उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020 में प्रस्तावित संशोधन देश के तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार में सरकार की गहराती दखलंदाजी के रुख को ही हमारे सामने रखते हैं। ताजा प्रस्तावों का संबंध अनुपालन बढ़ाने और उपभोक्ताओं के बजाय घरेलू खुदरा कारोबारियों की मजबूत लॉबी के हितों की रक्षा करने से अधिक है। निश्चित तौर पर कुछ नियम ऐसे हैं जो काफी समय से लंबित हैं। मिसाल के तौर पर बिना सहमति के उपभोक्ताओं का डेटा शेयर करने से रोकना और उपभोक्ताओं के लिए विकल्प प्रस्तुत करना (खुदरा कारोबारी पहले ही ऐसा करते हैं)। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए उद्योग एवं आंतरिक व्यापार विभाग में पंजीकृत कराने की जरूरत और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के संपर्क के लिए नोडल अधिकारी के रूप में मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति से इन कंपनियों पर नजर रखने में सरकार को मदद मिलेगी।
इनमें से कुछ नियम अनिश्चित हैं और सरकार की ओर से चुनिंदा हस्तक्षेप की राह खोलेंगे। उदाहरण के लिए फ्लैश सेल ऑनलाइन बिक्री का एक लोकप्रिय तरीका है। लेकिन अब अगर इन्हें एक के बाद एक अंजाम दिया जाता है, ये ग्राहक के चयन को सीमित करती हैं और असमान कारोबारी परिस्थितियां निर्मित करती हैं तो इन पर प्रतिबंध लगेगा। ग्राहक चयन सीमित करने या समान कारोबारी परिस्थितियों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। ऐसे में कोई सेल इन नियमों का उल्लंघन करती है अथवा नहीं यह नियामकीय व्याख्या पर निर्भर करेगा। ये नियम पारंपरिक खुदरा कारोबारियों के हित में नजर आते हैं जो त्योहारी मौसम में एमेजॉन या फ्लिपकार्ट पर भारी छूट वाली सेल लगने से काफी नाराज हो रहे थे। प्रतिबंधों का विस्तार संबंधित पक्षों और संबद्ध उद्यमों तक किया जा रहा है और नए नियमों के मुताबिक कोई भी संबंधित उपक्रम समान मंच पर मौजूद ऑनलाइन विक्रेता को बिक्री नहीं कर सकता।
जाहिर है यह पारंपरिक खुदरा कारोबारियों की इस शिकायत को ध्यान में रखते हुए किया गया है कि दो बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां नियमों से निजात पाने के लिए जटिल कारोबारी ढांचा तैयार करती हैं। मीडिया की जांच से तो मामला ऐसा ही लगता है: उदाहरण के लिए एमेजॉन के आंतरिक दस्तावेज दर्शाते हैं कि उसके प्लेटफॉर्म पर मौजूद चार लाख से अधिक विक्रेताओं में से केवल 35 दो तिहाई बिक्री करते हैं। इससे संकेत निकलता है कि वह चुनिंदा विक्रेताओं को प्राथमिकता देती है। दो बड़ी कंपनियां उनके कारोबारी व्यवहार को लेकर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की एक जांच के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि किसी उत्पाद के बनने के मूल स्थान को चिह्नित करने से घरेलू विनिर्माताओं को क्या लाभ होगा। लाभ तभी हो सकता है जब उपभोक्ता कीमत के बजाय देशभक्ति से संचालित हों।
प्रश्न यह है कि क्या ई-कॉमर्स पर ये नियम और प्रतिबंध एक ऐसी अर्थव्यवस्था में मायने रखते हैं जिसके बारे में प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा है कि उसे बाजार के लिए खोला जाना चाहिए। यह ऐसे समय हो रहा है जब महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में उन्होंने अपनी क्षमता दिखाई। पिछली संप्रग सरकार के समय से ही हर सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबार और खासतौर पर विदेशी ई-खुदरा कारोबारियों के लिए मुश्किल ही खड़ी की है। विदेशी ई-कंपनियों को अज्ञात वजहों से एक बाजार के रूप में काम करने की इजाजत दी गई है वे सीधे उपभोक्ताओं को माल नहीं बेच सकतीं। ऐसे में उन्होंने कुछ कल्पनाशील तरीके से नियमों को तोड़ा मरोड़ा जो अब जांच के अधीन है। इन कंपनियों पर ऐसे नियम लगाए जा रहे हैं जो उनके घरेलू पारंपरिक प्रतिस्पर्धियों पर नहीं लागू होते। अधिकांश ऑफलाइन कारोबारी चुनिंदा विक्रेताओं के साथ प्राथमिकता समझौता करते हैं। इनमें से कई अपने निजी लेबल की बिक्री से काफी ज्यादा कमाते हैं और उन्हें अपनी दुकान पर प्राथमिकता से प्रदर्शित करते हैं। नए नियम इन विसंगतियों को और बढ़ाते हैं।
