अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा होने से भारत के समक्ष आर्थिक चुनौतियों को न तो नकारा जा सकता है और न ही उन्हें हल्का आंका जा सकता है बल्कि इनका समाधान करने के प्रयास करने होंगे। बता रहे हैं रथिन रॉय
इस साल दो रोचक चीजें साथ-साथ हुई हैं। बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय भारत से अधिक हो गई और भारत ब्रिटेन को पछाड़कर विश्व में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।इन दोनों तथ्यों की तुलना करने पर रोचक तथ्य उजागर होते हैं। पहला, यदि हम आर्थिक असमानता को दरकिनार कर दें तो आकार और संपन्नता की कड़ी कमजोर है। देश के रूप में भारत के मुकाबले बांग्लादेश ज्यादा गरीब है लेकिन भारतीयों की तुलना में बांग्लादेश के नागरिक ज्यादा अमीर हैं। अर्थव्यवस्था के आकार के कारण भारत जी20 का सदस्य है लेकिन जी20 में भारत के नागरिक सबसे ज्यादा गरीब हैं।
भारत के बाद दूसरा सबसे गरीब देश इंडोनेशिया है लेकिन भारतीयों की तुलना में इंडोनेशिया के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय 150 फीसदी ज्यादा है और भारत की अर्थव्यवस्था के मुकाबले इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था एक तिहाई है। जी20 में ब्रिटेन की प्रति व्यक्ति आय 43,000 डॉलर है। ब्रिटेन प्रति व्यक्ति आय के मामले में जी20 में चौथे स्थान पर है। ब्रिटेन के लोग भारतीयों के मुकाबले 23 गुना अधिक धन की बचत और/या उपयोग कर सकते हैं।
अर्थव्यवस्था का आकार मायने रखता है और देश एक आर्थिक ताकत के रूप में अपनी क्षमताओं से अधिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। बड़ी अर्थव्यवस्था होने पर देश का सकल घरेलू उत्पाद अधिक होता है। भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद के कारण बहुत बड़ी सेना का खर्चा वहन कर सकता है। ज्यादा सकल घरेलू उत्पाद होने के कारण भारत सामूहिक रूप से कहीं अधिक मात्रा में निवेश कर सकता है।
अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने के कारण भारत को आर्थिक स्वायत्तता है। भारत घरेलू संसाधनों का इस्तेमाल कर सकता है और स्वतंत्र रूप से व्यापार एवं आर्थिक नीतियां बना सकता है। लेकिन जब ज्यादा संपन्नता की बात आती है तो ऐसा नहीं होता है और इसका प्रभाव पड़ता है। भारत का व्यक्तिगत आयकर प्रति वर्ष सालाना 2,50,000 की आय से शुरू होता है और इस पर नाममात्र का पांच प्रतिशत कर लगता है। इसके बाद 5,00,000 रुपये तक की सालाना आमदनी पर 20 प्रतिशत की मानक दर से कर (जी20 के मानकों के अनुसार कम) लगता है। यह प्रति व्यक्ति आय की तुलना में तीन गुना से अधिक है।
इसके विपरीत ब्रिटेन में 20 प्रतिशत की दर (जी20 के मानकों के अनुसार कम दर) प्रति व्यक्ति आय के एक तिहाई से शुरू होती है। यह प्रति व्यक्ति आय की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति आय के एक तिहाई पर 20 फीसदी कर लगना शुरू होता है।
लिहाजा भारत सरकार को अपने खर्चे पूरे करने के लिए पर्याप्त अनुपात में उधारी लेनी पड़ती है लेकिन ब्रिटेन को ऐसा नहीं करना पड़ता है। सभी लोगों से (जो व्यक्ति कुछ संपन्न हैं) कर नहीं लिया जा सकता है। प्रति व्यक्ति आय से नीचे कमाने वाले व्यक्ति पर कर नहीं लगाया जा सकता है। लिहाजा विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद व्यक्तिगत स्तर पर संपन्नता का स्तर कम होने के कारण भारत की स्वास्थ्य, शिक्षा और सार्वजनिक सेवाओं के लिए कोष एकत्रित करने की क्षमता सीमित है।
ज्यादा सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति कम आय से मुश्किल स्थितियां उजागर होती हैं। भारत विश्व में पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन इसकी वैश्विक बाजार में भागीदारी केवल 3.5 फीसदी है। हालांकि भारत विश्व का पांचवां सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है जहां घरेलू अंतिम खपत 2 लाख करोड़ डॉलर है। भारत का यह बाजार जर्मनी के बाजार के बराबर है।
हालांकि भारत की प्रति व्यक्ति खपत व्यय केवल 1,500 डॉलर है जबकि जर्मनी में प्रति व्यक्ति खपत व्यय 24,000 डॉलर है। लिहाजा जर्मनी की तुलना में भारत की उपभोक्ता की खरीदारी क्षमता 1/14 है। जर्मनी के उपभोक्ताओं की तुलना में भारत के शीर्ष के केवल 5 फीसदी ग्राहक ही सामान का उपभोग कर सकते हैं। भारत की तुलना में जर्मनी बड़ा बाजार है और उनकी खरीदारी की क्षमता अधिक है। भारत की कुल आमदनी में शीर्ष 10 प्रतिशत भारतीय परिवारों की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत है जबकि जर्मनी में यह हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है। लिहाजा भारत को निवेश लाने के लिए आकर्षक बाजार बनने के वास्ते जी20 देशों में असमानता की बढ़त को कायम रखना होगा।
यहां पर यह बात भी स्पष्ट होती है कि भारत के उपभोक्ताओं को ज्यादातर सामान की आपूर्ति अनौपचारिक क्षेत्र से होती है। सकल घरेलू उत्पाद के बड़े आकार और प्रति व्यक्ति कम आय की बदौलत वैश्विक स्तर पर सामान और सेवाएं चिरस्थायी ढंग से कायम नहीं हो सकती हैं। यदि कोई बिना सब्सिडी वाले औपचारिक प्रतिष्ठान में चाय पीना और समोसा खाना चाहता है तो यह आबादी के शीर्ष 10 फीसदी को छोड़कर हरेक के लिए दावत होगी लेकिन अनौपचारिक प्रतिष्ठान में यह वहनीय है। इस तरह मांग का संरचनात्मक स्वरूप उस संपन्नता को अपनेआप सीमित कर देता है जो विस्तृत हो रहा भारत का आर्थिक आकार उसे प्रदान करता है।
पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय असमानताएं हैं। भारत के 11वीं बड़ी अर्थव्यवस्था से पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में असमानताएं बढ़ गई हैं। उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद 1,000 डॉलर से कम है और उत्तर प्रदेश नेपाल या तंजानिया से भी ज्यादा गरीब है। हालांकि तमिलनाडु का प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद 3,000 डॉलर है। ऐसे में गरीब राज्य की पूंजी और श्रम का पलायन अमीर राज्यों की तरफ होता है।
श्रमिक अस्थायी प्रवासी हो जाते हैं लेकिन गरीब क्षेत्र से लोग अमीर इलाकों में रहने के लिए नहीं जाते हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि गरीब क्षेत्रों की पूंजी अमीर क्षेत्रों में चली जाती है। तमिलनाडु में ऋण जमा अनुपात 1.19 है जबकि उत्तर प्रदेश में यह अनुपात 0.48 है। उत्तर प्रदेश की 29 फीसदी आबादी को गरीब के रूप में वर्गीकृत किया गया है जबकि तमिलनाडु में यह केवल 4 फीसदी है। तमिलनाडु मानव विकास के मामले में काफी ऊपर है और जिसका सूचकांक मूल्य 0.71 है। इस मामले में तमिलनाडु दक्षिण अफ्रीका या मिस्र के समान है। हालांकि उत्तर प्रदेश इस सूचकांक के मामले में 0.59 पर है जो नेपाल से भी बदतर है।
मेरा इरादा किसी राष्ट्रवादी की खुशियों पर ग्रहण लगाना नहीं है। आजादी के 25 या 50 साल की तुलना में 75वें साल में भारत निस्संदेह रूप से बेहतर और मजबूत आर्थिक स्थिति में है। भारत को ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन हर राष्ट्रवादी को इतिहास से सीख लेनी होगी। हर राष्ट्रवादी को यह स्वीकारना होगा कि अर्थव्यवस्था के बड़े होने से भारत के समक्ष आर्थिक चुनौतियों को न तो नकारा जा सकता है और न ही उन्हें हल्का आंका जा सकता है।
मैंने विस्तार से समझाया है कि कैसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले व कम व्यक्तिगत आय वाले देश में कुछ चुनौतियां उभरती हैं। इस चुनौतियों पर काबू पाया जा सकता है। प्रचार कर स्वर्णिम भविष्य की शानदार दीवारें बनाने के बजाए इन चुनौतियों को स्वीकारना होगा और इन्हें हल करने के प्रयास करने होंगे।
(लेखक लंदन स्थित ओडीआई के प्रबंध निदेशक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)
