क्या आपने कभी सुना है कि आपकी गाड़ी ऑफिस के पार्किंग एरिया में लगी हुई है और तभी इसकी सर्विसिंग के लिए एक मोबाइल कार वैन आकर इसे ठीक कर जाए?
या फिर जब आपकी कार रात में पार्किंग एरिया में खड़ी हो तो सर्विसिंग कंपनी खुद आकर इसे ठीक करने के लिए ले जाए और दिन में आकर लौटा जाए?
या फिर आपको किसी कंपनी की कार खरीदने के पहले इस बात पर माथापच्ची न करनी पड़े कि उस कंपनी के देश भर में सर्विस सेंटर हैं या नहीं?
अगर आप इन मसलों पर आज तक सिर खपाते रहे हैं तो हो सकता है कि जल्द ही आपको इससे छुटकारा मिल जाएगा। दरअसल कार के साथ दो तरह के पहलू जुड़े होते हैं: एक तो कार खरीदना और दूसरा उसकी जिंदगी भर देखरेख करना।
नब्बे के दशक में ही आधुनिक कारों का उत्पादन शुरू हो गया था और उसे खरीदने के लिए डीलरों की कमी भी नहीं रह गई थी। यानी कार खरीदने वाले पहलू का तनाव तो दूर हो ही चुका था।
उसके बाद बारी आती है कार की सर्विसिंग की जिसके लिए हम आज भी काफी हद तक पड़ोस के गैरेज पर ही निर्भर रहते हैं।
पर अब गाड़ियों की सर्विसिंग का तरीका भी बदलने जा रहा है और इसके लिए आपको घंटो लाइन में खड़े होकर अपना पसीना नहीं बहाना पड़ेगा। मारुति सुजूकी के पूर्व प्रमुख जगदीश खट्टर की कार्नेशन ऑटो कंपनी गाड़ियों की सर्विसिंग का मिजाज भी बदलने जा रही है।
यानी इस तरीके से कारों की सर्विसिंग को अब एक कॉरपोरेट लुक मिल जाएगा। खट्टर का मानना है कि उनकी यह कंपनी उत्पादन कंपनियों, फाइनैंसिंग और बीमा कंपनियों के साथ कार के मालिक को जोड़ने का काम करेगी।
उन्होंने कहा कि फिलहाल तो उनकी यह कंपनी गाड़ियों की मरम्मत और उनकी सर्विसिंग का काम करेगी पर कुछ समय बाद नई और पुरानी दोनों ही तरह की कारों को बेचने में भी उनकी कंपनी का योगदान रहेगा।
भले ही मौजूदा समय नए तरीके के कारोबार की शुरूआत के लिए मुफीद नजर नहीं आ रहा हो, फिर भी खट्टर का मानना है कि अपने इस कारोबार को वह इससे बेहतर समय में शुरू नहीं कर सकते थे।
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा समय खराब है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। हालात धीरे धीरे सुधर रहे हैं और संपत्ति के साथ साथ मानव संसाधन पर किए जाने वाले खर्च में भी सुधार आया है।’
कंपनी फरवरी तक दो ऑटो सेंटर खोलेगी और अप्रैल तक इनकी संख्या चार होगी, जिनमें दो नोएडा में और एक-एक बेंगलुरु और अमृतसर में होगा। कंपनी की योजना वित्त वर्ष 2009-10 के आखिर तक ऐसे 25 से 30 और 2012 तक 65 सेंटर खोलने की है।
इन सेंटरों को कंपनी या तो अकेले खोलेगी या फिर इसके लिए स्थानीय पक्षों के साथ संयुक्त उपक्रम तैयार किया जाएगा। इस साझे उपक्रम में कार्नेशन की बहुसंख्य हिस्सेदारी होगी। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में तो ऐसे दो संयुक्त उपक्रमों पर काम चल भी रहा है।
चूंकि ये सेंटर सर्विस स्टेशन की तरह होंगे, इसलिए खट्टर को भरोसा है कि एक साल के बाद ही इस कारोबार में वह लागत वसूलने लगेंगे।
पहले चरण में कार्नेशन में सभी कंपनी की गाड़ियों की सर्विसिंग की जाएगी, फिर 6 से 12 महीनों में कंपनी चुनिंदा कंपनी की कारों की अधिकृत सेवा प्रदाता कंपनी बन कर उभरने की ख्वाहिश रखती है।
वहीं 12 से 18 महीनों के अंदर कंपनी मल्टी-ब्रांड डीलरशिप में उतरना चाहती है और 24 से 36 महीनों में कंपनी की योजना पुरानी कारों को खरीद कर बेचने की है।