वित्तीय सुनामी के इस दौर में कॉर्पोरेट जगत में मुख्य वित्तीय अधिकारियों (सीएफओ) की पूछ बढ़ती जा रही है।
मंदी के इस माहौल में ज्यादातर नजरें सीएफओ की ओर ही लगी हुई हैं। अभी तक कंपनियों में सीईओ के बाद सीएफओ का पद ही सबसे बड़ा समझा जाता रहा है। देश की कंपनियों के कई सीएफओ ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा है कि वे अब ऑफिस में पहले के मुकाबले ज्यादा वक्त बिता रहे हैं।
साथ ही साथ टेलीविजन चैनलों से बातचीत और समाचार एजेंसियों से भी उनका नाता कुछ ज्यादा ही जुड़ता जा रहा है। ऐसे दौर में जब दुनिया भर की वित्तीय बुनियाद की जमीन खिसक रही है। कंपनियों के निदेशक और निवेशक दोनों सीईओ से ज्यादा सीएफओ से ज्यादा उम्मीद लगाए हुए हैं।
इन्हें लगता है कि सीएफओ ही वित्तीय सुनामी में उनके लिए खेवनहार बनकर सामने आएंगे। ऐसी स्थिति में जब पल भर में कुछ भी हो सकता है, सीएफओ को पूंजी, जिंस और विदेशी विनिमय बाजारों पर लगातार नजर रखनी पड़ रही है। इस पूरी कवायद का इतना ही मकसद है कि सही वक्त पर सही कदम उठाकर जोखिम को कम किया जाए। जो भी कंपनी के लिए पैसा जुटा सकता है वही कंपनी का तारणहार है।
जीवीके समूह के सीएफओ जॉर्ज इसाक कहते हैं, ‘नकदी का संकट गहराता जा रहा है।’ मौजूदा दौर में वही सीएफओ अच्छा है जो बड़ी रकम का सही प्रबंधन कर सके। ऐसे माहौल में भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीएफओ के बजाय देसी ब्रांड सीएफओ की मांग बढ़ रही है।
दरअसल, जमीन से जुड़ा होना और बहुत सारी दूसरी चीजों का अनुभव होना इनकी सबसे बड़ी यूएसपी साबित हो रहा है। प्रस्ताव के लिए रकम ज्यादा आकर्षक होती जा रही है तो दूसरी ओर नौकरी पर तलवार भी लटकी हुई है। एक गलत कदम भी खतरनाक साबित हो सकता है।
एक सीएफओ बताते हैं, ‘यह दौर 911 और डॉटकॉम बुलबुले से भी ज्यादा बुरा है। हर जगह अनिश्चितता का आलम छाया हुआ है। किसने सोचा था, डॉलर के मुकाबले रुपया 48 रुपये तक चला जाएगा।’ ज्यादातर सीएफओ अपने करेंसी जोखिम का सही प्रबंध करने में नाकाम रहे हैं।
इनमें से कइयों का सोचना था कि रुपये में सुधार होगा और यह 40 से 41 रुपये प्रति डॉलर तक वापस आ जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। कंपनियों को आयात- निर्यात दोनों में मुश्किलें पेश आ रही हैं। बिजनेस स्टैडर्ड ने पिछले साल दिसंबर में सीईओ के बीच एक सर्वे कराया था। इस सर्वे में शामिल अधिकतर सीईओ को मानना था कि 2008 के आखिर तक डॉलर की कीमत 37.50 रुपये तक पहुंच जाएगी।
आज के अनिश्चित माहौल में सीएफओ का कहना है कि कुछ वक्त के लिए किए जाने वाले उपाय कारगर साबित नहीं होने वाले। मसलन, जिंसों की कीमतें गिरने से ज्यादातर कंपनियों ने और ज्यादा गिरावट का अंदाजा लगाकर शॉर्ट टर्म खरीद शुरू कर दी।
पेप्सीको इंडिया के सीएफओ प्रवीण सोमेश्वर कहते हैं कि, ‘अगर आप काफी सोच-समझकर फैसले लेने वालों और छोटी अवधि के लिए निवेश करने वालों में से हैं तो आपके लिए मौकों की कमी नहीं है।’