राज्यसभा में सोमवार को बांध सुरक्षा विधेयक पारित हो गया। इस विधेयक के पारित होने के बाद देश में बांधों के रखरखाव के लिए विश्वसनीय एवं ठोस संस्थागत ढांचा तैयार करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह विधेयक पारित होना इसलिए भी आवश्यक था कि देश में कई बांध पुराने हो चुके हैं और उनकी तत्काल मरम्मत की जरूरत है। यह विधेयक लोकसभा में 2019 में ही पारित हो गया था। इस तरह, इस विधेयक के अब कानून बनने के बाद केंद्र सरकार बड़े बांधों के भौतिक स्तर पर रखरखाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगी। दूसरी तरफ देश के राज्य इस आधार पर इस पहल का विरोध कर रहे हैं कि इससे उनके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण हो जाएगा। देश में इस समय अधिकांश बांध राज्यों की देख-रेख में हैं। हालांकि इन बांधों के रखरखाव की दिशा में राज्यों द्वारा किए गए प्रयास दयनीय रहे हैं। बांध टूटने की वजह से जान-माल की क्षति एवं आधारभूत संरचना को अक्सर होने वाला नुकसान इसका एक उदाहरण है। देश में बांध से जुड़ी 40 से अधिक दुर्घटनाएं हुई हैं जिनमें इस वर्ष फरवरी में उत्तराखंड में ऋषिगंगा बांध त्रासदी भी शामिल है।
गुजरात के राजकोट में मच्छू बांध दुर्घटना के बाद वर्ष 1980 के आरंभिक दशक में बांध सुरक्षा पर केंद्रीय कानून लाए जाने का प्रस्ताव दिया गया था। हालांकि इस उद्देश्य के लिए तैयार मसौदा विधेयक एक समिति से दूसरी समिति के बीच झूलता रहा।
वर्ष 2010 में संसद में विधेयक प्रस्तुत किया गया मगर इसमें कई संशोधन किए गए और उसके बाद यह संसद के दोनों सदनों में कहीं जाकर पारित हो पाया। बड़े बांधों की संख्या के लिहाज से भारत अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। भारत को तत्काल इस कानून की जरूरत थी। देश में कुल 5,745 बड़े बांधों में 300 के करीब, 100 वर्षों से भी अधिक पुराने हो चुके हैं जबकि लभगग 1,000 बांधों की आयु 50 वर्ष पार कर गई है।
इस अवधि के बाद सामान्यत: बांधों की मरम्मत की आवश्यकता होती है। अधिकांश पुराने बांध मिट्टी या स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री से तैयार हुए हैं इसलिए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भारी बारिश, भूकंप या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा में ये टूट सकते हैं।
इस कानून में बांध सुरक्षा दिशानिर्देश के तहत राज्यों की सहायता का प्रावधान है। इनमें बांधों की नियमित निगरानी, निरीक्षण, परिचालन और 15 मीटर से ऊंचे सभी बांधों के रखरखाव संबंधित कार्य शामिल हैं। कानून में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर बांध सुरक्षा समिति बनाए जाने का प्रावधान है। इसमें बांध सुरक्षा मानकों से जुड़े दिशानिर्देश भी सुझाए गए हैं। नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कानून में दंड का भी प्रावधान है।
हालांकि राज्यों को यह बात खटक रही है कि इस नए कानून में बांधों के परिचालन, इनकी निगरानी और मरम्मत की जिम्मेदारी नियंत्रकों पर सौंप दी गई है। ज्यादातर मामलों में इन बांधों का नियंत्रण राज्य सरकारों के पास होता है। केवल कुछ बड़े बांधों का निर्माण एवं नियंत्रण राज्य जल-विद्युत निगमों के अधीन है।
इन सभी बांधों का रखरखाव कमोबेश ठीक तरीके से किया गया है। नए कानून के तहत बांध सुरक्षा इकाई को मॉनसून से पहले और इसके बाद, भूकंप, बाढ़ और अन्य आपदाओं या फिर दरार आदि दिखने के बाद निरीक्षण किया जाना जरूरी है। अब संसद में कानून पारित हो चुका है इसलिए राज्यों की आपत्तियों के समाधान एवं दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन में किसी तरह का विलंब नहीं होना चाहिए।
