विशेषज्ञों की राय में एक उपयुक्त मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) का चयन निदेशक मंडल की महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं में एक है।
उत्तराधिकार संबंधी विषय सदैव चर्चा में रहा है। बात चाहे स्टार्टअप इकाइयों की हो या पारिवारिक व्यवसाय की या फिर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों से लेकर भारत की बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों की, उत्तराधिकार का मुद्दा हमेशा उभरा है। कुछ लोग ‘ऌप्रवर्तक-मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ)’ की नियुक्तियों के पक्ष में हैं तो कुछ पेशेवर सीईओ की नियुक्ति को अधिक तरजीह देते हैं। हालांकि ये दोनों ही दृष्टिकोण स्वयं में पूर्ण नहीं हैं क्योंकि ये केवल एक नजरिये से बंधे होते हैं। इसके बाद जो प्रश्न खड़े होते हैं वे पेचीदा एवं एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
एक सीईओ के रूप में परिवार का कोई सदस्य या पेशेवर में कौन अधिक उपयुक्त होता है? क्या पारिवारिक सदस्य या पेशेवर एक दूसरे से अलग होते हैं? क्या किसी आंतरिक सदस्य को शीर्ष पद दिया जाना चाहिए? क्या किसी बाहरी उम्मीदवार की तलाश करना बेहतर विकल्प होता है? जब एक पेशेवर सीईओ किसी कंपनी या इकाई की कमान संभालता है तो बहुलांश शेयरधारक या सीईओ में किसके हाथ में कमान रहेगी? क्या बहुलांश शेयरधारक अपनी स्वायत्तता सीईओ को सौंपने के बाद प्रभाव डालने या नियंत्रण अपने हाथ में रखने की स्थिति में हो सकते हैं? ये कई ऐसे प्रश्न हैं जिनसे निदेशक मंडल जूझता रहता है। इस आलेख में मैं एक प्रवर्तक सीईओ और एक पेशेवर सीईओ के विभिन्न पहलुओं को टटोलने की कोशिश करता हूं। कई संस्थापक एवं परिवारों का मानना है कि पेशेवर सीईओ दीर्घ अवधि के लिहाज से बड़ा दांव खेलने का माद्दा नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि पेशेवर तिमाही आधार पर स्थिति की समीक्षा करते हैं जबकि संस्थापक बड़े दांव चलते हैं। मगर यह बात केवल आंशिक रूप से सत्य है।
इस नजरिये के उलट कई लोगों का मानना है कि संस्थापक एवं परिवार समुचित ढंग से प्रक्रिया एवं संचालन नियमों का पालन नहीं करते हैं। उनकी नजर में संस्थापक एवं परिवार व्यक्तिगत लाभ को केंद्र में रखकर काम करते हैं। यह बात भी आंशिक रूप से ही सत्य है। नजरिया बिल्कुल अलग-अलग होने से प्रवर्तक और पेशेवर से जुड़े पहलू एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। यह एक सही मनोस्थिति नहीं है। कुछ ऐसे प्रवर्तक परिवार के सदस्य हैं जो अपनी शिक्षा, करियर और प्रबध्ंान दृष्टिकोण में पूरी तरह पेशेवर हैं। मुकेश अंबानी एक प्रखर उद्यमी होने के साथ ही एक पेशेवर भी हैं। राजीव बजाज, रिषद प्रेमजी और पवन मुंजाल के साथ भी यह बात लागू होती है।
इनके अलावा ऐसे प्रवर्तक भी हैं जिन्होंने कह दिया है कि उनके उत्तराधिकारी पहले से ही परिवार से बाहर के हैं। महिंद्रा ऐंड महिंद्रा में आनंद महिंद्रा, मारिको में हर्ष मारीवाला और कोटक महिंद्रा बैंक में उदय कोटक इसकी मिसाल हैं।
कुछ ऐसे पेशेवर भी होते हैं जो दीर्घ अवधि के दांव चलते हैं। एनटीपीसी में डी वी कपूर या बीएचईएल के वी कृष्णमूर्ति ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। टाटा केमिकल्स के दरबारी सेठ या टेल्को के सुमंत मुलगांवकर भी इसी श्रेणी में आते हैं। एलऐंडटी के अनिल नाइक के उदाहरण पर भी विचार किया जा सकता है जो एलऐंडटी के अधिग्रहण के प्रयास की राह में दीवार की तरह खड़े हो गए थे। नाइक ने प्रोजेक्ट लक्ष्य की शुरुआत कर कंपनी का बाजार मूल्यांकन दुरुस्त करने के लिए आवश्यक बदलाव किए। अजित नारायण हक्सर का भी उदाहरण विचारणीय है। उन्होंने 1970 के दशक में आईटीसी को होटल, पेपर और कृषि-कारोबार में उतार दिया था। उन्होंने तंबाकू कारोबार पर कंपनी की निर्भरता कम करने के लिए यह दांव खेला था। उनके उत्तराधिकारी जे एन सप्रू और के एल चुघ ने भी उद्यमशील एवं पेशेवर संस्कृति का विकास जारी रखा। योगी देवेश्वर ने भी अपने कार्यकाल की शुरुआत इसी अंदाज पर की मगर कुछ लोगों के अनुसार बाद में वह पेशेवर से अधिक प्रवर्तक बन गए।
लिहाजा भारतीय उद्योग जगत को उद्यमी और प्रबंधन पेशेवरों का अनुभव है। यह बात हर जगह नहीं पाई जाती है। प्रदर्शन के पैमाने पर भी उनकी साख अच्छी रही है। ऊपर जितने नामों की चर्चा की गई है, उनमें लगभग सभी इसी श्रेणी से ताल्लुक रखते हैं चाहे उनकी पृष्ठभूमि पेशेवर की रही है या प्रवर्तक की। सचाई यह है कि भारतीय उद्योग जगत को कई और उद्यमशील और पेशेवर सीईओ की जरूरत है। यह किसी एक ढांचे के चयन का सवाल नहीं है।
भारतीय उद्योग जगत पर टिप्पणी करने वाले कुछ लोग ‘नियंत्रण’ पर अधिक चर्चा करते रहते हैं। यह नियंत्रण है कंपनी के कारोबारी मामलों का? किसी कंपनी में निदेशक मंडल और कार्यकारी प्रबंधन ही नियंत्रण में होते हैं। नियंत्रण न तो सीईओ के हाथ में होता है और न ही बहुलांश शेयरधारकों के हाथों में मगर, यह सच है कि उनका प्रभाव खासा रहता है।
स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध 6,000 कंपनियों में 10 कंपनियों की कुल मुनाफे में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इनमें बाजार पूंजीकरण के लिहाज से शीर्ष कंपनियों का नेतृत्व उद्यमी, पेशेवर सीईओ कर रहे हैं। इन कंपनियों में रिलायंस, टीसीएस, एचडीएफसी, इन्फोसिस, एचयूएल, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी लिमिटेड, बजाज फाइनैंस, एसबीआई, भारती एयरटेल, विप्रो, कोटक महिंद्रा बैंक, एचसीएल टेक्रोलॉजीज, एशियन पेंट्स आदि शामिल हैं। आम तौर पर यह धारणा रही है कि पेशेवर बदलाव लाने से गुरेज करते हैं मगर उनमें कोई भी ऐसा नाम नहीं है। दूसरी तरफ 2020 में शीर्ष खराब प्रदर्शन करने वाली कंपनियों की समीक्षा करें तो गीतांजलि जेम्स, किंगफिशर एयरलाइंस, एबीजी शिपयार्ड, री एग्रो, विंडसम डायमंड्स का नाम आता है। ये सभी प्रवर्तकों के नेतृत्व में काम करती हैं।
(लेखक टाटा संस में निदेशक और हिंदुस्तान यूनिलीवर में उपाध्यक्ष रह चुके हैं।)
