कंपनियों के अब तक घोषित तिमाही नतीजे (अक्टूबर-दिसंबर) बताते हैं कि इससे पहले कि कंपनियां धरातल पर पहुंचे, अभी और नीचे जाने में फासला है।
हाल के वर्षों में बिक्री दर में गिरावट रही है, पर अब भी यह आश्चर्यजनक रूप से करीब 15 फीसदी के सकारात्मक स्तर पर है। ऐसे में अगर अशोक लीलैंड जैसी कंपनियां बिक्री में गिरावट देख रही हैं तो कई ऐसी कंपनियां भी हैं, जो इस दौर में भी अच्छा कर रही हैं।
इसके उलट शुध्द लाभ का आंकड़ा सिकुड़ रहा है, इसका मतलब यह हुआ कि असल में मार्जिन का स्तर घट रहा है। कुल लाभ और बिक्री का अनुपात एक साल पहले के 15 फीसदी के मुकाबले घटकर करीब 11 फीसदी पर आ गया है।
यह अब भी सुखद है क्योंकि 2003-08 के तेजी वाले दौर की शुरुआत से पहले लाभ और बिक्री का अनुपात 7-8 फीसदी हुआ करता था। वास्तव में अगर हम पूरे कॉरपोरेट सेक्टर की बात करें तो यह अब भी अर्थव्यवस्था में सकारात्मक भूमिका अदा कर रहा है।
इसका मतलब यह हुआ कि कंपनियों की पूंजी पर औसत रिटर्न की दर (कर पूर्व) कर्ज की औसत लागत से बेहतर है। पिछली बार जब मंदी की आंधी चली थी तब ऐसा नहीं देखा गया था।
दूसरे विश्व युध्द के बाद वाली दुनिया में छाई इस मंदी को अगर सभी मंदियों से अव्वल मानें, तब भी भारतीय कंपनियां धरातल से काफी दूर दिख रही हैं, यानी इन्हें धरातल पर पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
आंकड़े और भी बुरे हो सकते हैं, इसकी एक ही वजह है जबकि दो कारक आशावादी तस्वीर पेश कर रहे हैं। नकारात्मक यह है कि अच्छे परिणाम सबसे पहले सामने आ गए और अब तक उपलब्ध नतीजे अच्छे ही हैं। जिन कंपनियों ने अच्छा नहीं किया है, वे अपने नतीजों के ऐलान में देर कर सकती हैं।
जब कॉरपोरेट सेक्टर के पूरे आंकड़े सामने आ जाएंगे तब यह तस्वीर कम भरोसेमंद लग सकती है। इसके उलट तर्क दिए जा रहे हैं कि अमेरिकी बैंकों और ब्रिटेन (वास्तव में उनमें से कई ने काफी मुनाफा कमाया है) की तरह भारतीय बैंक धराशायी नहीं हो रहे,
लिहाजा भारतीय कंपनियां भी विदेशी कंपनियों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन जारी रखेंगी क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तेज विकास वाली अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
गुलाबी तस्वीर पेश करने वाले ये लोग अगले साल कम से कम 4 फीसदी की विकास दर की बात कर रहे हैं, ऐसे में गैर कृषि क्षेत्र को इससे तेज विकास की रफ्तार से चलना होगा। अगर मुद्रास्फीति को साथ लेकर चलें तब भी बिल्कुल संभव है कि कॉरपोरेट की बिक्री दर 10 फीसदी से नीचे नहीं आएगी।
आशावाद की दूसरी वजह लाभ में सिकुड़न से जुड़ी है। सत्यम के घटनाक्रम के बाद कंपनियां विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव में नुकसान उठाने के बाद भी अपना दामन पाक-साफ करने में जुटी है।
निश्चित रूप से इस सेगमेंट में रैनबैक्सी और कुछ दूसरी कंपनियों के बड़े नुकसान की खबर है और संकेत है कि खराब चीजें बाहर कर दी जाएंगी।
ऐसे में कुछ कंपनियों द्वारा लाभ में गिरावट को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जा सकता है क्योंकि उनके खाते-बही पाक-साफ हो चुके होंगे।शायद ये सारी बातें सही हैं, लेकिन एक मुद्दा ऐसा है जो बताता है कि भारतीय कंपनियों के लिए स्थिति और खराब होगी क्योंकि औद्योगिक देश अभी भी बुरी स्थिति में हैं।
मुद्रा का प्रवाह बढ़ाकर और ब्याज दर में ऐतिहासिक कमी के बावजूद समस्याओं का अंत नहीं हो पाया है। हर जगह घाटा झेल रहे बैंकों को राहत पैकेज दिया जा चुका है,
क्रेडिट कार्ड डिफॉल्टर सामने आने लगे हैं, हाउसिंग बाजार सुस्त है, कारों की बिक्री 25 साल पहले के स्तर पर आ गई है, और बेरोजगारों की जमात में इजाफा जारी है।
दूसरी ओर पड़ोसी देश चीन की तिमाही विकास दर हाल के समय में सबसे निचले स्तर पर है। ऐसे में भरोसा करना मुश्किल है कि ये चीजें भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव नहीं डालेंगी। कुल मिलाकर अभी और बुरी खबरें आनी बाकी हैं।