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  लेख  भविष्य के लिए चीन का सपना
लेख

भविष्य के लिए चीन का सपना

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —April 17, 2021 12:09 AM IST
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चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय परियोजना (2020-25) और दूरगामी उद्देश्यों (2020-2035) की सूची जारी की है। ये दोनों दस्तावेज वह राह दिखाते हैं जिस पर चलने के लिए चीन प्रतिबद्ध है और उसे इतिहास का एक नया युग बताता है। वर्ष 2035 आने तक चीन को समाजवादी आधुनिकीकरण का लक्ष्य हासिल हो जाने की उम्मीद है जो उसे 2049 तक एक विकसित आधुनिक राष्ट्र बनने के अगले बड़े लक्ष्य की ओर प्रेरित करेगा। वर्ष 2049 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ साल भी पूरे होंगे।
चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2020 की तुलना में 2035 तक दोगुना हो जाने की बात कही गई है। भले ही जीडीपी वृद्धि का कोई लक्ष्य तय नहीं किया गया है लेकिन यह सालाना 5-6 फीसदी जरूर होगा। पंचवर्षीय योजना परिपत्र में कहा गया है कि चीन मात्रात्मक वृद्धि के बजाय गुणवत्तापरक वृद्धि का लक्ष्य लेकर चलेगा और इसके लिए नवाचार विकास रणनीति के केंद्र  में रहेगा। शोध एवं विकास (आरऐंडडी) व्यय सालाना 7 फीसदी की दर से बढऩे की बात कही गई है जिसमें बड़ा हिस्सा बुनियादी शोध का होगा।
हाल के वर्षों में चीन ने अपने विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र के तीव्र विकास पर अधिक जोर दिया है। लेकिन 14वीं पंचवर्षीय योजना फिर से विनिर्माण को केंद्र में लाने की बात करती है ताकि इसका हिस्सा बुनियादी रूप से स्थिर बना रहे। कोविड महामारी के दौरान सेमी-कंडक्टर जैसे महत्त्वपूर्ण उत्पादों की आपूर्ति में खड़ी हुई बाधाओं ने यह सोच पैदा की होगी। इसके अलावा सामरिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित लक्ष्यों की प्राप्ति पर भी चीन का विशेष जोर है।
योजना का मूल मुद्दा दोहरा मुद्राचलन है जिसमें मुख्य जोर घरेलू मांग एवं आपूर्ति पर है। विदेश व्यापार एवं निवेश प्रवाह की शक्ल में बाहरी मुद्रा चलन से घरेलू आर्थिक लचीलापन बहाल होने और आयात पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है।
योजना और उद्देश्यों के ये दस्तावेज राष्ट्रपति शी चिनफिंग की तरफ से दिए गए अहम मार्गदर्शन को भी परिलक्षित करते हैं। अप्रैल 2020 में संपन्न केंद्रीय आर्थिक एवं वित्तीय कार्य सम्मेलन में चिनफिंग ने औद्योगिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र, सुरक्षित, विश्वसनीय एवं काबू की जा सकने वाली आपूर्ति शृंखलाएं बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने महत्त्वपूर्ण उत्पादों के लिए कम-से-कम एक वैकल्पिक स्रोत तक पहुंच भी सुनिश्चित करने को कहा था। उनके इस आह्वान में सामरिक एवं भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य भी निहित था। उन्होंने चीन से विनिर्माण को दूसरी जगह ले जाने को लेकर डाले जा रहे दबाव के बरक्स चीन पर दुनिया की मौजूदा निर्भरता का इस्तेमाल करने को कहा था। उन्होंने वैश्विक संसाधनों को चीनी बाजार की तरफ आकर्षित करने और चीन पर वैश्विक निर्भरता बढ़ाने की भी बात कही थी।
इस संदर्भ में बाह्य क्षेत्र को क्या काम सौंपा गया है? पंचवर्षीय योजना उस वास्तविकता को दर्शाती है कि पश्चिमी देशों से उन्नत एवं संवेदनशील तकनीकों तक पहुंच हासिल कर पाना अधिक मुश्किल हो चुका है लेकिन बुनियादी शोध में साझेदारी एवं गठजोड़ कर पाना अब भी मुमकिन है। बुनियादी शोध की चाह में भागीदारियां करना और विदेशों में शोध केंद्र स्थापित करने पर जोर दिया गया है। अनुकूल वीजा शर्तों एवं स्थायी निवास की पेशकश के जरिये चीन विदेशी विद्वानों एवं शोधकर्ताओं को आकर्षित करने की सोच रखता है। उसके साथ बौद्धिक संपदा संरक्षण कानून को अधिक सख्त बनाकर चीन के बनाए उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों को सुरक्षित रखने की भी तैयारी है। चीन ने तेज रफ्तार ट्रेन, दूरसंचार एवं बिजली उपकरणों में उच्च प्रौद्योगिकी का खूब इस्तेमाल किया है।
न्य-नागरिक समेकन (एमसीएफ) को बढ़ावा देने की पहल में भी सामरिक पहलू झलकता है जो नवाचार-केंद्रित वृद्धि के मकसद से अविभाज्य रूप से जुड़ा है। रक्षा क्षेत्र के लिए इस योजना में सूचनांकन से बौद्धिकीकरण की तरफ जाने की बात की गई है। इसमें आगे चलकर कृत्रिम मेधा (एआई), मशीन लर्निंग एवं क्वांटम कंप्यूटिंग को भी समाहित करने का उल्लेख है ताकि चीन की सेना अपनी क्षमताओं से आगे निकल सके और अमेरिका से पेश आ रही मौजूदा चुनौतियों का मुकाबला कर सके। पश्चिमी प्रशांत महासागर के विवादास्पद समुद्री क्षेत्र में चीन एआई एवं संबद्ध तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए निगरानी, पता लगाने, लक्ष्य तय करने एवं निशाना लगाने की क्षमताएं हासिल कर सकता है। इन क्षमताओं की प्राप्ति चीन के नागरिक एवं सैन्य दोनों क्षेत्रों के लिए मददगार औद्योगिक आधार के सामान्य तकनीकी उन्नयन का एक हिस्सा होगी।
चीन की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को इस बदलाव की अगुआई करने का जिम्मा सौंपा गया है लेकिन निजी क्षेत्र से भी अंशदान देने की अपेक्षा है। निजी कंपनियां सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के साथ साझेदारी के लिए प्रोत्साहित हो सकती हैं। सैन्य-नागरिक समेकन पश्चिमी एवं जापानी हाइटेक कंपनियों के लिए बड़ी दुविधा पैदा करेगा क्योंकि यह परखने का कोई आधार नहीं हो सकता है कि तकनीक का हस्तांतरण सैन्य उपयोग से होगा या नहीं। चिनफिंग को लगता है कि चीन के विशाल बाजार का लोभ उच्च तकनीकों के आने की राह प्रशस्त करेगा।
चीन का लक्ष्य तकनीकी सक्षमता के साथ  उत्पादन संयंत्रों का जखीरा खड़ा करना है ताकि जरूरत पडऩे पर उनका इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सैन्य मकसद पूरा करने में भी किया जा सके। मसलन, शोध एवं विकास, मानव संसाधन एवं क्षमता निर्माण, एयरपोर्ट या उपग्रह प्रणाली जैसे खास तरह के ढांचागत आधार जैसे सारे पहलू सैन्य-नागरिक समेकन के दावेदार हो सकते हैं। इस तरह वर्ष 2049 तक एक विश्व-स्तरीय सेना बनाने के लक्ष्य चीन के एक आधुनिक एवं विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प से पूरी तरह मेल खाता है। यह पूर्ण सैन्य तैनाती की संकल्पना से मेल खाती है जिसे दशकों पहले माओत्से तुंग ने पीपुल्स वॉर में आजमाया था। शायद हम चिनफिंग के रूप में माओ के एक समकालिक संस्करण का उभार देख रहे हैं।
पंचवर्षीय योजना एवं दूरगामी उद्देश्य चीन के व्यापक एवं महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने से प्रेरित हैं। चिनफिंग इन लक्ष्यों को चीनी स्वप्न कहते हैं। वर्ष 2049 की ओर जाने वाला रास्ता चीन के लिए 1978 से अब तक के तेज एवं प्रभावी वृद्धि की राह से अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। आर्थिक एवं वित्तीय कार्य सम्मेलन में चिनफिंग की टिप्पणी उस विन-विन फॉर्मूले को नहीं दर्शाती है जिसकी वकालत वह अक्सर करते रहते हैं। इसका ताल्लुुक इससे है कि चीन की आधुनिक कारोबारी रणनीति अपने कारोबारी साझेदारों, विरोधियों एवं दोस्तों की कीमत पर किस तरह चीन की ताकत बढ़ा सकती है। चीन के लिए आर्थिक विनिमय का मकसद आपसी लाभ वाली वैश्विक अंतर्निर्भरता न होकर खुद पर वैश्विक निर्भरता को बढ़ाना है ताकि एक हथियार के तौर पर भी उसका इस्तेमाल किया जा सके। ऑस्ट्रेलिया जैसे व्यापारिक साझेदारों के खिलाफ उठाए गए दंडात्मक वाणिज्यिक कदम चीन को पीछे ले जाएंगे और दुनिया भर में चीन की मंशा को लेकर सतर्कता का भाव पैदा होगा। जर्मनी के राजनेता बिस्मार्क ने गठजोड़ों के दु:स्वप्न के बारे में कहा था कि एक बड़ी एवं उभरती हुई ताकत इसकी बाधा से ग्रस्त होती है। यह चीनी स्वप्न को भंग भी कर सकता है।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव एवं सीपीआर के सीनियर फेलो हैं)

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