आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) की आधिकारिक शुरुआत के साथ ही देश के हर नागरिक को विशिष्ट डिजिटल स्वास्थ्य पहचान (आईडी) प्रदान करने की पहल हो गई है। यह उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य प्रदर्शन (पीएचआर) से जुड़ी रहेगी। यह आईडी आधार से भी जुड़ी रहेगी। ये स्वास्थ्य आईडी जारी करने की प्रक्रिया महीनों पहले शुरू हो गई थी जब कोविन ऐप के माध्यम से कोविड टीकाकरण के लिए पंजीयन कराने वालों को स्वत: ही डिजिटल स्वास्थ्य आईडी जारी की जाने लगी थी। आशा है कि एबीडीएम स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति की क्षमता, प्रभाव और पारदर्शिता में और अधिक सुधार करेगा। स्वास्थ्य आईडी और पीएचआर वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य संबंधी व्यक्तिगत आंकड़ों को डिजिटल तरीके से सुरक्षित रखा जा सकता है। चिकित्सकीय पर्चे, जांच नतीजे और अस्पताल से छोड़े जाने के पर्चे आदि सुरक्षित रहेंगेे, उन्हें देखा जा सकेगा और जरूरत के मुताबिक साझा किया जा सकेगा। यह ऐसे लोगों के लिए मददगार साबित हो सकती है जो बीमारी की हालत में यात्रा कर रहे हों। इसी तरह इसकी मदद से मरीजों को विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाओं में अबाध आवाजाही की सुविधा होगी। इससे स्वास्थ्य बीमा प्रदाताओं को भी सेवा आपूर्ति में काफी मदद मिलेगी।
मोबाइल या आधार के माध्यम से स्वास्थ्य आईडी बनाने के लिए लाभार्थी से उसका नाम, विस्तृत जानकारी, जन्म वर्ष, लिंग, पता, मोबाइल नंबर/ आधार नंबर आदि मांगे जाएंगे। बहरहाल, डिजिटल प्रणाली में निजता और सहमति को लेकर कई गंभीर समस्याएं हैं, खासतौर पर यह देखते हुए कि भारत में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून नहीं है। रिपोर्ट बताती हैं कि करीब 12.5 करोड़ लोग जिन्होंने आधार की मदद से कोविन ऐप का इस्तेमाल किया उनकी स्वास्थ्य आईडी स्वत: जारी हो गई। उनसे किसी तरह की सहमति नहीं मांगी गई। हालांकि संभव है कि उनकी सहमति कोविन ऐप की मंजूरियों में कहीं बारीक अक्षरों में दर्ज हो। निजता और सहमति के मामले में इसे कतई अच्छी शुरुआत नहीं कहा जा सकता। पीएचआर सर्वरों में जहां डेटा दर्ज किया जाएगा, उनकी सुरक्षा विशेषताओं को लेकर भी सवाल हैं। परिभाषा के मुताबिक देखें तो लाखों की तादाद में आम लोग, विभिन्न एजेंसियां, संस्थान और अंशधारक डेटा तक पहुंच चाहेंगे और यदि यह डेटा लीक हुआ तो काफी नुकसान हो सकता है।
उपयोगकर्ताओं के लिए भी यह संभव होना चाहिए कि वे स्वास्थ्य आईडी और एडीबीएम से बाहर रहकर भी स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर सकें। इसके अलावा आदर्श रूप से पीएचआर तक हर पहुंच तथा जनांकीय आंकड़ों को लेकर उपयोगकर्ता की सहमति की व्यवस्था होनी चाहिए। आधिकारिक वेबसाइट में कहा गया है कि उपयोगकर्ताओं की इच्छा होने पर उनके पीएचआर तथा स्वास्थ्य आईडी को पूरी तरह डिलीट करने की इजाजत होगी। इसका अर्थ यह होगा कि तमाम जनांकीय आंकड़े मिट जाएंगे। लेकिन इस स्वनिर्मित विशेषता के ब्योरों में दिक्कत हो सकती है लेकिन निश्चित रूप से यह सहमति के मसले का कुछ हद तक ध्यान रखेगी। स्वास्थ्य आईडी डेटा को एकत्रित करके एक भंडार तैयार करेगी। सैद्धांतिक तौर पर इससे स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी आएगी और अगर उन आंकड़ों तथा रुझानों का विश्लेषण किया गया तो बेहतर स्वास्थ्य नीतियां भी बन सकेंगी। लेकिन आरोग्य सेतु तथा कोविन ऐप तथा उनका व्यावहारिक उपयोग कुछ बुनियादी बातों को लेकर सवाल पैदा करता है।
उदाहरण के लिए जिन लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं उन्हें इससे जुडऩे में मुश्किल आई और यहां भी विशिष्टता को लेकर समस्या हो सकती है। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि आंकड़े जुटाने को लेकर इस जुनून के बाद भी हम महामारी से सक्षम तरीके से नहीं निपट पाए। कई लोग ऑक्सीजन की कमी से जान गंवा बैठे और टीकों की देर से खरीद के कारण टीकाकरण कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ। बेहतर सेवा देने के लिए डेटा संग्रहण जरूरी है, लेकिन बुनियादी बातों पर ध्यान दिए बिना यह भी नहीं हो पाएगा।
