तकनीक क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों और उनका परिचालन करने वाले अरबपतियों को दुनिया के विभिन्न देशों में अप्रत्याशित सरकारी नियमन का सामना करना पड़ रहा है। कंपनियों और सरकारों के इस टकराव का जो भी नतीजा निकले मगर इसका तकनीक नवाचार और शोध कार्यों की दशा-दिशा पर दूरगामी प्रभाव होगा। दुनिया के कई देशों ने तकनीकी कंपनियों की ताकत पर अंकुश लगाने की पहल की हैं लेकिन अमेरिका और चीन के कदमों का असर सबसे अधिक रहेगा। इन दोनों देशों में दुनिया की ज्यादातर तकनीकी कंपनियों के मुख्यालय हैं। हालांकि इस संदर्भ में दोनों देशों का दृष्टिïकोण अलग-अलग है।
अमेरिका ने शुरू में चार बड़ी कंपनियों- एमेजॉन, ऐपल, फेसबुक और गूगल-के खिलाफ कदम उठाए थे। इन कंपनियों को उपभोक्ताओं और संभावित प्रतिस्पद्र्धियों के लिए जरूरत से अधिक शक्तिशाली माना जाता है। यूएस हाउस जुडिशियरी सब-कमिटी ने 2020 में कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की थी और पहला मामला गूगल के खिलाफ दर्ज हुआ था। 2020 के अंत तक ट्रंप प्रशासन ने इस मामले में कार्रवाई करने की दिशा में पहल शुरू कर दी थी। इन कंपनियों पर बाजार में अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल कर स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा को नुकसान पहुंचाने का आरोप है। बाइडन प्रशासन में कथित तौर पर स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा को नुकसान पहुंचाने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई तेज हो गई है। इन चारों कंपनियों के खिलाफ कई मामले दर्ज हुए हैं और अमेरिका की सरकार कठोर कार्रवाई करना चाहती है।
चीन के राष्टï्रपति शी चिनफिंग ने तकनीक क्षेत्र की शीर्ष कंपनियों के खिलाफ कुछ अधिक आक्रामक प्रतिक्रिया दिखाई है। दूसरे शब्दों में कहें तो चीन की सरकार का रवैया अपेक्षाकृत अधिक सख्त रहा है। चीन में नियामक वहां तकनीकी कंपनियों पर कार्रवाई कर रहे हैं। वास्तव में वहां की सरकार अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली अरबपति कारोबारियों पर नकेल कसना चाहती है। इसकी शुरुआत तब हुई थी जब चीन की सरकार ने अंतिम समय में ऐंट फाइनैंशियल का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) रोक दिया था। इसके बाद चीन के नियामकों की आलोचना करने वाले जैक मा की कंपनी अलीबाबा के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए गए। इस घटना के बाद जैक मा लंबे समय तक गायब हो गए और जब सामने आए तो उनमें सरकार के खिलाफ पहले जैसा पैनापन नहीं दिखा।
तब से लेकर चीन की कई अन्य कंपनियों के नियंत्रकों को भी वहां की सरकार के गुस्से का सामना करना पड़ा है। इनमें टेनसेंट के पोनी मा, कैब सेवा प्रदाता कंपनी दीदी के चेंग वी, चीन के शिक्षा-तकनीक क्षेत्र के अरबपति और कई अन्य लोग शामिल हैं। चीन के आक्रामक रुख के बाद चीन की तकनीकी कंपनियों के संयुक्त बाजार पूंजीकरण में 1 लाख करोड़ डॉलर की चपत लगी है। कुछ मामलों में नियमन में बदलाव किए गए हैं और कुछ मामलों में कंपनियों को दबाव बनाने के लिए जांच एवं सख्त आदेशों का सहारा लिया गया है।
इसके उलट अमेरिका में तकनीक क्षेत्र की कंपनियों पर लगे आरोपों पर अंतिम निष्कर्ष आने में कई और वर्ष लग सकते हैं। वहां फेसबुक और एमेजॉन जैसी कंपनियों का विभाजन हो सकता है या गूगल और ऐपल जैसी कंपनियों को उनकी नीतियां बदलने के लिए विवश किया जा सकता है। दूसरी तरफ टेस्ला, नेटफ्लिक्स, उबर या एयरबीएनबी जैसी तकनीकी कंपनियां उस स्तर पर नहीं पहुंची हैं जहां से वे अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे पहले आईबीएम और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के खिलाफ भी अलग-अलग दौर में सरकार ने प्रतिस्पद्र्धा नियमों के उल्लंघन के लिए कार्रवाई की है।
अमेरिका और चीन में तकनीकी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के दीर्घ अवधि में क्या परिणाम दिख सकते हैं? अमेरिका में एटीऐंडटी, आईबीएम और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के बाद नई तकनीकी कंपनियों को उभरने के अवसर मिले हैं। चीन के मामले में स्पष्टï नहीं है कि इसका नतीजा क्या होगा। इनमें जिन अधिकांश कंपनियों और उनके प्रमुखों के खिलाफ सख्ती बरती जा रही है उन्होंने चीन को तकनीक क्षेत्र में अमेरिका के लगभग समकक्ष शक्ति बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस), क्वांटम जंपिंग, वित्त-तकनीक एवं अन्य क्षेत्रों में ये कंपनियां अग्रणी रही हैं।
एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चीन की सरकार ने हमेशा तय किया कि देश में तकनीक शोध किसी दिशा में आगे बढ़ेगा और उसने निजी उद्यमियों को खास क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। इस समय चीन की नजर अत्याधुनिक चिप निर्माण और इस खंड में अमेरिका की बराबरी करने पर है। इसके अलावा क्वांटम जंपिंग और कृत्रिम मेधा खंडों में भी वह आगे जाना चाहता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इन खंडों में चीन अमेरिका के साथ बराबरी पर है। स्व-चालित कार, ड्रोन और सौर ऊर्जा में भी यह आगे निकलना चाहता है।
फेशियल रिकग्निशन, मोबाइल तकनीक एवं रोबोटिक्स खंड में चीन शायद अमेरिका से आगे निकल सकता है और बड़ी तकनीकी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई उनकी प्रगति पर बहुत असर नहीं डाल पाएगी। वास्तव में चीन सरकार ने इन कंपनियों के खिलाफ कदम उठाने से पहले यह सुनिश्चित कर लिया होगा कि उनकी प्रगति की दिशा में किसी तरह की बाधा नहीं आए। हां, चीन और यूरोपीय देशों में शोध करने वाले चीनी मूल के शोधकर्ताओं को आकर्षित करने में सरकार को दिक्कत हो सकती है। इन देशों में ज्यादातर निजी तकनीक कंपनियां शोध कर रही हैं।
अमेरिका में तकनीक की दौड़ वास्तव में तेज हो सकती है क्योंकि नए उद्यमियों को अपनी सोच आगे बढ़ाने के लिए रकम एवं आवश्यक स्वतंत्रता दी जाती है। हां, वेंचर कैपिटल इकाइयों के दृष्टिïकोण में कुछ बदलाव हो सकता है क्योंकि इनमें कई अपनी सुविधानुसार निवेश निकालने के लिए बड़ी तकनीकी कंपनियों पर निर्भर रहती हैं। हालांकि दीर्घ अवधि में उन पर असर नहीं होगा क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम और टेस्ला जैसी कंपनियां मजबूत संभावनाओं वाली स्टार्टअप इकाइयां खरीदने के लिए आगे आ जाएंगी। अमेरिका में बड़ी तकनीकी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भारत जैसे देशों में स्टार्टअप इकाइयों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव डाल सकती है। अमेरिकी एवं चीन की कंपनियों ने बेहतर संभावनाओं वाली कंपनियों को पूंजी मुहैया करने के साथ ही उन्हें तकनीक के मोर्चे पर पैनापन लाने में मदद की है। यह सिलसिला शायद अब कमजोर पड़ सकता है। हालांकि दूसरी कंपनियां यह रिक्त स्थान भरने के लिए आगे आ सकती हैं। मगर एक बात तो तय है कि तकनीक खंड में शक्ति संतुलन पूरी तरह बदल जाएगा।
(लेखक बिज़नेस टुडे और बिज़नेसवल्र्ड के पूर्व संपादक और संपादकीय सलाहकार कंपनी प्रोजेकव्यू के संस्थापक एवं संपादक हैं।)