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  लेख  अदालत ने धीमी की पद्मिनी की चाल
लेख

अदालत ने धीमी की पद्मिनी की चाल

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —December 9, 2008 10:31 PM IST0
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मुंबई की सड़कों पर अब 25 साल पुरानी टैक्सियां नहीं दिखाई देंगी। कारण कि टैक्सियां हटाने संबंधी सरकारी फरमान के बाद चालकों को अदालत से निराशा ही हाथ लगी है।


करीब 9000 हजार टैक्सियों केपहिए रुकने के साथ ही कई लोगों के रोजगार में भी जंग लगनी शुरू हो गई है। टैक्सी मालिकों और चालकों के साथ ही साथ उनकी मरम्मत करने वाले लगभग 20 हजार लोगों के काम पर भी असर पड़ना तय है।

मुंबई की सड़कों पर दौड़ने वाली लाल-पीली रंग की अधिकांश टैक्सियां प्रीमियर पद्मिनी हैं। वैसे, इस महानगर में इनकी संख्या लगभग एक लाख के पार है।

पर करीब 9000 ऐसी हैं जिनकी उम्र 25 साल से ज्यादा की हो चुकी थी। सरकार ने इन्हें ही बंदी का रास्ता दिखाया है। लेकिन इस श्रेणी की बाकी बची टैक्सियों पर भी पर्यावरण की तलवार लटक रही है।

 इन टैक्सियों को हटाने के फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं मिस्त्री जो इनकी मरम्ममत करते हैं। प्रीमियर पद्मिनी टैक्सियों के सबसे बड़े गैरेज के रुप में जाना जाने वाला लोअर परेल का कारदार स्टूड़ियो इसकी मिसाल है। यहां काम करने वाले सुधा के अनुसार इस जगह कुल 115 गैरेज हैं।

हर गैरेज में एक दिन में तीन से चार टैक्सियों की मरम्मत का काम किया जाता है, लेकिन सरकारी फरमान पर अदालती मुहर के बाद से पिछले एक हफ्ते में एक भी टैक्सी का काम नहीं आया है। यहां काम करने वाले 1000 से भी ज्यादा लोगों केहाथ से काम छिन चुका है।

यही हाल मुंबई के अलग अलग क्षेत्रों में काम करने वाले मिस्त्रियों और मजदूरों का है। पूरे शहर में लगभग 50,000 लोग इस कारोबार के जरिए अपना पेट पालते हैं।

मुंबई की पहचान में शुमार फियट कंपनी की लाल-पीले रंग की प्रीमियर पद्मिनी टैक्सियों के अस्तित्व पर बहुत पहले से सवालिया निशान लगने शुरू हो गए थे।

कंपनी ने वर्ष 2000 से ही इन टैक्सियों के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगा रखी है। इस वजह से सड़कों पर नई गाड़ियां तो आ ही नहीं रही थीं। साथ ही, इनके कल पुर्जे भी बाजार में मिलना मुश्किल होता जा रहा था। लिहाजा, इन टैक्सियों का पूरा काम स्थानीय कारीगरों के जिम्मे ही रहता है।

लेकिन दूसरी कंपनियों की टैक्सियों के मामले में ऐसा नहीं है।  इन कंपनियों की गाड़ियों के लिए सर्विस सेंटर की सुविधा और कल पुर्जो की कोई कमी नहीं रहती है। फिएट ने पहले अपनी इस गाड़ी का पेट्रोल इंजन उतारा और बाद में डीजल इंजन भी बाजार में पेश किया।

पेट्रोल महंगा होने और टैक्सी वालों में आपसी प्रतियोगिता के चलते सभी ने अपनी गाड़ियों में डीजल इंजन सेट करवा लिया। ये सभी इंजन तीन सिलिंडर के थे।

पर्यावरण को देखते हुए सरकार ने कहा कि सभी टैक्सियों के इंजन चार सिलिंडर के होने चाहिए और ऐसा न होने पर उनका परमिट रद्द कर दिया जाएगा।

20 से 25 हजार रुपये खर्च करके इन गाड़ियों में चार सिलिंडर का इंजन सेट करवाने के दो साल बाद ही एक और सरकारी फरमान आया कि सभी टैक्सियों को सीएनजी पर आधारित होना चाहिए।

मरता क्या न करता, गरीब टैक्सी वालों ने 35 से 40 हजार रुपये खर्च करके अपनी गाड़ियों में सीएनजी इंजन लगवा दिया। लेकिन इसके बाद नई आफत यह आ गई कि सरकार ने इन्हें बंदी का रास्ता दिखा दिया। 

इस फरमान के कारण इनके सामने रोजी रोजी का संकट खड़ा हो गया है। हालांकि सड़कों से 9000 हजार टैक्सियों के हट जाने से गैरेजों पर ज्यादा असर नहीं होगा। लेकिन भविष्य में इसके दूरगामी परिणाम जरुर देखने को मिलेंगे,क्योंकि अभी तो शुरूआत है।

धीरे-धीरे ये सब टैक्सियां मुंबई की सड़कों से गायब हो जाएंगी। यही कारण है कि इन टैक्सियों के लिए कहीं जगह नहीं बची है। सीएनजी इंजन होने के वजह से ग्रामीण इलाकों में इन्हें ले नहीं जाया जा सकता है क्योंकि गांवों में सीएनजी नहीं है।

यही कारण है कि 10 दिन पहले एक लाख से डेढ़ लाख रुपये की कीमत वाली इन टैक्सियों को 11-12 हजार रुपए में भी कोई नहीं पूछ रहा है। कबाड वालों के बीच इनकी कीमत 10 से 11 हजार रुपये आंकी जा रही है।

अपनी टैक्सी चलाने वाले विनोद दुबे कहते हैं कि सरकार के इस फैसले पर रोना आता है, टीवी और अखबारों में समाचार देखकर बच्चे पूछते हैं कि पापा अब क्या होगा? समझ नहीं आता, उनको क्या बताएं। आगे क्या होगा, घर कैसे चलेगा, सब भगवान भरोसे है।

सरकार के इस फैसले पर ऑटो टैक्सी यूनियन काफी खफा है। उसका आरोप है कि इस योजना केबहाने कुछ लोग टैक्सी चालकों से पैसा लेना चाहते हैं

जबकि कुछ नेता कार कंपनियों और ट्रेवल एजेसिंयों से मिलकर मुंबई की पहचान बन चुकी इन टैक्सियों को हटाने पर आमादा हैं, क्योंकि इन टैक्सियों के रहते उनका धंधा नहीं हो पाता।

यूनियन का कहना है कि इन टैक्सियों को मुंबई की सड़कों से हटाने के पीछे दरअसल पर्यावरण तो एक बहाना है, असल बात यह है कि इन टैक्सियों को हटा करके सरकार नई कार कंपनियों के लिए बाजार उपलब्ध कराने की सजिश रच रही है।

गरीब तो सड़क से बाहर हो जाएंगे पर बड़ी कंपनियां चमचमती गाड़ियां लेकर सड़कों पर कब्जा कर लेंगी।

padmini taxis will not run on streets in age more than 25
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