चीन अल्पावधि और मध्यावधि में वैश्विक आर्थिक और भूराजनीतिक भविष्य में अहम भूमिका निभाने वाला देश है। बीते सप्ताह घटित दो घटनाओं ने इस बात पर एक बार फिर नए सिरे से बल दिया। इनमें से एक सुरक्षा से जुड़ी है और दूसरी आर्थिक व्यवस्था से।
पहली घटना थी अमेरिका और चीन के विदेश मंत्रियों की तनावपूर्ण स्थिति में हुई बैठक और उसके बाद अमेरिका का यह चौंकाने वाला दावा कि चीन, रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के समर्थन में रूस को सैन्य सहायता भेजने वाला है। उम्मीद के मुताबिक ही चीन ने इस दावे को खारिज कर दिया। यह सब ऐसे समय पर हुआ जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन बिना बताए अचानक यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचे।
पश्चिमी देश जहां पिछले वर्ष रूसी आक्रमण के बाद से ही यूक्रेन की मदद कर रहे हैं, वहीं रूस ईरान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर निर्भर रहा है। चीन के घातक हथियारों की उपलब्धता युद्ध के गणित को पूरी तरह बदल देगी और युद्ध काफी हद तक शीत युद्ध के दिनों के छद्म संघर्षों जैसा हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो यह पूरी दुनिया को अस्थिर करने वाला होगा जो इस समय आपूर्ति श्रृंखला को हुए नुकसान से निपटने की कोशिश कर रही है।
निर्णय लेने के मामले में चीन की अनिश्चितता बीते छह महीनों के दौरान महामारी नियंत्रण और अर्थव्यवस्था को दोबारा खोलने जैसे उसके नीतिगत निर्णयों में बदलाव में भी नजर आई। इस बात ने राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में अपेक्षाओं पर असर डाला है।
चीन कोविड-19 प्रतिबंधों में खुलेपन के बाद आई एक और लहर को पार कर चुका है और वहां गतिविधियां महामारी के पहले के स्तर पर पहुंच रही हैं। यह बात चीन और विश्व अर्थव्यवस्था को लेकर बदलते परिदृश्य में भी नजर आ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने ताजा आंकड़ों में 2023 में चीन के वृद्धि अनुमान को 0.8 फीसदी बढ़ा दिया है।
जैसा कि आईएमएफ ने रेखांकित किया कि अक्टूबर 2022 में प्रकाशित पिछले पूर्वानुमानों से अब तक सबसे बड़ा अंतर चीन में आया खुलापन है। इसकी वजह से गतिविधियों में अपेक्षा से अधिक तेजी से सुधार हुआ है। आईएमएफ के मुताबिक इसका शेष एशिया पर भी असर हुआ है और चीन की वृद्धि में एक फीसदी की बढ़ोतरी ने शेष एशिया को 0.3 फीसदी की तेजी प्रदान की है।
लेकिन अल्पावधि में सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक भी हो सकते हैं। चीन के सुधार में घरेलू बाधाएं नीति निर्माताओं और निवेशकों के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो अर्थव्यवस्था के पुनर्संतुलन और उसके निवेश आधारित वृद्धि से खपत आधारित वृद्धि की ओर जाने को उन उपायों से झटका लगा जो महामारी के दौरान अपनाए गए थे ताकि सुधार की गति को तेज किया जा सके।
मध्यम अवधि में चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत सकारात्मक परिदृश्य नहीं है और क्षेत्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव भी बहुत खुशनुमा नहीं नजर आ रहा है।
आईएमएफ ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि जो देश एशिया में चीन की अर्थव्यवस्था से प्रभावित हो रहे हैं अगर उन्हें मध्यम अवधि में संभलना है तो बाजार के अनुकूल सुधारों को अपनाना जारी रखना होगा। भारत के लिए ये सुधार एक दीर्घकालिक जरूरत रहे हैं।
आईएमएफ ने जो नहीं कहा लेकिन जो सच है वह यह कि आपूर्ति श्रृंखला को विकेंद्रीकृत करने की कोशिश को भी प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि चीन के अनिश्चित नीतिगत निर्णयों से बचा जा सके। चीन को अब वैश्विक सुरक्षा या अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने वाला माना जा सकता है और नीतिगत मोर्चों पर उसका अपने कदमों को पलटना इस प्रक्रिया को और तेज कर सकता है।