इस महीने की एक तारीख को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर में तेज गिरावट दर्ज की गई है। यह उससे पिछले सप्ताह के 10.72 प्रतिशत से गिरकर एक नवंबर को खत्म हुए हफ्ते में 8.98 प्रतिशत रह गई है।
महंगाई दर में आई तेज गिरावट इस लंबी बहस को शांत करने के लिए काफी है कि इस वक्त अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती में महंगाई दर है या फिर मंदी। कुछ लोगों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि अब तेजी से घटती महंगाई दर नई चुनौतियां पैदा कर सकती है।
इस वक्त तो महंगाई दर में आई इतनी जबरदस्त गिरावट ने ही लोगों को हैरान परेशान कर रखा है। कहा जा रहा है कि यह पिछले 18 सालों में महंगाई में आई सबसे तेज गिरावट है। वैसे, ज्यादातर लोग इस बात को मान चुके हैं कि अभी महंगाई की दर और भी कम होती रहेगी। मौजूद सबूतों की मानें तो महंगाई में गिरावट की उम्मीद और भी ज्यादा है।
इस वक्त सभी जिंसों की कीमतों में गिरावट आ रही है। कच्चे तेल, स्टील, रबर और कृषि उत्पादों की कीमतों में पिछले कुछ हफ्तों के दौरान यह गिरावट तो और भी जबरदस्त रही है। ‘इकोनॉमिस्ट’ के कमोडिटी इंडेक्स की मानें तो सिर्फ एक महीने में ही जिंसों की कीमतों में कम से कम 21 फीसदी की गिरावट आई है। इसीलिए महंगाई की दर को तो अभी नीचे आना ही आना था।
माना कि आज पिछले साल के मुकाबले महंगाई की दर खासी ज्यादा है। पिछले साल के नवंबर के महीने में महंगाई की दर केवल तीन फीसदी थी। लेकिन एक बात तो तय है कि अब रिजर्व बैंक की साल के अंत तक महंगाई दर को सात फीसदी के घेरे में लाने की कोशिशें अब रंग लाती दिखाई दे रही हैं। अब तो उम्मीद यह है कि मार्च तक महंगाई की दर 5-5.5 फीसदी के रिजर्व बैंक के ‘कम्फर्ट जोन’ में पहुंच जाएगी।
वैसे अब कीमतों में आ रही तेज गिरावट उत्पादकों के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। दरअसल, उन्होंने काफी ऊंची कीमतों पर कच्चा माल लिया था और अब तैयार माल की कीमत काफी गिर चुकी है। स्टील को ही ले लीजिए, सरकार अब एक न्यूनतम कीमत तय करने के बारे में सोच रही है। इसे देखकर उस दौर की याद बरबस ही आ जाती है, जब सरकार ने स्टील की चढ़ती कीमतों को देखते हुए अधिकतम सीमा तय कर दी थी।
ऐसा लगता है कि आज भी सरकार जिंसों की कीमतों को बाजार के भरोसे नहीं चाहती। दरअसल, बाजार पर कीमतों को तय करने का फैसला छोड़कर उनका भला ही होगा क्योंकि बाजार मंदी और तेजी दोनों से निपटना जानता है। जहां तक दूसरे कारणों की बात है, तो इस साल मानसून में काफी अच्छी बारिश हुई थी।
साथ ही, अब तो खरीफ की फसल भी बाजार में उतर चुकी है। आज कई सेक्टरों में उपभोक्ता मांग में कमी आई है। ऊपर से निर्माण और दूसरे सेक्टर मंदी की मार से जूझ रहे हैं। इस वजह से कीमतों पर काफी बुरा असर पड़ा है। एक तरफ तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष अगले साल वैश्विक मंदी की भविष्यवाणी कर रही है।
अपने गठन के बाद इस संस्था ने पहली बार ऐसी चेतावनी जारी की है। फिर भी मांग में इस वक्त कमी तो बरकरार ही रहेगी। इसलिए आगे वाले वक्त में कीमत कम ही रहेंगी। यह इस बात का सबूत है कि अब खतरा महंगाई नहीं, बल्कि कीमतों का कम रहना है।