भारतीय नागरिक रोपवे से अनजान नहीं हैं। कई घरेलू स्थल अपना खास आकर्षण रखते हैं। इनमें गुलमर्ग में गंडोला, उत्तराखंड के औली में केबल कार, मध्य प्रदेश के धुंधार में रोपवे, उदयपुर में करणी माता, गुजरात में गिरनार, महाराष्ट्र में रायगड, केरल में मलमपुझा तथा दार्जिलिंग और गंगटोक में रोपवे और कई अन्य शामिल हैं। ऊपर बाल्टियों में कोयले की अटकी हुई आवाजाही के दृश्य भी सामान्य हैं।
लेकिन जब से वित्त मंत्री ने 1 फरवरी को अपने बजट भाषण में इस ओर इशारा किया है, तब से रोपवे सुर्खियों में आ गया है, न केवल पर्यटकों के आकर्षण के रूप में, बल्कि परिवहन समाधान के रूप में। उनका यही कहना था – ‘पर्वतमाला या राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम कठिन पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक सड़कों का पारिस्थितिक रूप से पसंदीदा स्थायी विकल्प है। इसे पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) के रूप में शुरू किया जाएगा। इसका उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा यात्रियों के लिए कनेक्टिविटी और सुविधा में सुधार करना है। इसमें भीड़भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सकता है, जहां कोई पारंपरिक जन परिवहन प्रणाली संभव नहीं होती है। वर्ष 2022-23 में 60 किलोमीटर लंबी आठ रोपवे परियोजनाओं के ठेके दिए जाएंगे।’
उल्लेखनीय है कि ‘परिवहन समाधान के रूप में रोपवे’ के सरकार के दृष्टिकोण में भीड़भाड़ वाले शहरी क्षेत्र और नदी-पार करना भी शामिल है।
शहरी कनेक्टिविटी के संबंध में कोलंबिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक निर्माण परियोजना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त कर रही है, जो राजधानी बोगोटा में नई जन परिवहन केबल कार सेवा है। इसका उद्घाटन 27 दिसंबर, 2018 को किया गया था, यह शहर के कम आय वाले पड़ोस के दो क्षेत्रों के ऊंचे स्थानों को जोड़ती है। यह प्रति घंटे 3,600 यात्रियों के परिवहन में सक्षम है और इससे उन 7,00,000 निवासियों को लाभ मिलता है, जो अब 10 मिनट में ही यात्रा करने में सक्षम हैं, जिसमें पहले 60-90 मिनट लगते थे।
नदी पार करने के संबंध में बात करें तो ब्रह्मपुत्र नदी पर भारत की अपनी प्रतिष्ठित परियोजना है। वर्ष 2020 की गर्मियों में 1.8 किलोमीटर लंबा रोपवे शुरू किया गया था, जो देश का सबसे लंबा नदी वाला रोपवे है। गुवाहाटी और उत्तरी गुवाहाटी के बीच हर रोज हजारों लोग यात्रा करते हैं। रोपवे 10 मिनट में यात्रा को सक्षम बनाता है, ऐसी यात्रा जिसमें नौका से 45 मिनट या सड़क मार्ग से एक घंटे से अधिक का वक्त लगता है। बोनस के रूप में यह ब्रह्मपुत्र और इसके आसपास के लुभावने दृश्य भी प्रदान करता है।
यात्री रोपवे को उनकी परिचालनगत विशेषताओं के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। एरियल ट्रामवे, गंडोला, फनिक्युलर और चेयर लिफ्ट ज्यादा सामान्य रूप हैं। परिवहन के विकल्प के रूप में वे विशिष्ट भू-भागों के संदर्भ में स्पष्ट लाभ पेश करते हैं। इनके परिणामस्वरूप भूमि अधिग्रहण की कम लागत आती है, ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और आम धारणा के विपरीत काफी मात्रा संभाल सकते हैं। एक दमदार रोपवे एक घंटे में 10,000 यात्रियों को ले जा सकता है, जो 200 बसों की भार क्षमता के बराबर है। रोपवे खड़ी ढाल को संभाल सकते हैं। जहां किसी सड़क या रेलमार्ग को घुमावदार रास्तों या सुरंगों की जरूरत पड़ती है, वहीं रोपवे सीधी रेखा में उससे गुजर सकता है। शहरी व्यवस्था के संबंध में फासलों पर केवल संकीर्ण आधार वाले खड़े आलंबन की आवश्यकता होती है, जिससे बाकी जमीन मुक्त रहती है, यह तथ्य रोपवे को निर्मित क्षेत्रों में और उन स्थानों पर जहां भूमि उपयोग के मामले में तीव्र प्रतिस्पर्धा होती है, रोपवे का निर्माण संभव बनाता है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) को रोपवे और आवागमन के वैकल्पिक समाधानों के विकास के लिए जिम्मेदार बनाया गया है। अब इस पर इस क्षेत्र के लिए एक विनियामकीय व्यवस्था तैयार करने की जिम्मेदारी है, जिसमें प्रौद्योगिकी के चयन, सुरक्षा और परिचालनगत दिशानिर्देशों से संबंधित मसले शामिल हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के भीतर एक आंतरिक सहायक कंपनी – नैशनल हाईवेज लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड (एनएचएलएमएल) को रोपवे के विकास से संबंधित सभी कामकाज शुरू करने के लिए निर्धारित किया गया है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों से पता चलता है कि वित्त मंत्री की बजट घोषणा के बाद रोपवे बाजार सक्रिय हो गया है। देश के विभिन्न हिस्सों से प्रस्ताव आ रहे हैं, जिनमें हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र तथा जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार भी शामिल हैं। उत्तराखंड में सात परियोजनाओं की पहचान की जा चुकी है और उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया गया है। मई 2022 में एनएचएलएमएल ने भारत में शहरी मुसाफिरों की खातिर पहली रोपवे परियोजना के लिए बोलियां आमंत्रित की थी। यह वाराणसी के छावनी रेलवे स्टेशन और गोदौलिया चौक को जोड़ने वाला 3.8 किलोमीटर लंबा रोपवे लिंक है, जिसे हाइब्रिड वार्षिक राशि वाले प्रारूप के तहत 461 करोड़ रुपये के निवेश से विकसित किया जाना है।
सुरक्षा सर्वोपरि है। झारखंड के देवघर जिले में हुई रोपवे दुर्घटना के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अप्रैल में सभी राज्यों को दिशानिर्देश जारी किए थे। मंत्रालय ने भविष्य में ऐसी कोई भी घटना होने से रोकने के लिए विस्तृत मानक परिचालन प्रक्रियाओं और रोपवे परिचालन के संबंध में आकस्मिक योजना की आवश्यकता पर जोर दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोपवे उद्योग में यूरोपीय संघ की कंपनियों का वर्चस्व है, जिसकी विश्व भर के उद्योग में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यूरोपीय संघ में विशेष सुरक्षा कानून हैं।
उम्मीद की जा रही है कि ‘आत्मनिर्भरता’ पर जोर देने से भारत के मौजूदा रोपवे विनिर्माता और डेवलपर्स, जो तुलनात्मक रूप से अपरिचित रहे हैं, को अब वैश्विक संदर्भ में प्रमुख भागीदार के तौर पर बढ़ने और उभरने का मौका मिलेगा। यात्री रोपवे परियोजनाओं के लिए शुरू से आखिर तक समाधान प्रदान करने के वास्ते वैपकोस और डोपेलमेयर के बीच समझौता ज्ञापन किया गया है। वैपकोस भारत सरकार की प्रमुख इंजीनियरिंग सलाहकार कंपनी है और ऑस्ट्रिया की डोपेलमेयर दुनिया भर में 15,000 से अधिक रोपवे स्थापित करने के साथ दुनिया की सबसे बड़ी रोपवे विनिर्माता है। अब ऐसे कई और सहयोग अपेक्षित हैं।
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी अपने प्रगतिशील विचारों के लिए मशहूर हैं और वह काफी समय से रोपवे तथा वैकल्पिक आवागमन के विकास की तरफदारी कर रहे हैं। इस नए परिवहन बाजार को तैयार करने के लिए उनके नेतृत्व में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय अब यथोचित रूप से सशक्त होने के कारण भारत को रोपवे के संबंध में कुछ रोमांचक वक्त का अनुभव होने वाला है।
(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध न्यासी भी हैं। लेख में उनके व्यक्तिगत विचार हैं)
