गत माह क्रिसमस के दिन जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को सुदूर अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया ताकि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में पता लगाया जा सके। केन्या के चर्चित जीवाश्म विज्ञानी और संरक्षणवद रिचर्ड लीकी का गत सप्ताह 77 वर्ष की आयु में नैरोबी के निकट उनके घर में देहांत हो गया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा पूर्वी अफ्रीका के एक खास इलाके में मानव जातियों के अध्ययन में बिताया।
वह एक असाधारण ब्रिटिश-केन्याई परिवार से आते थे जिसमें जीवाश्म विज्ञानी और विश्लेषक थे। चाल्र्स डार्विन के बाद मानव की उत्पत्ति के बारे में हमारी समझ बढ़ाने में अगर किसी ने सबसे अधिक मदद की तो वह यह परिवार है। उनके माता-पिता लुई लीकी और मैरी लीकी ने भी इस क्षेत्र में असाधारण काम किए। रिचर्ड की पत्नी मीवी, उनके भाई जॉनथन और बेटी लुईस ने भी ऐसा ही किया। ऐसे मानवों की उत्पत्ति के बारे में निरंतर सामने आ रहे ज्ञान के बीच इस क्षेत्र में इस परिवार के योगदान को सराहने के लिए कुछ समय निकालना उचित होगा।
बीसवीं सदी के मध्य तक अधिकांश पश्चिमी विज्ञानी मानते थे कि मनुष्यों की उत्पत्ति 50,000 से 60,000 वर्ष पहले यूरेशिया में हुआ था। सन 1940 के बाद लीकी परिवार तथा कुछ अन्य लोगों के निरंतर परिश्रम से सामने आई जानकारी से यह निश्चित हुआ कि मनुष्यों की उत्पत्ति अफ्रीका में 20,000 से 30,000 वर्ष पहले हुई थी। मनुष्य की उत्पत्ति 50 से 70 लाख वर्ष पहले से मौजूद वनमानुषों और चिंपांजी परिवार की किसी एक शाखा से हुई।
आरंभ में लीकी और उनकी टीम ने बहुत प्राथमिक परिस्थितियों में एकदम आरंभिक तौर तरीकों के साथ काम किया लेकिन उन्होंने कई अहम खोज कीं। सन 1948 में लेक विक्टोरिया के रुसिंगा आइलैंड पर काम करते हुए मैरी लीकी ने प्रोकोनसुल अफ्रीकनस (बंदर प्रजाति का प्राणी) की खोपड़ी पाई। इसे बहुत लंबे समय तक बंदरों और वनमानुषों का पूर्वज माना जाता था जो करीब 2.5 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर रहता था। अगले कई वर्षों तक उन्होंने अपना ध्यान उत्तरी तंजानिया के 25 मील लंबे ओल्दुवाई जॉर्ज इलाके पर केंद्रित रखा। यह क्षेत्र ग्रेट एनगोर्नोगोरो वॉल्कैनो क्रेटर तथा प्रसिद्ध नैशनल गेम रिजर्व से ज्यादा दूर नहीं था जिसकी यात्रा मैंने पचास वर्ष पहले की थी। सन 1959 में उन्हें यहां एक शुरुआती वनमानुष की खोपड़ी मिली जिसे उन्होंने जिनजानथरोपस का नाम दिया और जो 17 लाख वर्ष पुरानी थी। इससे उन्हें वैश्विक प्रसिद्धि और नैशनल जियोग्राफिक से लंबे समय के लिए फंडिंग मिली। कुछ वर्ष बाद उनकी टीम को वनमानुषों की एक और शाखा के जीवाश्म मिले जो करीब 14 लाख वर्ष पहले हुए थे।
सन 1960 में लुई ने ओल्दुवाई जॉर्ज उत्खनन का निर्देशन मैरी को सौंप दिया और अपना ध्यान संग्रहालयों की स्थापना करने, फंड जुटाने और व्याख्यान देने पर केंद्रित किया। लगभग उसी समय अन्य शुरुआती वानरों तथा मनुष्यों के बीच रिश्तों की महत्ता को लेकर यकीन से भरे लुई ने तीन युवा शोधकर्ताओं जेन गुडाल (चिंपांजी), डायन फॉसी (गुरिल्ला) और बिरुट गाल्डीकस (ओरांगउटान)को चुना और उन्हें प्रशिक्षित किया कि वे इन जीवों के प्राकृतिक आवास में रहवास पर दीर्घकालिक अध्ययन करें। उम्र के छठे दशक के बाद कमजोर स्वास्थ्य से गुजर रहे लुइ का सन 1972 में निधन हो गया। उनकी मौत के बाद मैरी ने काम जारी रखा और उनकी अहम खोजों में प्रागैतिहासिक लाएतोली पुरातात्विक स्थल (ओल्दुवाई जॉर्ज से 25 मील दूर) पर पाए गए पैरों की छाप काफी प्रसिद्ध है। यह करीब 37 लाख वर्ष पहले ऑस्ट्रालोपिथिकस अफरेंसिस प्रजाति के वनमानुष के के दो पैरों पर चलने का पहला स्पष्ट प्रमाण है।
उनके मझले बेटे रिचर्ड लीकी ने कुछ समय सफारी गाइड के रूप में काम करने के बाद जीवाश्म तलाशने का पारिवारिक काम संभाल लिया और 30 वर्ष से भी कम उम्र में उन्होंने एक छोटे विमान से उड़ान भरते समय उत्तरी केन्या में लेक तुरकाना के किनारों पर कुछ विशिष्ट ढांचों को चिह्नित किया। रिचर्ड लीकी और उनके साथियों ने तुरकाना बेसिन में सैकड़ों वनमानुष जीवाश्मों की खोज की जिनमें से प्रमुख हैं: एक होमो हबिलिस (करीब 23 लाख साल पुराने मानव प्रजाति के जीव) की खोपड़ी जिसे सन 1972 में उनकी पत्नी मीवी ने बहुत मेहनत से जोड़ा था, सन 1984 में उन्होंने होमो इरेक्टस (20 लाख वर्ष पुराने प्राकृतिक मानव) प्रजाति के एक बच्चे का पूरा कंकाल बरामद किया जिसे तुरकाना बॉय कहा गया। लीकी ने कहा कि करीब 30 लाख वर्ष पहले तीन अलग-अलग मनुष्यनुमा जीव एक साथ इस क्षेत्र में रहते थे। उनमें से दो समय के साथ गुजर गये और तीसरा होमो हबिलिस होमो इरेक्टस बना जो होमो सेपियंस यानी मनुष्य का पूर्वज है।
रिचर्ड लीकी ने बतौर जीवाश्म विज्ञानी अपने प्रसिद्धि और सफलता का इस्तेमाल संग्रहालयों के लिए फंड जुटाने (वह सन 1968 से 20 वर्षों तक केन्या के राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रमुख रहे) तथा एक मजबूत तथा विविध अनुशासन वाले शोध ढांचे को तैयार करने में लगे रहे। सन 1989 में उन्हें केन्या वन्यजीव सेवा का प्रमुख बनाया गया। उन्होंने हाथी दांत के तस्करों के खिलाफ हल्ला बोला और कई ताकतवर दुश्मन बना लिए। सन 1993 में एक विमान दुर्घटना में उन्हें अपने दोनों पैर गंवाने पड़े। उन्होंने राजनीति में आने का नाकाम प्रयास किया और फिर डेनियल अराप मोई सरकार में दो वर्ष कैबिनेट सचिव के रूप में काम किया। अपने जीवन के आखिरी साल उन्होंने न्यूयॉर्क के स्टोनी ब्रूक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में बिताए। वह तुरकाना बेसिन संस्थान के प्रमुख रहे और उन्होंने दुनिया भर में व्याख्यान दिए।
कुछ अनुमानों के मुताबिक जीवाश्मों की तलाश और विश्लेषण को लेकर लीकी परिवार का योगदान मानव व्युत्पत्ति से संबंधित कुल जीवाश्म प्रमाणों के करीब आधे के बराबर है। सन 1940 के बाद इस क्षेत्र में हुए काम को लेकर कई नतीजे निकाले जा सकते हैं। पहला, मनुष्य की उत्पत्ति 60 लाख वर्ष पहले तक विस्तारित है। दूसरा चूंकि जीवाश्म रिकॉर्ड अपनी प्रकृति के अनुसार अभी भी काफी बंटा हुआ है इसलिए मानव की उत्पत्ति को लेकर हमारी समझ अभी भी विकसित हो रही है। तीसरा, होमो सेपियंस का तीन लाख वर्ष पुराना इतिहास अन्य जीवों (मनुष्य जैसे अन्य जीवों समेत) के लंबे इतिहास की तुलना में बहुत छोटा है।
अंतिम और सबसे अधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि होमो सेपियंस न केवल अन्य प्रजातियों के लिए बल्कि मनुष्यों के लिए भी सर्वाधिक घातक साबित हुए हैं। उसके कदमों का परिणाम संपूर्ण उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त करता दिख रहा है।
(लेखक इक्रियर में मानद प्राध्यापक और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं। लेख में विचार निजी हैं)
