इस महीने की शुरुआत में जी 20 देशों के शिखर सम्मेलन के समापन के मौके पर जारी विज्ञप्ति में ‘उच्च गुणवत्ता वाले वैश्विक लेखांकन मानकों को अपनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति करने का आहवान किया गया।
अंतरराष्ट्रीय लेखांकन मानक बोर्ड (आईएएसबी) और अमेरिकी वित्तीय लेखांकन मानक बोर्ड (एफएएसबी), दोनों ने ही थोडे समय के अंतर पर ही काफी तेजी से प्रतिक्रिया व्यक्त की। जी-20 द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले लेखांकन मानकों को लागू करने की मांग के बजाए उक्त दोनों संगठन क्रमश: बेल्जियम और अमेरिका के दबाव में आकर मानकों को ढीला बना रहे हैं।
निष्पक्ष लेखांकन मानकों की बात करें तो लगता है कि मुख्य उद्देश्य लचीलेपन के रुख को अपनाने का है, खासकर बैंकों के लिए। आईएएसबी ने इसकी शुरुआत पिछले अक्टूबर में की थी।
उस समय उसकी एक प्रेस विज्ञप्ति का बयान इस तरह है ‘(विशेषज्ञ सलाह) पैनल (वह निकाय जिसने आईएफआरएस के तहत निष्पक्ष मूल्य माप के संबंध में शैक्षणिक दिशानिर्देश जारी किए थे) इस बात पर सहमत है कि निष्पक्ष मूल्य माप का उद्देश्य वह कीमत है जिस पर एक सामान्य लेनदेन बाजार भागीदारों के बीच माप तिथि पर किया जाता है, न कि वह कीमत जिसे कृत्रिम नकदीकरण या विपत्तिपूर्ण बिक्री के जरिए हासिल किया जा सकता है।
पैनल इस बात की पुष्टि करता है कि ऐसे लेनदेन को निष्पक्ष मूल्य माप नहीं माना जाएगा, जबकि यह भी उल्लेखनीय है कि बाजार में अव्यवस्था की स्थिति में भी सभी बाजार गतिविधियां कृत्रिम नकदीकरण या बिक्री से प्रेरित नहीं होती हैं।
पैनल अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (आईएफआरएस) के तहत मौजूदा दिशानिर्देशों पर जोर देने पर भी सहमत हो गया है, जिसका उपयोग वायदा नकदी प्रवाह और उचित जोखिम डिस्काउंट दर के बारे में संस्था की मान्यताओं के लिए भी किया जा रहा है।
हाल में, एफएएसबी ने निष्पक्ष मूल्य माप के दिशानिर्देशों और खुलासों में सुधार के लिए 9 अप्रैल को अंतिम स्टाफ स्थितियां (एफएसपी) जारी की थीं और उम्मीद है कि इस सप्ताह के अंत तक आईएएसबी इसका एक संशोधित संस्करण लाएगी।
बहुत अधिक तकनीकी बातों में न जाएं तो इन बदलावों का नतीजा यह निकलेगा कि बैंकों को अपने कारोबारी खातों में अपनी होल्डिंग की अधिक कीमत मिलेगी। इसके लिए बाजार कीमत की जगह अपने खुद के मॉडल का इस्तेमाल किया जाएगा।
जैसा कि फाइनैंशियल टाइम्स ने संपादकीय टिप्पणी की है, ‘यह कदम मूल्यांकन नियमों में बदलाव के लिए जल्दबाजी में उठाया गया एक चिंताजनक पैटर्न है, जिससे कंपनियों को बाजार कीमतों की जगह अपने आंकड़े इस्तेमाल करने की आजादी मिलेगी।’ भविष्य के एनरॉन निश्चित तौर से खुश होंगे।
राजनीतिक दबाव में मानकों को नरम बनाने के बजाए, दोनों निकायों को नियमों को आसान बनाना चाहिए, जो फिलहाल काफी जटिल हैं। (एक व्यक्तिगत उदाहरण यह है कि मैं अभी भी बैंकों की परिसंपत्ति: उत्तरदायित्व प्रबंधन के लिए डेरिवेटिव का नकद प्रवाह हेज के तौर पर इस्तेमाल के लिए एक नीति तैयार करने के लिए संघर्ष कर रहा हूं, जो आईएएस 39एएस 30 के हेजिंग प्रिस्क्रिप्शन का पालन कर सकते हैं।)
जैसा कि सिमॉन निक्सन ने हाल में दि वॉल स्ट्रीट जर्नल में लिखा है: सिर्फ आईएएसबी में ही वित्तीय परिसंपत्तियों के मूल्यांकन के लिए 22 अलग अलग तरीके हैं, जो चार विभिन्न श्रेणियों और सात अलग-अलग तरीकों पर आधारित हैं।
वैश्वीकरण के इस युग में निश्चित तौर से हम पिछड़ नहीं सकते हैं। यद्यपि सरकार ने एक गजट अधिसूचना विदेशी मुद्रा विनिमय दर में बदलाव के प्रभावों के संबध में एएस 11 के प्रावधानों को 2011-12 तक के लिए टाल दिया है।
आईएएसबी और एफएएसबी के बीच एक प्रमुख अंतर: हमारा इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने अपना विरोध दर्ज करते हुए प्रावधानों को नरम बनाने का विरोध किया है और अब सरकार को खुद बदलाव करने हैं, इसलिए निश्चित तौर से लॉबिंग जोरदार होनी चाहिए।
हमारे मामले में एक और जटिलता दिखाई देती है। इस माह की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने विदेशी मुद्रा के नुकसान पर कराधान के बारे में फैसला किया। हालांकि, अभी तक इस फैसले की प्रति मिलनी बाकी है ताकि इसके पूरे प्रभावों को समझा जा सके। अब विदेशी मुद्रा ऋण में होने वाले लाभ या हानि का इस्तेमाल अचल परिसंपत्तियों के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है।
इससे एक बुनियादी सवाल पैदा होता है: परिसंपत्तियों की कीमत को किस हद तक बढ़ाया जा सकता है क्योंकि घरेलू मुद्रा में गिरावट जरूरी है, फिर चाहें यह सही हो या गलत? एक ऐसे युग में जबकि विनिमय दर दरअसल मुद्रास्फीति के अंतर को दर्शाती है, इस बारे में कुछ तर्क हो सकते हैं। लेकिन तेजी से बढ़ती-घटती विनियम दर, भारी उतार-चढ़ाव और तेज प्रौद्योगिकी बदलावों के युग में क्या यह बात तर्कसंगत लगती है?
हेजिंग : हाल में एक कंपनी के बयान में दावा किया गया कि ‘घाटा दीर्घावधि के हेजिंग औजारों के कारण हुआ, जिन्हें कि कंपनी के ऋण पर ब्याज लागत को कम करने के लिए खरीदा गया था।’
(संयोगवश, यदि वे वास्तव में हेज कर रहे होते तो, अंतनिर्हित एक्सपोजर पर लाभ मिलना चाहिए था।) यह इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे कॉर्पोरेट प्रबंधन हेजिंग की अवधारणा को लेकर पूरी तरह से भ्रमित है – और बैंकिंग प्रणाली द्वारा उसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सभी तरह की अटकलबाजी से भरे डेरिवेटिव को हेज के तौर पर बेचने की कला अच्छी तरह से जानते हैं।
(क्या नियामक इस ओर से आंख बंद किए हुए हैं या उन्हें नहीं पता है कि क्या हो रहा है?) सच्चाई यह है कि हेजिंग कभी भी धन बनाने का जरिया नहीं हो सकता है, या तो लागत को कम करके या आय को बढ़ाकर।
एक हेज वास्तव में ‘जोखिम को कम करने के लिए डिजायन किया गया व्यापार है… एक हेजिंग कार्यक्रम का मकसद जोखिम को कम करना है, न कि संभावित मुनाफे को बढ़ाना।’ (वित्तीय संस्थानों में जोखिम प्रबंधन, जॉन हुल)। पैसा बनाने के लिए, आपको अटकलबाजी की जरूरत होगी, जोखिम लीजिए, न कि हेजिंग के जरिए उन्हें कम कीजिए।
