चाकन का नाम आपके लिए हो सकता हो अनजान हो, लेकिन इससे इस जगह की अहमियत खत्म नहीं हो जाती। इतिहास में इस जगह की अपनी अलग जगह है।
इस जगह खड़ा हुआ एक किले का खंडहर यहां मराठों और अंग्रेजों के बीच हुई आखिरी जंग की गवाह है। यहां कई मंदिर और पिकनिक स्पॉट भी हैं। कुछ साल पहले तक लोग बाग यहां घूमने-फिरने और मौज मनाने के लिए ही आया करते थे, लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है।
आज यहां आपको पर्यटकों से ज्यादा भीड़ तो कारोबारियों की दिखेगी। क्यों? दरअसल, कभी भुलाई जा चुकी यह जगह आज की तारीख मे भारत के सबसे बड़े और सबसे व्यस्त ऑटो हब बन चुकी है। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम इस इलाके की तरफ विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए ओवरटाइम कर रही है। ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियों को अपनी तरफ खींचने के लिए निगम करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। इसके लिए उसने काफी आक्रामक रुख अपना रहा है।
हाल ही में जर्मन ऑटो कंपनी फॉक्सवैगन ने आंध्र प्रदेश में अपना एक प्लांट खोलने की घोषण की थी। लेकिन वहां जमीन हासिल करने के चक्कर में वह कंपनी विवादों में फंस गई। इससे परेशान होकर उसने महाराष्ट्र के इस इलाके में अपना कारखाना लगाने का फैसला कर लिया। यहां उसे महाराष्ट्र सरकार ने उसे ऑफर की 575 एकड़ जमीन और कारखाने से जुड़े मामलों का जल्द निपटारा।
वैसे, फॉक्सवैगन ही इकलौती कंपनी नहीं है, जिसकी मदद सरकार ने की हो। कुछ दिनों पहले जब जनरल मोटर्स के प्रेसिडेंट (एशिया-पैसेफिक) निक रेली राज्य सरकार और कंपनी के बीच हुए एक समझौते पर दस्तखत करने के लिए डेट्रोइट से मुंबई आ रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें पता चला कि उनका भारत का वीजा एक्सपायर हो चुका है।
आनन-फानन में राज्य सरकार के अधिकारियों ने मौके की कमान संभाली। जब उनका विमान मुंबई एयरपोर्ट पर उतरा तो राज्य सरकार के अधिकारी वहां जरूरी दस्तावेजों के साथ मौजूद थे और वे निक को चुपचाप वहां बाहर ले आए।
हो रहा है मोटा निवेश
मुंबई से पुणे-चाकन-तेलगांव इलाके में पहुंचने में केवल दो घंटे ही लगते हैं। यहां आज की तारीख में बड़ी-बड़ी ऑटो कंपनियां खिंची चली आ रही हैं। अभी पिछले महीने ही तो महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स ने इस इलाके में अपने विस्तार के लिए पूरे 10 हजार करोड़ रुपये का मोटा-ताजा निवेश करने का ऐलान किया।
अगर इन दोनों कंपनियों के इस ऐलान ने अमली जामा पहन लिया तो वे पांच लाख और वाहनों का निर्माण कर पाएंगे। महिंद्रा के प्रेसिडेंट (ऑटोमोटिव) पवन गोयनका का कहना है कि,’महाराष्ट्र हमारा प्रोजडक्शन बेस है। इसीलिए तो यहां हमें लोगों और सामान को एक से दूसरी जगह भेजने में काफी आसानी होती है।
मिसाल के तौर पर चाकन को ही ले लीजिए। हम यहां अपनी गाड़ियां बना सकते हैं और फिर इंजन इगतपुरी से मंगवा सकते हैं। प्रोडक्शन का सारा का सारा मामला सूबे में ही रहेगा। हमारी इस मामले में सरकार के साथ बात-चीत भी काफी प्रोफेशनल तरीके से हो रही है।’
कार बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जनरल मोटर्स ने तो तेलगांव में बन रहे अपने कारखाने का ट्रायल रन भी शुरू कर दिया है। 300 एकड़ जमीन पर फैली इस फैक्टरी को बनाने में कंपनी ने 1200 करोड़ रुपये लगाए हैं और यहां हर साल कम से कम 1.4 लाख कारें प्रोसेस की जाएंगी। दूसरी तरफ, जनरल मोटर्स के साथ अक्सर होड़ में रहने वाली फॉक्सवैगन ने इस इलाके के लिए अपने इनवेस्टमेंट प्लान को बढ़ाकर 3500 करोड़ रुपये कर दिया है।
साथ ही, इसने यहां बन रही अपनी फैक्टरी की कमर्शियल प्रोडक्शन की शुरू होने की तारीख भी 2010 से घटाकर 2009 कर दी है। यह कंपनी सप्लाई लाइन को बरकरार और मजबूत रखने के लिए यहां 200 एकड़ में एक वेंडर पार्क भी बना रही है। इससे कम से कम समय में चीजें मिल जाएंगी।
फॉक्सवैगन के डाइरेक्टर (मैन्युफैक्चरिंग इंजिनियरिंग) थॉमस डाहलेम का कहना है कि, ‘हमारी केवल तीन जरूरतें थीं। पहली जरूरत तो यह कि हमारी इंजिरियरों तक अच्छी पहुंच हो। फिर हमें चाहिए था एक बड़ा सप्लाइयर बेस। अच्छा बुनियादी ढांचा भी काफी अहम था हमारे लिए। इस हिसाब से पुणे-चाकन हमें काफी पसंद आया।’
नई कंपनियों की भी है पसंद
इसी से तो खुश होकर नामी कंपनियां के साथ-साथ भारत में नई कंपनियां भी चाकन की ही रुख कर रही हैं। अब ऑटो कंपोनेंट बनाने वाली कंपनी जेडएफ फ्राइडिशिफेन को ही ले लीजिए। ऑटो ट्रांसमिशन, शॉक्स और कल्च बनाने वाली इस कंपनी ने चाकन में 125 करोड़ रुपये का निवेश करने का इरादा जताया है।
कंपनी ने चेन्नई और उत्तराखंड को दरकिनार करते हुए अपने प्लांट के लिए इस इलाके को चुना है। कंपनी के मैनेजिंग डाइरेक्टर पीयूष मुनॉट का कहना है कि, ‘इस इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर तो कमाल का है। साथ ही, अच्छे कामगार और बिजली भी जरूरत के हिसाब से पूरी तादाद में मिल जाते हैं। साथ ही, हमें यहां बड़े खिलाड़ी भी मिलेंगे, जिन्हें हम अपना सामान बेच सकते हैं।’
इसके अलावा, कई दूसरी कंपनियां भी इस इलाके में अपने पंख फैलाने को बेकरार हैं। बजाज ऑटो के डिप्टी मैनेजिंग डाइरेक्टर संजीव बजाज का कहना है कि,’ हम रेनो और निसान के साथ मिलकर शुरू होने वाले अपने कार प्रोजेक्ट के लिए चाकन के बारे में ही सोच रहे हैं।’ बजाज का यहां पहले से ही एक टू-व्हीलर प्लांट है। मुंजल खानदान भी अपने ट्रक प्लांट के लिए अपने पुराने घर दिल्ली-गुड़गांव को छोड़ पुणे का दामन थाम सकता है।
चमकदार भविष्य
कुल मिलाकर आज की तारीख में इस इलाके में सूबे की हुकूमत ने 40 हजार करोड़ रुपये का निवेश इस इलाके में जुटा रखा है। राज्य सरकार के पूर्व उद्योग सचिव और राज्य में आई इस औद्योगिक क्रांति के जनक वी.के. जयरथ का कहना है कि, ‘2010 तक तो हमें उम्मीद है कि सूबे के इस हिस्से से 15 लाख कारों और ट्रकों का उत्पादन होने लगेगा।
आज की तुलना में तो यह तादाद तो तीन गुनी होगी।’ यह देश भर के ऑटोमोबाइल सेक्टर में होने वाले कुल उत्पादन ता 35-40 फीसदी हिस्सा होगा। चाकन की तुलना में तो उत्तराखंड को ऑटोमोबाइल सेक्टर में केवल 8000 करोड़ रुपये का निवेश मिला है, जबकि चेन्नई को 15 हजार करोड़ रुपये का।
क्या था इतिहास?
सच कहें तो 1970 और 80 के दशक में एक दौर ऐसा भी था, जब पुणे को भारत का डेट्रोइट माना जाता था। तब टाटा, फिरोडिया, महिंद्रा और किर्लोस्कर तब इसे अपने वाहन निर्माण केंद्र के तौर इस्तेमाल करते थे। लेकिन दत्ता सामंत के आतंकित कर देने वाली यूनियनबाजी, प्रीमियर के ऑटो कारखाने में तालेबंदी और राज्य सरकार की अनदेखी की वजह से निवेशकों का मन इस इलाके से खट्टा हो गया।
जयरथ ने स्वीकारा कि, ‘हमें पहला बड़ा झटका तब लगा, जब हम हुंडई को महाराष्ट्र में नहीं ला पाए। दूसरा बड़ा झटका हमें टोयोटा की महाराष्ट्र की अनदेखी के रूप में लगा।’ 2005 में इस मुद्दे पर बात करने पर सरकार को पता चला कि चेन्नई और उत्तराखंड के मुकाबले उसकी नीतियां ज्यादा लुभावनी नहीं थी। साथ ही, महाराष्ट्र में प्रोजेक्टों को क्लियेरेंस भी काफी देर से मिलता था। इसके अलावा, उत्तराखंड तो टैक्स में मोटी-ताजी छूट भी मिल रही थी।
नई तकदीर
इसके बाद 2006 में आई महाराष्ट्र की मेगा प्रोजेक्ट पॉलिसी, जो थी 250-500 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स के लिए। इसने तो जैसे कछुए की रफ्तार में मिलने वाली क्लियरेंस को खरगोश की स्पीड दिला दी। साथ ही, इस पॉलिसी ने यह भी सुनिश्चित कर दिया कि जहां जरूरत होगी खुद मुख्यमंत्री भी दखल दे सकते हैं।
जयनाथ का कहना है कि, ‘हमने क्लियरेंस के मामले में वन विंडो पॉलिसी लागू कर दी और निवेशकों को उनके जरूरत के हिसाब से बनाए गए पैकेज ऑफर किए। अगर उन्हें सस्ती जमीन की जरूरत होती थी, तो हम उस जरूरत को पूरा करते थे।’
इससे भी अहम बात यह थी कि राज्य सरकार ने यह फैसला किया कि वह किसी भी कंपनी के साथ समझौता तभी करेगी, जब उस कंपनी को सभी क्लियरेंस मिल जाएंगे। इसलिए तो जिस दिन सरकार ने जनरल मोटर्स के साथ समझौता किया था, उसी दिन पर्यावरण पर उसके पड़ने वाले प्रभावों की रिपोर्ट राज्य सरकार के पास तैयार थी। आमतौर इस रिपोर्ट को तैयार करने में सात से आठ महीने लग जाते हैं। साथ ही, कंपनी को जमीन हासिल करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा।
लुभावना ऑफर
अनुकूल नीति और बेहतर लोकेशन की वजह से निवेशक फिर से इस जगह की तरफ खिंचे आ रहे हैं। ट्रांसपोर्ट संबंधी खर्चों की वजह से जनरल मोटर्स ने चेन्नई और उत्तराखंड में प्लांट स्थापित करने का अपना इरादा टाल दिया।
जनरल मोटर्स के डाइरेक्टर एस. बालेंद्रन ने बताया, ‘हमारा सबसे बड़ा बाजार उत्तर भारत (35 से 40 फीसदी) है, जबकि देश के पश्चिमी इलाके में कुल बिक्री का हिस्सा 30 फीसदी है। इस वजह से हम देश के बीचोंबीच अपना प्लांट स्थापित करना चाहते थे।’ कंपनी को कई दूसरी वजहों से भी यह इलाका काफी बेहतर लगा।
मसलन, अब कंपनी के 70 फीसदी वेंडर इस इलाके में हैं और वड़ोदरा में पहले से इसका एक प्लांट मौजूद है। इसके मद्देनजर दूसरा प्लांट इस प्लांट के आसपास स्थापित करने से कंपनी की कई समस्याएं दूर हो जाएंगी। उत्तराखंड में वेंडर बेस बनाने के लिए तो कंपनी को जमीनी स्तर से शुरुआत करनी पड़ती।
महिंद्रा एंड महिंद्रा ने पुणे और चेन्नई से विभिन्न बाजारों में अपनी गाड़ियों के पहुंचने के लिए तय की जाने वाली दूरी संबंधी स्टडी भी की है। गोयनका कहते हैं कि चेन्नई में प्लांट होने की सूरत में हर गाड़ी पर लॉजिस्टिक्स का खर्च 4 से 5 हजार रुपये ज्यादा बैठता है। लेकिन निवेशकों के महाराष्ट्र की तरफ आकर्षित होने की सबसे बड़ी वजह राज्य में ऑफर की जाने वाली सब्सिडी है। इसके तहत राज्य में निश्चित अवधि के भीतर बिक्री के आधार पर निवेश में रिफंड का प्रावधान है।
कई कंपनियां श्रम की उपलब्धता और बंदरगाहों के पास होने की वजह से भी यहां का रुख कर रही हैं। डैमलर इंडिया के कॉरपोरेट अफेयर्स (फाइनैंस) के प्रमुख सुहास कदलस्कर कहते हैं कि कंपनी ने जब अपने नए प्लांट को पिम्परी के बजाय चाकन शिफ्ट करने का फैसला किया तो इस पर श्रमिकों ने कोई बवाल नहीं काटा। डैमलर इंडिया अपने प्लांट का विस्तार करने में जुटी है।
पूरब का ऑक्सफोर्ड
इन सुविधाओं के उपलब्ध होने की वजह इस इलाके में मजबूत सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री और प्रचुर इंजीनियरिंग प्रतिभाओं की मौजूदगी है। पुणे को पूरब का ऑक्सफर्ड कहा जाता है और यहां 1,100 से भी ज्यादा टेक्निकल और इंजीनियरिंग संस्थान मौजूद हैं। यहां से हर साल कम से कम 3 लाख छात्र तकनीकी डिग्री हासिल करते हैं।
दाहलेम कहते हैं कि यह सबसे अहम पहूल है, जिसकी वजह से कंपनी ने इस लोकेशन को चुनने का फैसला किया। अध्ययन बताते हैं कि श्रम पर होने वाला खर्च भले ही इस राज्य में ज्यादा (चेन्नई में यह खर्च यहां से 20 फीसदी कम है) हो, लेकिन उच्च उत्पादन दर श्रम खर्च की भरपाई कर देती है।
दिक्कतें भी हैं
हालांकि, ऐसा नहीं है कि ऑटो कंपनियों के लिए यह इलाका समस्याओं से बिल्कुल खाली है। यहां सबसे बड़ी समस्या बिजली की कमी है। टाटा मोटर्स के कार्यकारी निदेशक एस. तैलंग कहते हैं कि बिजली की हालत पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत होगी। फिलहाल बिजली की कमी पूरा करने के लिए टाटा पावर ने 100 मेगावाट और बिजली उत्पादन करने का फैसला किया है।
राज्य सरकार का दावा है कि 2010 तक यहां सरप्लस बिजली उपलब्ध होगी। लेकिन सरकार के इस दावे पर यकीन करने वालों की तादाद काफी कम है। कुछ कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि यहां मंजूरी लेने की प्रक्रिया में ज्यादा वक्त नहीं लगता, हालांकि अन्य विभागों के रवैये में बहुत ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिलता। गोयनका के मुताबिक, राज्य सरकार ने अगले 3 साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के प्रति प्रतिबध्दता जताई है।
अगर यह वादा पूरा हुआ तो कई लोगों को काफी निराशा होगी। साथ ही, टाटा की लखटकिया कार जैसे बड़े प्लांटों के यहां पहुंचने की संभावना काफी कम है। दरअसल ऐसे प्रोजेक्ट्स में कीमत का मसला काफी अहम होता है और महाराष्ट्र में जमीन की कीमतें और श्रम पर होने वाले खर्च में काफी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। उत्तराखंड में श्रम पर होने वाला खर्च पुणे के मुकाबले आधा है, जबकि जमीन की कीमतें एकतिहाई या एकचौथाई हैं। कुछ ऐसी ही सुविधाएं पश्चिम बंगाल जैसे बाजारों में भी उपलब्ध हैं।
ऐतिहासिक भविष्य
राज्य सरकार इन चुनौतियों से भलीभांति परिचित है। चूंकि नाव शिवा पर पहले से ही काफी भीड़ बढ़ गई है, इसलिए राज्य सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत सात छोटे बंदरगाहों की योजना पर काम कर रही है।
चाकन, तेलगांव, रंजनगांव और नासिक जैसे औद्योगिक इलाकों को जोड़ने के लिए फास्ट हाइवे का निर्माण भी किया जा रहा है। इस इलाके से रेलवे हाई स्पीड फ्रेट कॉरिडोर भी इस इलाके से गुजरेगा, इसलिए आवाजाही की हालत में सुधार की संभावना है।
जयरथ कहते हैं कि इस साल के अंत तक राज्य में बिजली के उत्पादन में 2 हजार मेगावाट की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। सड़कों का भी निर्माण किया जा रहा है, जिसके जरिए प्रमुख बाजारों और बंदरगाहों के बीच संपर्क को और बेहतर बनाया जा सकेगा। इसलिए कहा जा सकता है कि चाकन अपने ऐतिहासिक भविष्य को सुनिश्चित करने में जुटा हुआ है।