में बच पाए। लेकिन रोजगार परिदृश्य जल्द ही इससे उबरता दिखा। मई 2020 में 3.15 करोड़ रोजगार लौट आए और जून 2020 में भी 6.32 करोड़ रोजगार वापस आ गए। फिर जुलाई में भी 1.53 करोड़ रोजगार बहाल हो गए। नतीजा यह हुआ कि जुलाई 2020 तक सख्त लॉकडाउन से हुई रोजगार क्षति घटकर सिर्फ 1.11 करोड़ ही रह गई। लेकिन बहाली आंशिक ही दिखती है। अप्रैल 2020 में लगे सख्त लॉकडाउन के 17 महीने बाद भी अगस्त 2021 में कुल रोजगार वर्ष 2019-20 से कम रहा। अगस्त 2021 में मौजूद 39.8 करोड़ रोजगार 2019-20 में उपलब्ध रोजगार से 57 लाख कम ही थे। वैसे बेरोजगारी दर की हालत सुधरी है। वर्ष 2019-20 में 7.6 फीसदी रही बेरोजगारी दर का जुलाई-अगस्त 2021 में औसत 7.6 फीसदी था। अप्रैल 2020 में बेरोजगारी दर 23.5 फीसदी तक पहुंच गई थी, लिहाजा उसके बाद आया सुधार खासा प्रभावी है। लेकिन ऐसा लगता है कि बेरोजगारी दर 7-8 फीसदी के उच्च स्तर पर स्थिर हो गई है।
बहाली का आंशिक चरित्र श्रम बाजार के दो अन्य महत्त्वपूर्ण अनुपातों में भी नजर आता है। अगस्त 2021 में 40.5 फीसदी पर रही श्रम भागीदारी दर 2019-20 की तुलना में 2.1 फीसदी तक कम थी, वहीं रोजगार दर भी 2.2 फीसदी कम थी। बेरोजगारी दर की तुलना में ये दोनों अनुपात कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। लॉकडाउन के बाद इनमें नाटकीय गिरावट आई थी लेकिन बाद में तेजी से सुधार भी आया। लेकिन यह बहाली पहले लॉकडाउन के 17 महीने बाद भी आंशिक ही है।
लगता है कि बहाली कमजोर पड़ गई है। इसकी वजह यह है कि क्रमिक सुधार बड़ी तेजी से गायब हो गए हैं। सितंबर 2020 के बाद के 12 महीनों में रोजगार में सिर्फ 44,483 की शुद्ध संचयी वृद्धि हुई। अगर 40 करोड़ के आधार को देखें तो यह बढ़त नगण्य ही है। महीना-दर-महीना रोजगार वृद्धि कई बार हुई लेकिन बाद में वे गुम हो गए। नए रोजगार का बड़ा हिस्सा प्रच्छन्न रोजगार के रूप में आया है क्योंकि कामगारों ने कारखानों से निकलकर खेतों का रुख कर लिया था। रोजगार संवद्र्धन में तेजी का सिलसिला कायम न रहना इशारा करता है कि बहाली प्रक्रिया समय से पहले ही धीमी पड़ गई। यह काफी गंभीर स्थिति है क्योंकि अतिरिक्त नौकरियां पैदा होने का सिलसिला थम चुका है जबकि कामकाजी उम्र वाली आबादी में बढ़ोतरी जारी है। यह बहाली एक हद तक विभेदकारी भी रही है। रोजगार में आई कमी वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच ज्यादा है। अगस्त 2021 में उपलब्ध रोजगार वर्ष 2019-20 की तुलना में 57 लाख कम हैं। इनमें 88 लाख रोजगार वेतनभोगी तबके में कम हुए हैं जबकि उद्यमियों के रोजगार में 20 लाख की कमी है। हालांकि कृषि क्षेत्र में 47 लाख और दिहाड़ी मजदूरों एवं छोटे कारोबारियों के रोजगार में हुई 7 लाख की वृद्धि ने इस नुकसान की कुछ भरपाई की। लेकिन लगता है कि आर्थिक बहाली का सिलसिला वेतनभोगी कर्मचारियों एवं उद्यमियों पर सख्त रहा है।
वेतनभोगी रोजगार की गुणवत्ता बेहतर होने से लोग उनकी चाहत रखते हैं। दिहाड़ी मजदूर तो लॉकडाउन हटने के साथ ही काम पर लौट गए लेकिन अपनी नौकरियां गंवा चुके वेतनभोगी कर्मचारी उसी काम पर वापस नहीं लौट सकते और न ही उन्हें फौरन कोई दूसरी नौकरी मिल सकती है। इन नौकरियों के जाने से उन कर्मचारियों के परिवारों के ज्यादा तनाव में आने की आशंका है। वेतनभोगी नौकरियों में बेहतर वेतन मिलने से इन नौकरियों के बड़ी संख्या में जाने का कुल मांग पर गहरा असर पड़ा है।
वेतनभोगी नौकरियों की बहाली पर कोविड की दूसरी लहर का असर नहीं पड़ा लेकिन यह प्रक्रिया काफी धीमी है। वेतनभोगी नौकरियों के रूप में वर्ष 2019-20 में 8.6 करोड़ रोजगार जुड़े थे। अप्रैल-जून 2020 में आई महामारी की पहली लहर में यह संख्या गिरकर 7 करोड़ रह गई थी। लेकिन जुलाई 2020-मार्च 2021 में यह सुधरकर 7.3 करोड़ हो गई थी। फिर अप्रैल-जून 2021 में आई दूसरी लहर में यह 7.6 करोड़ रही और जुलाई-अगस्त में इसका औसत 7.7 करोड़ रहा। दूसरी लहर में वेतनभोगी नौकरियों का टिका रहना सुकूनदायक है लेकिन इनमें बहाली का सुस्त होना चिंता की भी बात है। श्रम बाजार की बहाली एक और तरह से भेदभावपूर्ण है। यह ग्रामीण बाजारों के पक्ष में झुका हुआ है। वर्ष 2019-20 और अगस्त 2021 के दौरान कम हुए कुल 57 लाख रोजगार में से 37 लाख शहरी क्षेत्रों के थे। कुल रोजगार में शहरी भारत की हिस्सेदारी भले ही 32 फीसदी है लेकिन कोविड-19 महामारी में गंवाए गए रोजगार में इसका हिस्सा 65 फीसदी तक रहा है।
एक मायने में ग्रामीण भारत की हालत बेहतर रही है। इसे महामारी काल में सिर्फ 19 लाख रोजगारों का ही नुकसान झेलना पड़ा। वैसे ग्रामीण भारत को बचाने का काम कृषि क्षेत्र ने किया है। कृषि क्षेत्र ने महामारी काल में 46 लाख अतिरिक्त कामगारों को खपा लिया लेकिन ग्रामीण भारत को इस दौरान गैर-कृषि क्षेत्र में 65 लाख रोजगार का नुकसान भी हुआ। सितंबर के पहले तीन हफ्तों के उपलब्ध आंकड़ों से श्रम बाजार संकेतकों में सुधार दिखाई दे रहा है। श्रम भागीदारी दर स्थिर है लेकिन बेरोजगारी दर में गिरावट है। इसकी वजह से रोजगार दर में मामूली बढ़त है। यह उत्साहजनक बात है। ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में यह बहाली देखी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में आबादी का बड़ा हिस्सा रहने से अखिल भारतीय अनुमानों पर इसका असर भी आनुपातिक रूप से ज्यादा होता है। हालांकि सितंबर में अपेक्षित सुधार के कम ही रहने की संभावना है और बहाली के अभी अधूरा होने और कमजोर पड़ जाने से इसमें ज्यादा सुधार होने की उम्मीद कम ही है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
