इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच अमेरिका की मध्यस्थता में असाधारण शांति समझौता हुआ। इस समझौते के बाद अरब जगत और पश्चिम एशिया के इकलौते यहूदी देश के रिश्तों की हकीकत में छिपाने लायक कोई बात नहीं रह गई। फिलीस्तीन के सवाल पर सार्वजनिक मतभेदों के बावजूद दोनों धड़े सन 1960 के दशक से ही एक दूसरे के साथ सहयोग करते रहे हैं। इजरायल के दो बड़े विरोधियों मिस्र और जॉर्डन ने क्रमश: सन 1979 और 1984 में उसे मान्यता भी दे दी। व्यापक तौर पर यह माना जा रहा है कि यूएई बिना सऊदी अरब की पूर्व अनुमति लिए पूर्ण राजनयिक रिश्तों की बहाली पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता है। अब अनुमान यही है कि यूएई और इजरायल का समझौता जल्दी ही इजरायल और सऊदी अरब के बीच औपचारिक राजनयिक रिश्तों का रास्ता भी खोलेगा।
एक बात जो दोनों ही पक्षों को चेहरा बचाने का अवसर देती है वह यह कि इजरायल समझौते की पूर्व शर्त के रूप में इस बात पर राजी हो गया है कि वह पश्चिमी तट पर फिलीस्तीनी भूभाग पर कब्जा करना बंद कर देगा। हालांकि यूएई ने इस बात पर कतई जोर नहीं दिया था कि इजरायल अपनी उक्त परियोजना बंद करे। फिलीस्तीन की 72 वर्ष पुरानी लड़ाई की अवमानना करके इजरायल के साथ यह जुड़ाव एक साझा भय से उपजा है और वह भय है ईरान तथा उसकी परमाणु महत्त्वाकांक्षाएं।
डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौते को एकतरफा ढंग से खारिज कर दिया। सीरिया से अमेरिकी फौजों की वापसी भी पश्चिम एशिया के देशों के सामने नई भू-राजनैतिक चुनौतियां पैदा करेगी। इजरायल-यूएई समझौता इसका भी प्रत्युत्तर है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि सुन्नी/यहूदियों और शिया ताकतों के धड़ों के बीच धु्रवीकरण अब खुलकर सामने आ गया है। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि यह गठजोड़ इस इलाके को कैसे प्रभावित करेगा जो पहले ही अधिनायकवादी शासन और आतंकवाद की राजनीति से पहले ही विषाक्त है। लेबनान और ईरान प्रायोजित हिजबुल्लाह इजरायल की उत्तरी सीमाओं के लिए खतरा बने हुए हैं। इराक को लेकर भी सवाल हैं क्योंकि वहां की शिया-सुन्नी में लगभग बराबरी से बंटी आबादी ने नई राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है।
पश्चिम एशिया के नए गठजोड़ ने अमेरिकी साझेदारों और रूस/चीन धुरी के बीच खाई को भी बढ़ाया है। रूस और चीन 2018 से ही ईरान के साथ रिश्ते बढ़ा रहे हैं। इन बातों ने पश्चिम एशिया में भारत की दशकों पुरानी संतुलन की कूटनीति को प्रभावित किया है। हमारे देश का 80 फीसदी तेल आयात वहीं से होता है और इजरायल हमारे रक्षा सॉफ्टवेयर का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यकीनन यह बात अहम है कि इजरायल के साथ समझौते के बाद यूएई के अधिकारियों ने जिन लोगों को सबसे पहले फोन किया उनमें भारतीय विदेश मंत्री शामिल थे।
भारत ने खुलकर इस समझौते का स्वागत किया और पश्चिम एशिया में शांति, स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने के बारे में खुलकर टिप्पणी की। इस बीच विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह समझौता फिलीस्तीन को लेकर भारत के पारंपरिक सहयोग को प्रभावित नहीं करेगा। यह आपसी भरोसा ही है कि सऊदी अरब ने दिल्ली-तेल अवीव के बीच एयर इंडिया के विमान को अपने ऊपर से उड़ान भरने की इजाजत दी। वहीं सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस्लामिक सहयोग संगठन ने पाकिस्तान के इस अनुरोध को ठुकरा दिया कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने पर विशेष सत्र आयोजित किया जाए।
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बाद भारत खुद को ईरान से दूर कर रहा है। इससे भी भारत में अरब देशों का भरोसा मजबूत हुआ होगा। बहरहाल, पश्चिम एशिया दिलचस्प हालात की ओर बढ़ रहा है।
