एक आलेख में मैंने कहा था कि बेरोजगारी का मतलब अनिवार्य तौर पर यह नहीं है कि युवा चाय के ठेलों पर नजर आएं। यह भी संभव है कि वे पढ़ाई कर रहे हों या घर के काम संभाल रहे हों। अब हम बेरोजगारों को उनकी आय के वर्ग के हिसाब से चिह्नित करने का प्रयास करेंगे। वे गरीब हैं या मध्यवर्गीय या फिर अपेक्षाकृत समृद्ध वर्ग से आते हैं? सीएमआईई का पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) ऐसी कवायद को संभव बनाता है क्योंकि यह रोजगार के दर्जे के लिए आंके गए हर व्यक्ति को एक परिवार के साथ जोड़ता है। यह परिवारों की आय के आंकड़े भी पेश करता है।
अपनी सुविधा के लिए हम परिवारों को पांच आय वर्गों में बांटेंगे। वर्गों का विभाजन प्रतिशत में नहीं किया गया है जैसा कि अकादमिक क्षेत्र का मानक है, बल्कि इसे परिवारों की सालाना आय के आधार पर निर्धारित किया गया है। पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर वे परिवार हैं जो एक वर्ष में एक लाख रुपये से कम कमाते हैं। अगला समूह सालाना एक लाख से दो लाख रुपये के बीच आय अर्जित करता है। ध्यान रहे कि महामारी के पहले वाले वर्ष यानी 2019-20 में आम परिवारों की आय का माध्य 187,410 रुपये था और 2020-21 में यह 170,500 रुपये था। ऐसे में हम इस समूह को निम्र मध्य वर्ग कह सकते हैं। परिवारों का तीसरा समूह सालाना दो लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक कमाता है। इस श्रेणी को मध्य आय वर्ग कहा जा सकता है। चौथा समूह सालाना पांच लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच कमाता है जिसे उच्च मध्य वर्ग कहा जा सकता है। सालाना 10 लाख रुपये से अधिक आय वाले परिवारों को अमीर वर्ग में गिना जा सकता है।
सन 2019-20 में कुल परिवारों में सबसे गरीब परिवारों की हिस्सेदारी 9.8 फीसदी थी और केवल 3.2 फीसदी ही बेरोजगार थे। सन 2020-21 में और 2021-22 की पहली छमाही में कुल परिवारों में उनकी हिस्सेदारी 16.6 फीसदी थी लेकिन कुल बेरोजगार केवल 3.5 फीसदी ही थे। सबसे गरीब परिवार वे नहीं हैं जिनमें बड़े पैमाने पर बेरोजगारी व्याप्त थी। इसका एक स्पष्टीकरण तो यह है कि गरीब बेरोजगार नहीं रह सकते इसलिए वे बड़े पैमाने पर रोजगारशुदा रहते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। निश्चित रूप से महामारी से पहले यानी सितंबर-दिसंबर 2019 में इस समूह में बेरोजगारी की दर सबसे कम यानी 4.1 फीसदी थी जबकि सितंबर-दिसंबर 2021 के दरमियान यह 4.8 फीसदी रही। परंतु श्रम भागीदारी के मामले में भी यह इस अवधि में क्रमश: 38.1 फीसदी और 31.3 फीसदी के साथ निचले स्तर पर रहा। जबकि रोजगार दर क्रमश: 36.5 फीसदी और 29.8 फीसदी रही। ये सभी आय वर्गों में न्यूनतम प्रदर्शन है। स्पष्ट है कि सबसे गरीब परिवार रोजगार की सबसे खराब स्थितियों से दो-चार होते हैं। मेहनताने के मामले में भी उनकी स्थिति सबसे कमजोर होती है। एक गरीब परिवार की औसत वेतन संबंधी आय भी सबसे कमजोर रहती है। एक गरीब परिवार की औसत वेतन संबंधी आय करीब 53,000 रुपये वार्षिक है जो सभी परिवारों की औसत आय से आधी से कम है। गरीब परिवारों को कम रोजगार और कम वेतन दोहरी मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
बेरोजगारों में से एक तिहाई से अधिक निम्र मध्य आय वाले घरों में रहते हैं। कुल परिवारों में इनकी हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी है। श्रम शक्ति भागीदारी और रोजगार दर दोनों मामलों में यह समूह सबसे गरीब परिवारों से बेहतर है लेकिन यह अन्य सभी वर्गों से कमतर है। आंकड़ों से यही संकेत मिलता है कि इस आय वर्ग का एक बड़ा हिस्सा 2021-22 से निम्र आय वर्ग वाले तबके में चला गया। इस दौरान कुल बेरोजगारी में इस वर्ग की हिस्सेदारी सितंबर-दिसंबर 2019 के 33 फीसदी से बढ़कर मई-अगस्त 2021 तक 39.5 फीसदी हो गई। सितंबर-दिसंबर 2021 के बीच यह दोबारा 35.7 फीसदी हो गई। बेरोजगार आबादी का बड़ा हिस्सा मध्यवर्ग के परिवार में रहता है यानी जिनकी सालाना आय दो लाख रुपये से तीन लाख रुपये के बीच है। ये परिवार कुल परिवारों का लगभग आधा हैं और बेरोजगारी में भी इनका योगदान करीब उतना ही है। यह आय वर्ग गैर समृद्ध वर्गों में श्रम शक्ति भागीदारी में उच्चतम है और इसका स्तर 40.8 फीसदी है। इस आय वर्ग के परिवारों में बेरोजगारों की तादाद सबसे अधिक है और बेरोजगारी की दर भी 9 फीसदी से अधिक है।
मध्यम आय समूह के परिवार का औसत वेतन सालाना दो लाख रुपये से थोड़ा कम है। ध्यान रहे कि वेतन आय परिवारों की कुल आय का हिस्सा है। देश की सबसे बड़ी चुनौती ऐसे रोजगार दिलाना है जिनसे मध्य वर्ग के परिवारों के 1.6 करोड़ बेरोजगारों को दो लाख रुपये प्रति माह से अधिक वेतन मिल सके।
यहां इस तथ्य को भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि सीपीएचएस के आंकड़े हमें यह भी बताते हैं कि उपभोक्ता रुझानों में सुधार हो रहा है और मध्य वर्ग में सबसे अधिक सुधार हो रहा है।
अमीर परिवारों को बेेरोजगारी का दंश सबसे कम झेलना पड़ता है। कुल परिवारों में उनकी हिस्सेदारी आधा फीसदी है और बेरोजगारी में भी उनका हिस्सा करीब इतना ही है। श्रम शक्ति में उनकी औसत भागीदारी 46.3 फीसदी है जो सभी आय वर्गों में सर्वाधिक है। उनकी बेरोजगारी दर सभी आय वर्गों में सबसे अधिक तेजी से बढ़ी लेकिन तब से इसमें गिरावट आई है। महामारी की पहली लहर के दौरान यह 15 फीसदी से अधिक थी। लेकिन 2021 में यह दर औसतन 5.2 फीसदी रही। रोजगार दर ज्यादातर अवसरों पर 40 फीसदी से अधिक रही। लेकिन सितंबर-दिसंबर 2021 के दौरान यह बढ़कर 45 फीसदी हो गई। यह अन्य समूहों से काफी अधिक है जहां यह दर 30 से 40 फीसदी के बीच रही।
बहरहाल, भारत का 45 फीसदी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी 54 फीसदी के वैश्विक औसत से काफी खराब है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
