एक बड़ी औषधि निर्माता कंपनी ने कहा है कि उसने कोविड-19 महामारी का टीका बना लिया है जो 90 प्रतिशत तक प्रभावी है। कंपनी ने यह भी कहा कि उसके संभावित टीके ने तीसरे चरण के परीक्षण में कोई बड़ा दुष्प्रभाव नहीं दिखाया। बीएनटी162बी2 नामक यह टीका फाइजर कंपनी का है जिसे जर्मनी की एक छोटी कंपनी बायोनटेक ने विकसित किया है। इस टीके के बारे में कंपनी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अलावा विशेष जानकारी नहीं है और अधिकांश विशेषज्ञों का यही कहना है कि विस्तृत चिकित्सकीय आंकड़े सामने आने के पहले इस बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं। इस बारे में अंतिम निर्णय नियामकों को लेना है। यह निर्णय भी पहले यूरोप, उसके बाद अमेरिका में लिया जाएगा। शेष विश्व को तब तक प्रतीक्षा करनी होगी। यह बहुत अहम अवसर है। विश्व अर्थव्यवस्था को तबाह कर देने वाली और लाखों लोगों की जान लेने वाली इस महामारी के टीके को लेकर पहले बार कोई विश्वसनीय खबर सामने आई है जहां तीसरे चरण के परीक्षण सफल रहे हैं। यह निजी क्षेत्र की कई औषधि कंपनियों की ही बदौलत है कि इतने सारे टीकों पर परीक्षण चल रहा है और इतने सीमित समय में इतनी बड़ी सफलता हाथ लगी है।
बहरहाल, भारत को इस टीके को लेकर इतना उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। बीएनटी162बी2 टीका नई मेसेंजर आरएनए (एमआरएनए) तकनीक पर आधारित है। इसका अर्थ यह हुआ कि इसे तेजी से विकसित किया जा सकता है लेकिन इसकी क्षमता भी अपेक्षाकृत सीमित होगी। टीका बनाने वालों की ओर से पहले जारी किए गए वक्तव्यों में कहा गया था कि इसे शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस तक या उससे भी कम तापमान पर रखना होगा। इस तापमान पर ढुलाई के बाद इसे ज्यादा से ज्यादा 24 घंटे तक ही शून्य के आसपास तापमान पर फ्रिज में रखा जा सकता है। उसके पश्चात इसका असर कम हो जाता है। भारत जैसे देश में इसके वितरण को लेकर स्वाभाविक चुनौतियां हैं। टीके की नियमित आपूर्ति वैसे भी मुश्किल है और इस टीके को तो अत्यंत कम तापमान पर लाना होगा। यह आसान नहीं है क्योंकि इसे बमुश्किल 24 घंटे ही शून्य तापमान पर रखा जा सकता है। इतना ही नहीं तीन सप्ताह में इसकी दूसरी खुराक भी लेनी होगी। कुल मिलाकर भारतीय वितरण तंत्र के लिए यह असंभव सा काम है। विकसित देश जरूर ऐसा कर सकते हैं। यूरोप ने पहले ही इस टीके की 30 करोड़ खुराक का सौदा कर लिया है। ऐसे में महामारी से निपटने में दो तरह की गति साफ नजर आएगी। एक वे देश जिनके पास बुनियादी ढांचा मौजूद है और वे एमआरएनए टीके का सहजता से इस्तेमाल करेंगे। दूसरे भारत जैसे विकासशील देश जिनके पास यह सुविधा नहीं है। बुरी बात यह है कि विकसित देशों में इस प्रभावी टीके की मौजूदगी मुनाफा कम करेगी और अन्य कंपनियों को टीका विकसित करने के लिए हतोत्साहित करेगी। जबकि अन्य टीके भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
यानी टीके के मामले में भारत के लिए हालात नाटकीय रूप से बदल गए हैं। सरकार को जल्दी यह तय करना होगा कि क्या फाइजर कंपनी के टीके जैसे एमआरएनए या मॉडर्ना कंपनी के जैसे टीके जो थोड़े महंगे हैं लेकिन जिनका परिवहन आसान है, भारत के लिए अनुपयुक्त हैं या फिर क्या हम छह महीने में इनके लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार कर सकते हैं? यह निर्णय अगले कुछ महीनों में हो जाना चाहिए। यदि यह संभव नहीं तो सरकार को अधिक उपयुक्त टीकों को समर्थन दोगुना कर देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो देश लंबे समय तक महामारी के जोखिम के साये में रहेगा।
