उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध कराने का काम वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) करती हैं। ये डिस्कॉम आमतौर पर बिजली उत्पादक कंपनियों से दीर्घकालिक खरीद समझौते के तहत बिजली खरीदती हैं। बहरहाल बिजली की मांग अलग-अलग समय पर अलग-अलग होती है। इस मांग में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। बिजली की आपूर्ति में भी अनिश्चितता और उतार-चढ़ाव नजर आता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि डिस्कॉम उन उत्पादक कंपनियों से बिजली खरीदें जिनके पास अधिशेष उत्पादन क्षमता मौजूदा हो।
यहां दिक्कत इसलिए आती है क्योंकि सूचना तंत्र सुसंगत नहीं है। बिजली वितरण कंपनियों और उत्पादन कंपनियों को आपस में यह जानकारी ही नहीं होती कि किसे बिजली चाहिए और किसके पास अधिशेष बिजली है। बिजली के एक दिन आगे के अग्रिम कारोबार के लिए दशक भर पहले बिजली एक्सचेंज स्थापित किए गए थे। हाल ही में उसे रियल टाइम पर आधारित कर दिया गया। जिनको बिजली बेचनी या खरीदनी होती है वे मात्रा के साथ अपनी बोली लगाते हैं। इसमें उस कीमत का उल्लेख होता है जिस पर वे खरीद या बिक्री करना चाहते हैं। एक्सचेंज मांग और आपूर्ति में संतुलन कायम करता है और कीमत निर्धारित करता है। यदि कुल आपूर्ति मांग से अधिक हुई तो कुछ मात्रा अनबिकी रह जाती है। इसी प्रकार यदि मांग आपूर्ति से अधिक है तो कुछ मांग पूरी नहीं हो पाती है। जिस कीमत पर अंतिम आपूर्ति या मांग पूरी होती है उसे बाजार का समापन मूल्य माना जाता है।
आज उत्पादित बिजली का करीब 5 प्रतिशत दो परिचालन बिजली एक्सचेंजों पर खरीदा या बेचा जाता है। पहला इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) और दूसरा पावर एक्सचेंज इंडिया लिमिटेड (पीएक्सआईएल)। आईईएक्स का पंजीयन 2006 में हुआ। इसमें कई सदस्य शामिल हुए, आयातित सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया और जून 2008 में इसने काम करना शुरू कर दिया। दूसरी ओर पीएक्सआईएल का पंजीयन फरवरी 2008 में हुआ और उसने 2008 के अंत में स्वदेशी सॉफ्टवेयर के साथ काम शुरू किया। बाजार पर शुरुआत से ही आईईएक्स का दबदबा है। इन एक्सचेंज पर अलग-अलग तरह के उत्पाद हैं। एक दिन आगे के बाजार में प्रतिभागी अगले दिन के लिए बिजली के 15 मिनट के ब्लॉक को लेकर लेनदेन करते हैं। तय मात्रा और कीमत के साथ खरीदार और विक्रेता दोनों की बोली दो में से एक एक्सचेंज पर रखी जाती है। इन बोलियों की जानकारी अन्य बोलीकर्ताओं को नहीं लगती। समय समाप्त होने पर हर एक्सचेंज तमाम मांग और आपूर्ति बोलियों को एकत्रित करता है और बाजार निपटान मूल्य तय करता है। दोनों एक्सचेंजों में यह कीमत अलग-अलग होती है।
केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) ने बिजली बाजार नियमन (पीएमआर), 2020 के मसौदे में प्रस्ताव रखा कि दोनों बाजारों की बोलियों को जोड़ दिया जाए और एक बाजार निपटान मूल्य तय किया जाए। इसका लाभ यह होगा कि अधिक किफायती होने से उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को अधिकतम लाभ मिलेगा और पारेषण बुनियादी ढांचे का बेहतर उपयोग होगा। दो अलग-अलग बाजार होने से कुछ लाइनों का इस्तेमाल नहीं होता जबकि कुछ पर दबाव बढ़ जाता है।
कुछ विद्वान दोनों एक्सचेंज को जोडऩे के इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। उनमें प्रमुख हैं जानेमाने अर्थशास्त्री एस एल राव जो सीईआरसी के पहले चेयरमैन हैं। उनकी दलील है कि दो अलग-अलग बाजार प्रतिस्पर्धा बढ़ाते हैं एनएसई और बीएसई या फिर एमेजॉन या फ्लिपकार्ट जैसे ऐसे अन्य बाजारों को एक करने की आवश्यकता नहीं महसूस की गई।
इससे पहले कि मैं बाजार एकीकरण के पक्ष में दलील दूं, मैं यह बता दूं कि मैं पीएक्सआईएल में एक स्वतंत्र निदेशक भी हूं। पहली बात, बाजार को जोडऩे का प्रस्ताव केवल समेकित लेनदेन वाले हिस्से के लिए है जिसमें एक दिन आगे का कारोबार और रियल टाइम बाजार शामिल हैं।
केवल ऐसे समेकित बाजार में ही गुप्त नीलामी होती है। ऐसी नीलामियों में प्रतिभागी अन्य प्रतिभागियों की बोली के बारे में जाने बिना अपनी बोली लगाते हैं। कीमतों का खुलासा नीलामी समाप्त होने के बाद ही होता है। ऐसे में प्रतिभागियों के पास ऑर्डर या कीमत में बदलाव का कोई अवसर नहीं होता।
इसके विपरीत एनएसई या बीएसई में जहां निरंतर कारोबार होता है वहीं प्रतिभागियों को मौजूदा मूल्य की जानकारी होती है और वे इस आधार पर अपने ऑर्डर में तब्दीली ला सकते हैं। इस प्रकार उन्हें वास्तविक प्रतिस्पर्धा का लाभ मिलता है। बल्कि कई बार तो दोनों एक्सचेंजों में एक ही शेयर की कीमत अलग-अलग होती है और इसके बाद अंतरपणन के माध्यम से इनके बीच मूल्य के अंतर को कम किया जाता है। ऐसे में बहुत कम अवसर ऐसे होते हैं जब समान शेयर के मूल्य में अंतर देखने को मिले।
एमेजॉन और फ्लिपकार्ट के मामले में भी ऐसा ही हुआ। वहां भी खरीदार को खरीद का निर्णय लेने से पहले यह पता होता है कि दोनों में से किस प्लेटफॉर्म पर कोई वस्तु किस कीमत पर मिल रही है। सीईआरसी खरीदारों और विक्रेताओं के लिए खुली नीलामी वाले कारोबार या निरंतर मैचिंग वाली प्रक्रिया में दोनों एक्सचेंज को जोडऩे की वकालत नहीं करता।
क्या बाजारों को जोडऩे से उस प्रतिस्पर्धा के लाभ कम होंगे जो दो एक्सचेंज होने से मिल रहे हैं? एक्सचेंज विभिन्न मोर्चों पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह प्रतिस्पर्धा अनुबंधों की विविधता के आधार पर होती है, लेनदेन की सुगमता के आधार पर, ग्राहकों को मुहैया कराई गई तकनीकी सुविधाओं के आधार पर, सूचनाओं के प्रसार के आधार पर और उपलब्ध कराए गए विश्लेषण उपायों के आधार पर भी। सस्ती पहुंच और प्रतिभागियों के लिए सेवा की गुणवत्ता भी इसका आधार है। जाहिर है बाजारों को जोड़े जाने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहेगा।
बाजार को जोडऩे के अभाव में अलग-अलग कीमतों का भय प्रतिभागियों को किसी एक एक्सचेंज का रुख करने पर मजबूर करता है। इससे एकाधिकार जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। यह बात प्रतिस्पर्धा के लाभ को कम करती है।
विद्युत अधिनियम, 2003 के आदेशों के अनुसार देश में जीवंत विद्युत बाजार तैयार करने के लिए प्रतिस्पर्धा का विकास आवश्यक है। प्रतिस्पर्धा सबसे बेहतर हल और ऐसे नीतियां और नियामकीय ढांचा सुनिश्चित करती है जो स्थिर कार्य क्षेत्र मुहैया कराने के लिए आवश्यक हैं।
सीईआरसी ने अपने बिजली बाजार नियमन, 2020 के मसौदे में बाजार को इस तरह जोडऩे का प्रस्ताव रखा है। यदि ऐसा होता है तो सही मायने में एक प्रतिस्पर्धी और किफायती विविध बिजली एक्सचेंज मॉडल उभरेगा और नवाचार और बेहतर सेवाओं के रूप में इसके लाभ सामने आएंगे।
(लेखक इंटीग्रेटेड रिसर्च ऐंड ऐक्शन फॉर डेवलपमेंट के चेयरमैन एवं योजना आयोग के पूर्व सदस्य हैं)
