भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार में प्रवेश करने का प्रयास कर रहा है और सरकार ने इसके लिए 10 अरब डॉलर की राशि देने की प्रतिबद्धता जताई है। यह सही समय पर उठाया गया कदम है लेकिन नीतिगत निर्णय के बाद जमीन पर भी काफी काम करने की आवश्यकता है। बीते तीन वर्षों के दौरान चिप की मूल्य श्रृंखला बुरी तरह बाधित हुई है। सबसे पहले महामारी ने उसे प्रभावित किया, उसके बाद यूक्रेन में छिड़ी जंग ने नियॉन गैस की आपूर्ति पर असर डाला जो सेमीकंडक्टर के निर्माण की प्रक्रिया में इस्तेमाल होती है। भारत इकलौता ऐसा देश नहीं है जो आपूर्ति में आ रही कमी को दूर करने की कोशिश कर रहा हो। अमेरिका ने हाल ही में चिप ऐंड साइंस ऐेक्ट लागू करके अमेरिकी चिप निर्माताओं को 52 अरब डॉलर की राशि देने की प्रतिबद्धता जताई है। यूरोपीय संघ भी ऐसा ही कानून बनाने के मामले में अंतिम चरण में है।
अगर भारत इस क्षेत्र में उतरता है तो उसे कुछ अहम लाभ हासिल हैं लेकिन यदि वह सफलता चाहता है तो उसे कई चुनौतियों से भी पार पाना होगा। सबसे पहले, भारत का अतीत ऐसा है कि उसे चिप डिजाइन करने में पर्याप्त अनुभव और कौशल हासिल है। दूसरा, भारत एक बहुत बड़ा बाजार है जो 5जी दूरसंचार सेवाओं की शुरुआत के बाद और तेजी से विकसित होगा। ऐसा इसलिए कि 5जी की शुरुआत के बाद इंटरनेट की गति तेज होगी और उद्यमों तथा उपभोक्ता संबंधी ऐप्लीकेशन की बाढ़ आएगी। इससे चिप की मांग नए सिरे से बढ़ेगी। इसके अलावा भारत में बहुत बड़ा वाहन उद्योग है जो चिप की कमी से जूझता रहा है। घरेलू सेमीकंडक्टर विनिर्माण से बढ़ते विमानन और रक्षा क्षेत्रों को भी गति मिल सकती है। इससे स्थानीय मोबाइल उपकरण निर्माता कंपनियों को भी मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। बड़ा बाजार और डिजाइन की ताकत ने पहले ही कारोबारियों के मन में रुचि पैदा की है और खबरों के मुताबिक सेमीकंडक्टर बनाने वाली कुछ बड़ी कंपनियां घरेलू कारोबारी समूहों से बातचीत भी कर रही हैं।
कुछ चुनौतियां और मसले तो सामान्य हैं जबकि कुछ अन्य खासतौर पर सेमीकंडक्टर उद्योग से ताल्लुक रखते हैं। भारत में किसी भी तरह का कारोबार स्थानांतरित करने की इच्छा रखने वाले उपक्रमों ने बार-बार अस्पष्ट नीतिगत मसौदे को लेकर हताशा जाहिर की है। नीतियों में जो बातें बारीक अक्षरों में लिखी जाती हैं उनमें स्पष्टता होनी चाहिए ताकि संभावित निवेशकों को राहत दी जा सके। इसके अलावा हर प्रकार की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में अंतहीन देरी होती है। पर्यावरण तथा अन्य सांविधिक मंजूरियों के मामले में भी देरी होती है। यह नीति निर्माताओं पर निर्भर करता है कि वे इन प्रक्रियाओं में तेजी लाएं और उन्हें यथासंभव पारदर्शी बनाएं। यह बात इसलिए भी सही है कि भारत का सामना अमेरिका और यूरोपीय संघ से है जो उन्हीं वैश्विक कंपनियों को आकर्षित कर रही हैं। सेमीकंडक्टर विनिर्माण उद्योग को आर्थिक रूप से कारोबार योग्य बनाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन करना होता है। यह ऐसा विशिष्ट उद्योग है कि केवल 15 ऐसी कंपनियां हैं जो विश्व स्तर पर काम करने का कौशल और आकार रखती हैं। 10 अरब डॉलर की नीतिगत प्रतिबद्धता तथा मदद की आश्वस्ति भर से शायद चिप निर्माण के महंगे उद्योग स्थापित न हो पाएं।
अन्य चुनौतियां अधोसंरचना की कमी से उत्पन्न होती हैं जो उत्पादन को प्रभावित कर सकती हैं। चिप विनिर्माण के लिए बहुत बड़े पैमाने पर शुद्ध पानी और अबाध बिजली आपूर्ति की आवश्यकता होती है। भारत में पानी की कमी है और अधिकांश स्थानों पर उसकी गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है। सेमीकंडक्टर बनाने वाली किसी भी फैक्टरी को अपनी बिजली उत्पादन इकाई की जरूरत होगी जो कोई समस्या नहीं है। उसे आंतरिक स्तर पर पानी को साफ करने की भी व्यवस्था करनी होगी। जाहिर है ऐसे में फैक्टरी स्थापित करने की संभावित जगहों का चयन सीमित होता जाएगा। नीति निर्माताओं को इन बातों तथा चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए और उनसे निपटना चाहिए ताकि घरेलू सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिए मजबूत आधार तैयार किया जा सके।