भारतीय रिजर्व बैंक ने जो नकद सुरक्षित अनुपात (सीआरआर) और रेपो रेट में 50 प्रतिशत बढ़ोतरी करने का फैसला किया है, उससे कई लोगों को हैरानी हुई होगी।
हैरानी की वजह यह नहीं कि रिजर्व बैंक ने कुछ किया है बल्कि हैरानी की वजह इस कदम की ताकत को लेकर है। ऐसा इसलिए क्योंकि सोमवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर वाई वी रेड्डी ने इशारा किया था कि वह महंगाई की समस्या पर सतर्कतापूर्वक दृष्टिकोण अपनाएंगे।
इस तरह से उन्होंने तेज और अचानक से कोई कदम उठाने से इनकार किया। जिस तरह से रिजर्व बैंक ने अचानक तेजी से यह कदम उठाया उससे एक बात तो निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि शुक्रवार को जब महंगाई का आंकड़ा 11.05 प्रतिशत पर था, तो सबके पसीने छूटने लगे थे। वैसे सभी इस बात का अनुमान लगा रहे थे कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के बाद महंगाई की दर 10 प्रतिशत को छू लेगी।
लेकिन जैसे ही इसकी दर 11 प्रतिशत को पार किया,ऐसा लगने लगा कि बात कुछ और है। जब इसकी व्याख्या की जाने लगी कि महंगाई में अनुमान से ज्यादा वृद्धि का क्या कारण रहा, तो ऐसा कहा गया कि हाल के महीनों में रुपये के मूल्य में तेजी से गिरावट और आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ही इसका सबसे बडा कारण रही है। अप्रैल महीने में शुल्क कटौती की घोषणा से जहां एक ओर राजस्व प्रभावित हुआ वहीं महंगाई के मर्ज का भी इलाज नहीं हो पाया।
एक प्रश्न कौंधना शुरू हो गया है कि मौद्रिक नीतियां किस तरह से महंगाई को नियंत्रित कर पाएगी और अगर नियंत्रित होगी भी तो किस कीमत पर। आज तक मांग-आपूर्ति का समीकरण संतुलित है। सीआरआर की दर बढ़ाकर अगले महीने तक बैंकों से 38,000 हजार करोड़ रुपये सोख कर मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने की कवायद की गई है। रिजर्व बैंक ने कंपनियों की ऋण लेने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए इस तरह के आर्थिक कदम उठाए हैं।
कुछ अर्थशास्त्रियों को यह भ्रम है कि आर्थिक विकास को बिना प्रभावित किए हुए महंगाई को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर महंगाई से कोई अच्छी प्रवृत्ति देखने को मिली है तो वह है कि अब लोग जरूरत की चीजों को खरीदने में ही तंगी महसूस कर रहे हैं और कार जैसी चीजों को खरीदने की योजना छोड़ रहे हैं। वैसे महंगाई को नियंत्रित करने के उपायों से दो बातें उभर कर सामने आती हैं।
पहला कि सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि विकास से ज्यादा महत्वपूर्ण महंगाई को रोकना है और इस दिशा में कड़े कदम उठाने से वह बाज नहीं आएगी। दूसरा सब्सिडी का भार कम करने के लिए इसकी विस्तार क्षमता पर भी विराम लगा दिया गया है, जो सरकार के राजनीतिक हित में नहीं है।
वैश्विक महंगाई के संकट से या तो लोग को जिंसों की खरीदारी कम कर रहे हैं और अगर कर भी रहे हैं तो इसकी गति काफी धीमी है। इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती कि रिजर्व बैंक के इस कदम से समस्या का निदान हो ही जाएगा, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि इसका सामूहिक असर कुछ दिनों में जरूर दिखेगा।