देश भर में कोरोना से ठीक होने वाले लोगों की तादाद कोविड-19 संक्रमण के नए मामलों से ज्यादा है। यह बेहतर रुझान है लेकिन इसके उलट दिल्ली में कोरोना के मामलों में नए सिरे से इजाफा हो रहा है। दिल्ली में कोरोना के इलाज के लिए चिह्नित अस्पतालों में बिस्तरों की कमी पडऩी शुरू हो गई है। दिल्ली सरकार ने मंगलवार को यह प्रस्ताव रखा कि उन बाजारों को कुछ दिनों के लिए बंद रखा जाए जहां कोविड-19 मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है। दिल्ली में रोज नए सामने आने वाले कोरोना के मामले महाराष्ट्र से अधिक हो चुके हैं और हालात इतने गंभीर हैं कि सरकार संसद का शीतकालीन सत्र निरस्त करने पर विचार कर रही है। यह सत्र आमतौर पर नवंबर के अंतिम सप्ताह में आरंभ होता है।
हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बीच अस्वाभाविक सहयोग और सौहार्द देखने को मिल रहा है। केजरीवाल के कार्यकाल में केंद्र सरकार के साथ तनाव की घटनाएं कई बार सामने आ चुकी हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने ऐसे कठिन समय में दिल्ली के लोगों की सहायता करने के लिए केंद्र सरकार को सार्वजनिक रूप से धन्यवाद दिया।
रविवार को एक आपातकालीन बैठक के बाद दोनों सरकारें हरकत में आईं और वेंटिलेटर वाले बिस्तरों की तादाद बढ़ाने और रक्त प्लाज्मा की आपूर्ति बढ़ाने की दिशा में काम शुरू हुआ। सोमवार से अन्य राज्यों (यहां तक कि असम और तमिलनाडु जैसे दूरदराज राज्यों) तक से चिकित्सक और अन्य कर्मचारी मदद के लिए दिल्ली पहुंचने शुरू हो गए। मंगलवार से 10,000 अतिरिक्त आरटी-पीसीआर जांच शुरू की जाएंगी और इस प्रकार रोज होने वाली जांच का आंकड़ा 28,000 हो जाएगा। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने कुछ महीने पहले 10,000 बिस्तरों वाली जो कोविड-19 सुविधा विकसित की थी उसमें ऑक्सीजन सुविधा वाले बिस्तरों की तादाद बढ़ाने की तैयारी चल रही है।
जितनी तेजी से और जिस गहनता से कदम उठाए जा रहे हैं वह तारीफ के काबिल है लेकिन यदि दोनों सरकारों ने समय रहते इस पुरानी कहावत को समझ लिया होता कि बचाव इलाज से बेहतर है तो शायद इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती। यह केवल संयोग नहीं है कि दिल्ली में मामलों में तेजी त्योहारी मौसम में आ रही है। बाजारों में भीड़ देखने को मिली और दुकानदार मास्क नहीं लगा रहे थे। करवाचौथ, दशहरा और दीवाली के पहले ब्यूटी पार्लर भी महिलाओं से भरे रहे। नीति आयोग ने पहले ही आकलन किया था कि ऐसा हो सकता है और अनुमान जताया था कि प्रति 10 लाख कोविड पीडि़तों की तादाद 361 से बढ़कर 500 पहुंच सकती है।
यह बढ़ोतरी असंतोषजनक पुलिसिंग और निगरानी तथा जागरूकता की कमी की ओर इशारा करती है। केंद्र और दिल्ली सरकारों को इसका अनुमान होना चाहिए था। बाजारों में कोरोना दिशानिर्देश का पालन सुनिश्चित कराने जैसे बुनियादी कदम उठाकर भी वायरस को थामने की दिशा में प्रभावी कदम उठाया जा सकता था। इसके बजाय दिल्ली पुलिस ने काफी समय और संसाधन वाहन चालकों और यात्रियों से ऐसे सुरक्षा मानकों का पालन कराने में लगा दिए। केजरीवाल अब लोगों से हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं कि वे मास्क पहनें और आपस में छह फुट की दूरी रखें। यदि इस संदेश को उन इलाकों में प्रसारित किया जाता जहां सामुदायिक प्रसार का खतरा अधिक है तो यह अधिक असरदार होता। वायरस की रोकथाम के ये सहज और सस्ते तरीके हैं और इनके जरिये सरकार उन प्रयासों और खर्च से बच सकती थी जो उसे वायरस से संबंधित अस्पताल और स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के विस्तार में लगाना पड़ रहा है।
