इस साल नवंबर में रोजगार से जुड़े प्रमुख आंकड़े थोड़े उत्साहजनक हैं लेकिन इनके विवरण पर बारीकी से गौर करने पर निराशा होती है। बेरोजगारी की दर अक्टूबर के 7.8 प्रतिशत से घटकर नवंबर में 7 प्रतिशत रह गई, वहीं रोजगार की दर 37.28 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 37.34 प्रतिशत हो गई। इससे रोजगार के मौके में 14 लाख की वृद्धि हुई और यह नवंबर 2021 में 40.08 करोड़ से बढ़कर 40.21 करोड़ तक हो गया।
पहली निराशा की बात यह है कि श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) अक्टूबर के 40.41 फीसदी से कम होकर नवंबर में 40.15 प्रतिशत हो गई। एलपीआर में यह गिरावट लगातार दूसरे महीने हुई है। इस साल एलपीआर में संचयी रूप से अक्टूबर और नवंबर महीने के दौरान 0.51 प्रतिशत अंकों की गिरावट आई है। अगर हम लॉकडाउन के दौरान आर्थिक रूप से गिरावट वाले महीने को छोड़ दें तब भी अन्य महीनों के औसत बदलावों की तुलना में यह एक अहम गिरावट है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का असर खत्म होने के बाद अक्टूबर और नवंबर में गिरावट से पता चलता है कि एलपीआर में जून में कमी आने के बाद इसके 39.6 फीसदी के स्तर पर पहुंचने के बाद सुधार आया। कोविड-19 महामारी की पहली लहर में सुधार के बाद ऐसा ही हुआ था। कोविड-19 की पहली लहर से पहले एलपीआर लगभग 43 प्रतिशत से कम होकर करीब 36 फीसदी तक हो गई। इसमें 41 फीसदी तक का सुधार हुआ और इसके बाद इसकी रफ्तार कम हो गई। दूसरी लहर आने से पहले इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई और श्रम भागीदारी दर 40 फीसदी से थोड़ा अधिक रहा और यह जून 2021 की तिमाही के दौरान कम हो गया। वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में एलपीआर में सुधार हुआ और यह सितंबर 2021 तक 40.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। लेकिन फिर यह अक्टूबर में 40.4 प्रतिशत के स्तर पर आ गया और इसके बाद नवंबर में यह 40.2 फीसदी के स्तर पर आ गया।
महामारी के दो झटकों की वजह से श्रम भागीदारी दर संरचनात्मक रूप से कम हो गई और गिरावट का रुख निचले स्तर पर भी जारी है। भारत के पास अब एक एलपीआर है जो महामारी के पहले के स्तर के 43 फीसदी की तुलना में 40 फीसदी के करीब है। भारत का एलपीआर वैश्विक स्तर से काफी कम है। विश्व बैंक के मुताबिक, 2020 में दुनिया के लिए आईएलओ मॉडल के अनुसार यह अनुमान 58.6 फीसदी के स्तर पर था। यही मॉडल भारत के एलपीआर को 46 फीसदी के स्तर पर रखता है। भारत एक बड़ा देश है और यहां श्रम भागीदारी दर कम होने से दुनिया में भी एलपीआर कम हो जाती है। अन्य देशों में विश्व औसत की तुलना में बहुत अधिक एलपीआर है। विश्व बैंक के आईएलओ मॉडल अनुमान के मुताबिक, एलपीआर के लिहाज से भारत के मुकाबले केवल 17 देशों की स्थिति ही खराब है।
इनमें से ज्यादातर जॉर्डन, यमन, इराक, ईरान, मिस्र, सीरिया और लेबनान जैसे पश्चिम एशियाई देश हैं और अल्जीरिया और सेनेगल जैसे देश भी हैं। इनमें से कुछ देशों में तेल की भरपूर मात्रा है और बाकी देश में दुर्भाग्यवश गृहयुद्ध जैसी स्थिति है। भारत के पास न तो तेल संपन्न देशों जैसे विशेषाधिकार हैं और न ही गृहयुद्ध जैसे हालात हैं जिनकी वजह से एलपीआर कम होगी। फिर भी, यहां श्रम भागीदारी दर के मोर्चे पर नुकसान है और यह दर इन देशों के जितनी ही कम है।
रोजगार की सीएमआईई की परिभाषा को देखते हुए और आईएलओ की अनुशंसा के लिहाज से एलपीआर की मुश्किलें अधिक हैं। इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि भारत में एलपीआर, अंतरराष्ट्रीय तुलना से कहीं ज्यादा खराब है। इसलिए यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की तुलना के मुकाबले अधिक चिंता का विषय है। इससे भी खराब बात यह है कि एलपीआर कम हो रहा है। अक्टूबर और नवंबर के डेटा से यह अंदाजा मिलता है कि हाल के झटके के बावजूद इसमें गिरावट जारी है जिसकी वजह से एलपीआर दर के प्रतिशत अंकों में कटौती हुई।
दूसरी निराशा नवंबर के आंकड़ों की वजह से हुई जो रोजगार के आंकड़ों के रुझान में संरचनात्मक नुकसान से संबंधित है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में रोजगार काफी तेजी से कम हो रहा है। नतीजतन शहरी रोजगार की हिस्सेदारी भी कम होती जा रही है। वर्ष 2016-17 से 2018-19 के दौरान शहरी रोजगार, भारत में कुल रोजगार का 32 प्रतिशत था। भारत में महामारी फैलने से ठीक पहले, वर्ष 2019-20 में, शहरी रोजगार का हिस्सा कम होकर 31.6 प्रतिशत तक हो गया। वर्ष 2020-21 में यह कम होकर 31.3 प्रतिशत तक हो गया। नवंबर 2021 में इसकी हिस्सेदारी कम होकर 31.2 फीसदी रह गई। वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में शहरी रोजगार की हिस्सेदारी घटकर 31 फीसदी रह गई थी। अक्टूबर में यह सुधार 31.5 प्रतिशत तक हो गया लेकिन नवंबर 2021 में यह दर घटकर 31.2 प्रतिशत रह गई है जो शहरी नौकरियों में लगातार कमी के संकेत दे रहा है।
शहरी नौकरियों में यकीनन बेहतर पगार मिलती है और संगठित क्षेत्रों में इसकी अधिक हिस्सेदारी है। इसमें कमी का अर्थ यह है कि भारत में नौकरियों की समग्र गुणवत्ता में गिरावट आएगी। नवंबर 2021 में भारत में 14 लाख अतिरिक्त नौकरियों का सृजन हुआ और शहरी क्षेत्रों में 9 लाख रोजगार के मौके कम हुए। इसकी भरपाई 23 लाख ग्रामीण नौकरियों में वृद्धि के जरिये की गई।
तीसरी निराशा की बात यह है कि नवंबर के रोजगार के आंकड़ों में वेतन वाली नौकरियों में कमी और उद्यमियों की संख्या में गिरावट आई है। वेतन वाली नौकरियों में 68 लाख की कमी आई जबकि उद्यमियों की तादाद में 35 लाख तक की कमी आई। इनकी भरपाई दिहाड़ी मजदूरों और छोटे कारोबारियों के लिए रोजगार में 1.12 करोड़ की वृद्धि के जरिये हुई। इसकी वजह से एक बार फिर रोजगार की गुणवत्ता में गिरावट आई। नवंबर 2021 में वेतनशुदा नौकरियां 7.72 करोड़ थीं जो नवंबर 2019 की तुलना में 9.7 प्रतिशत कम थीं। रोजगार के आंकड़ों में सभी निराशाओं के बीच एलपीआर में लगातार गिरावट को सबसे ज्यादा चिंताजनक माना जाना चाहिए।
