राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने सोमवार को वित्त वर्ष 2021-22 के राष्ट्रीय आय के दूसरे अग्रिम अनुमान तथा तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर 2021 तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े जारी किए। अनुमान के मुताबिक चालू वर्ष में जीडीपी वृद्धि 8.9 फीसदी रहेगी जबकि 2020-21 में इसमें 6.6 फीसदी की गिरावट आई थी। उस वर्ष महामारी तथा देशव्यापी लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया था। 8.9 फीसदी का आंकड़ा 9.2 फीसदी वृद्धि से कम है जो जनवरी में प्रस्तुत अग्रिम अनुमान में जताई गई थी। यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या यह गिरावट वायरस के ओमीक्रोन प्रकार के उच्च तीव्रता वाले संकेतकों पर असर के कारण आई है, जिसका प्रभाव हमारे यहां जनवरी में पडऩा शुरू हुआ या फिर ऐसा पूर्वी यूरोप में चले आ रहे तनाव के कारण जिंस कीमतों में इजाफे के परिणामस्वरूप हुआ। यदि कारण दूसरा है तो आंकड़ों पर उसका पूरा प्रभाव सामने आना अभी बाकी है तथा अंतिम आंकड़े और अधिक निराश करने वाले हो सकते हैं। निश्चित तौर पर अनुमानित नॉमिनल वृद्धि में ऊपर की ओर सुधार किया गया है, भले ही वास्तविक वृद्धि पहले से कम है। इसका अर्थ यह हुआ कि इन अनुमानों में कुछ मुद्रास्फीतिक अनुमान दर्ज है। तिमाही स्तर पर वृद्धि सालाना आधार पर घटकर 5.4 फीसदी रह गई जबकि पिछली तिमाही में यह 8.5 फीसदी थी। यह आंकड़ा भी अधिकांश बड़ी समाचार एजेंसियों द्वारा अर्थशास्त्रियों से चर्चा में निकले पूर्वानुमान से कम था। ओमीक्रोन का प्रकोप होने के पहले ही वृद्धि की गति धीमी थी। जाहिर है भविष्य के आंकड़े 2021 की पहली छमाही में कोविड की दूसरी लहर के आधार प्रभाव से प्रभावित होंगे।
क्षेत्रवार वृद्धि के अलग-अलग आंकड़े भी निराश ही करते हैं। विनिर्माण के चालू वर्ष में 10 फीसदी से अधिक गति से बढऩे का अनुमान है जबकि खनन के 12 फीसदी से अधिक वृद्धि हासिल करने का अनुमान है, जबकि गत वर्ष इसमें 9 फीसदी गिरावट थी। निर्माण भी गत वर्ष 7 फीसदी से अधिक गिरावट के बाद 10 फीसदी से विकसित होगा। उच्च तीव्रता वाले संकेतकों के चलते कुछ विश्लेषकों का कहना है कि आंकड़े इससे बेहतर हो सकते हैं। उदाहरण के लिए विनिर्माण में अक्टूबर से दिसंबर तिमाही में सालाना आधार पर कोई सुधार नहीं हुआ है। जबकि निर्माण के तिमाही आंकड़ों के मुताबिक भी गिरावट आई है। व्यापार, स्वागत उद्योग तथा संचार उद्योग में तेजी जरूर आई लेकिन वह तेजी इतनी नहीं रही है कि 2020-21 की 20 फीसदी से अधिक की कमी की भरपाई कर सके। लब्बोलुआब यह कि ये क्षेत्र अभी भी महामारी के कारण आई गिरावट से निजात नहीं पा सके हैं। कुल मिलाकर 2019-20 के बाद दो महीनों में कुल वृद्धि बमुश्किल तीन फीसदी से थोड़ी अधिक रही है। अब तक की बात करें तो महामारी के कारण हमारी जीडीपी को 7 फीसदी का नुकसान हुआ है।
इन निराश करने वाले आंकड़ों के सामने आने के बाद सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों को जिंस तथा खासतौर पर यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद तेल आयात के बिल में होने वाले इजाफे को भी ध्यान में रखना होगा। सरकार के लिए यह आवश्यक हो सकता है कि वह इस बात का परीक्षण करे कि तेल कीमतों में इस अस्थायी इजाफे के कितने हिस्से को वह उस राजकोषीय गुंजाइश के चलते सहन कर सकती है जिसकी व्यवस्था उसने केंद्रीय बजट में की है। मुद्रास्फीति में होने वाले इजाफे ने दीर्घावधि के परिणामों को जटिल बना दिया है और ऐसे में इसके प्रबंधन के लिए अप्रत्याशित उपाय करने की आवश्यकता पर विचार करना पड़ सकता है।
