सरकार की भर्ती नीति में बदलाव अथवा नियुक्तियों में देरी को लेकर बार-बार सर उठा रहे विरोध प्रदर्शन यही बताते हैं कि देश में रोजगार सृजन की स्थिति अच्छी नहीं है। सशस्त्र बलों में भर्ती नीति में बदलाव को लेकर देश भर में इन दिनों जो हिंसात्मक विरोध हो रहा है उसके चलते बड़े पैमाने पर सरकारी और निजी परिसंपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों आलोचकों को शांत करने के लिए यह घोषणा की थी कि 10 लाख लोगों को रोजगार दिया जाएगा। इससे भी पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था पर्याप्त रोजगार तैयार नहीं कर पा रही है और देश की श्रमशक्ति दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
सावधिक श्रम शक्ति सर्वे (पीएलएफएस) की ताजा वार्षिक रिपोर्ट से एक बार फिर यह बात स्थापित होती है। साफ है कि लोगों को बड़ी तादाद में सरकारी नौकरियां देने से यह समस्या हल होने वाली नहीं है।
हालांकि यह वार्षिक रिपोर्ट जुलाई 2020 से जून 2021 की अवधि पर आधारित है और यह दिखाती है कि बेरोजगारी दर में गिरावट आई है तथा श्रमशक्ति भागीदारी बढ़ी है। लेकिन इन आंकड़ों के परे भी नजर डालना आवश्यक है।
रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी दर पिछले वर्ष के 4.8 प्रतिशत की तुलना में कम होकर 4.2 प्रतिशत रह गई। उससे भी पहले यानी 2018-19 में यह 5.8 प्रतिशत थी। चूंकि इस अवधि में अर्थव्यवस्था कठोर लॉकडाउन से निपट रही थी इसलिए श्रम शक्ति भागीदारी दर बढ़कर 41.6 प्रतिशत हो गई। इससे पिछले वर्ष यह 40.1 प्रतिशत थी। इस अवधि में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर में भी सुधार हुआ।
बहरहाल यह सुधार इसलिए नहीं हुआ क्योंकि रोजगार के अवसर सुधरे। श्रमशक्ति में ज्यादा लोग इसलिए शामिल हुए कि आम परिवारों की आय में कमी आई। इसे रोजगार की गुणवत्ता से भी समझा जा सकता है। समीक्षा अवधि में कृषि क्षेत्र में रोजगारशुदा लोगों का प्रतिशत बढ़कर 45.6 हो गया जबकि एक वर्ष पूर्व यह 45.6 प्रतिशत तथा 2018-19 में यह 42.5 प्रतिशत था।
इसके परिणामस्वरूप विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की तादाद कम हुई। यह देश के श्रम बाजार में अपेक्षित बदलाव के एकदम उलट है। उत्पादकता में वृद्धि के साथ सतत उच्च वृद्धि तभी हासिल हो सकती है जब श्रम शक्ति को कृषि क्षेत्र से दूर किया जा सके। कुल मिलाकर स्वरोजगार करने वालों की तादाद बढ़ी है जबकि वेतनभोगी श्रमिक कम हुए हैं। वेतन-भत्ते पाने वाले श्रमिकों में भी किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं पाने वाले कर्मचारियों का प्रतिशत पिछले साल से थोड़ा कम होकर 53.8 प्रतिशत हुआ लेकिन यह 2018-19 के 49.6 प्रतिशत से फिर भी बहुत अधिक था।
जनवरी-मार्च 2022 के लिए पीएलएफएस की ताजातरीन तिमाही रिपोर्ट जो गत सप्ताह जारी की गई उसमें वार्षिक रिपोर्ट की तुलना में बहुत सीमित जानकारी है। यह रिपोर्ट आर्थिक गतिविधियों में सुधार के साथ श्रम शक्ति भागीदारी में कोई ठोस बदलाव नहीं दर्शाती। चूंकि देश का नीतिगत प्रतिष्ठान बिगड़ते वैश्विक परिवेश में आर्थिक सुधार मजबूत करने पर केंद्रित है इसलिए सबसे अहम चुनौती यह होगी कि बढ़ती श्रमशक्ति के लिए रोजगार कैसे तैयार किया जाए। एक ओर जहां सरकार प्रोत्साहन योजना के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र में चुनिंदा उद्योगों को बढ़ावा दे रही है, वहीं वह शायद जरूरी पैमाने पर रोजगार तैयार न कर पाए। देश की करीब आधी श्रम शक्ति कृषि कार्यों में लगी है और वह केवल कम कौशल वाले विनिर्माण के काम में ही लगायी जा सकती है। देश की श्रम शक्ति भागीदारी भी काफी कम है और मध्यम से दीर्घावधि में वह वृद्धि पर असर डालेगी।
