दिल्ली में रहने वाले के. सिंह की पत्नी ने कुछ महीने पहले अपने 3 साल पुराने फ्रिज को लेकर शिकायत की।
उनकी शिकायत यह थी कि उनका फ्रिज चीजों को अच्छी तरह से ठंडा नहीं रख पा रहा है। सिंह वैसे इस तरह के मामलों में कम ही बहस करते हैं लेकिन उनका कहना था कि फ्रिज में जरूरत से ज्यादा सामान भर देने से वह सही तरीके से काम नहीं कर पाता।
कुछ भी हो, पत्नी की जिद ने उनको कंपनी के टोल फ्री नंबर पर फोन घुमवा ही दिया। कस्टमर सर्विस एजेंट ने उनसे बड़े ही शालीन अंदाज में कहा कि यह उनका काम बंद करने का समय है लेकिन फिर भी उसने कुछ न कुछ करने के लिए सिंह को आश्वस्त किया।
तकरीबन सात मिनट बाद सिंह का रोजाना की तरह दिल्ली के ट्रैफिक से ‘मुकाबला’ शुरू हुआ। तभी कंपनी के एक सर्विस इंजीनियर ने उन्हें कॉल किया। इंजीनियर ने उनसे उनकी शिकायत के बारे में पूछा और घर का पता भी लिया। सिंह उस समय गाड़ी चला रहे थे, उन्होंने इंजीनियर से कुछ देर बाद कॉल करने को कहा।
चालीस मिनट बाद जब सिंह घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके घर में सर्विस इंजीनियर उनके फ्रिज का मुआयना कर रहा है। सिंह कहते हैं, ‘उन्होंने डाटाबेस से हमारे बारे में जानकारी हासिल कर ली थी। वैसे तो फ्रिज की वारंटी खत्म हो चुकी थी और हमें उसकी मरम्मत के लिए खर्च भी करना पड़ा। लेकिन मुझे कंपनी की सर्विस बहुत बढ़िया लगी। ‘
आपको बता दें कि वह कंपनी कोई और नहीं बल्कि कोरिया की जानी मानी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी की भारतीय इकाई सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स है। और सिंह की कहानी को बताते हुए कंपनी के उप प्रबंध निदेशक रविंदर जुत्शी भावविह्वल हो उठते हैं। वह कहते हैं, ‘बिक्री के बाद अपनी बेहतरीन सर्विस मुझे बहुत हौसला देती है। संतुष्ट ग्राहक ही तो हमारे ब्रांड ऐंबेसडर हैं।’
दरअसल, पिछले कुछ दिनों में देसी कंज्यूमर डयूरेबल्स क्षेत्र में सैमसंग ने ऊंचे मानदंड स्थापित किए हैं और इस लिहाज से बहुत इज्जत कमाई है। कंपनी ने अपनी रणनीति में व्यापक स्तर पर फेरबदल किए और यहां तक कि प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के मॉडल में भी कुछ सुधार के साथ उनको भी आजमाया। नतीजा अब सबके सामने है। देश में कस्टमर सर्विस का बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है और तकरीबन 30,000 करोड़ रुपये सालाना के इस बाजार में, सैमसंग की दावेदारी तगड़ी होती जा रही है।
कैसे हुई शुरुआत
इस पूरी कवायद की शुरुआत के बाबत आप जुत्शी से पूछेंगे कि कंपनी कब से बिक्री के बाद बेहतरीन सर्विस देने को लेकर गंभीर हुई, तो आपको वैसा ही जवाब मिलेगा जैसा कि आपने अनुमान लगाया होगा। वह कहेंगे कि कंपनी पहले दिन से ही ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
वह कहते हैं, ‘सैमसंग ने 1995-96 में भारतीय बाजार में कदम रखा था। उस वक्त कंपनी का कारोबार बहुत कम था लेकिन सर्विस को लेकर पहले से ही कंपनी गंभीर रही है। उस वक्त भी शहरों में शिकायतें सुनने के लिए यूनीफॉर्म में सर्विस इंजीनियर आसानी से मिल जाया करते थे और ग्राहकों का ख्याल रखते थे।’
उस वक्त इंजीनियरों के पास पेजर हुआ करते थे क्योंकि देश में तब महंगा होने की वजह से मोबाइल का चलन नहीं था। (तब इनकमिंग कॉल के लिए भी 16.80 रुपये अदा करने पड़ते थे।) पिछले दो साल में कंपनी ने बेहद तेज रफ्तार से तरक्की की है।
इसका सालाना कारोबार बढ़कर 1.3 अरब डॉलर का हो गया है। अब कंपनी ग्राहक सेवाओं पर खास नजर गड़ाए हुए है। आज की तारीख में कंपनी की कस्टमर सर्विस में 5,000 कर्मचारी हैं। कस्टमर सर्विस के महाप्रबंधक नरेश राजदान बताते हैं कि यह इकाई कंपनी की सबसे बड़ी इकाई है। इस इकाई को ‘कस्टमर सैटिसफेक्शन’ का नाम दिया गया है।
दरअसल, कस्टमर सर्विस सिस्टम को शुरू करने के नाम पर कंपनी ने इसका ‘प्रबंधन’ खुद करना ज्यादा मुनासिब समझा। और इसी बात ने सबसे बड़ा अंतर तय किया। दूसरी कंपनियों की तरह सैमसंग इंडिया ने बिक्री के बाद सर्विस के लिए किसी भी चीज के लिए आउटसोर्सिंग का दामन नहीं पकड़ा।
यहां तक कि कॉल सेंटर के लिए भी उसने किसी और की सेवा लेना गवारा नहीं समझा। हर चीज का प्रबंध कंपनी ने खुद किया। राजदान कहते हैं, ‘नोएडा और चेन्नई में 350 सीटों वाले दो कॉल सेंटर आउटसोर्स किए गए हैं लेकिन उनका प्रबंधन कंपनी ही करती है। वहां काम करने वालों को वेतन भी हम ही तय करते हैं। इसके अलावा उपकरण, तकनीक और कस्टमर इंटरेक्शन भी कंपनी के हैं।’
ग्राहक सुविधा सर्वोपरि
आप सैमसंग के कस्टमर केयर के टोल फ्री नंबर पर कॉल कर खुद ही फर्क समझ सकते हैं। स्वागत संदेश के बाद कॉल सीधे एजेंट के पास ही चली जाती है। राजदान कहते हैं, ‘किसी मानवीय इंटरेक्शन को चुनने की दो सीधी सी वजहें हैं। पहली बात तो यह कि हम ग्राहक को यह महसूस कराना चाहते हैं कि कोई उनकी बात को सुन रहा है। दूसरा यह कि हम नहीं चाहते कि अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए ग्राहक को बहुत सारे बटन दबाने पड़ें। ‘
सैमसंग के कॉल सेंटर एजेंट हिंदी, अंग्रेजी के अलावा बांग्ला, गुजराती, तमिल और मलयालम में भी सेवा देते हैं। राजदान कहते हैं, ‘सिस्टम मैप कॉल को ट्रेस करता है। यदि उसमें कोलकाता कहा गया है तो इस बात की 90 फीसदी संभावना है कि वह कॉल किसी बांग्ला भाषी एजेंट के पास जाएगी।’
तमिल और मलयालम में सेवा जुत्शी के दावे को सही भी ठहराती है। कंपनी के उत्पाद उत्तर भारत की बजाय दक्षिणी हिस्से में अधिक बिकने लगे हैं। भले ही यह बढ़त मामूली ही हो लेकिन बढ़त तो आखिर बढ़त ही होती है। फिलहाल कंपनी की कुल बिक्री की 33 फीसदी दक्षिण में और 31 फीसदी उत्तर भारत में होती है।
कुछ समस्याएं तो कॉल सेंटर स्तर पर सुलझा दी जाती हैं। इसके बाद भी अगर ग्राहक की समस्या का निदान नहीं होता तो कॉल सेंटर से फील्ड इंजीनियर को कॉल किया जाता है। इसके लिए इस बात का ख्याल रखा जाता है कि उस ग्राहक के सबसे करीब कौन सा इंजीनियर है। सैमसंग के पूरे देश में 7,000 इंजीनियर हैं। कंपनी ने एक ऑनलाइन कॉल मैनेजमेंट सिस्टम बनाया हुआ है।
राजदान कहते हैं, ‘अगर कॉल किसी दूरवर्ती छोटे शहर से आती है तो उसके निकटतम सर्विस सेंटर को इत्तिला की जाती है। इसके बाद इंजीनियर तय तारीख को तय समय पर ग्राहक की शिकायत का समाधान करता है।’
दिन में 4 बजे तक आने वाली कॉल पर उसी दिन कार्रवाई की जाती है। चार बजे के बाद की कॉल पर अगले दिन दोपहर तक कार्रवाई होती है। अगर शहर में ही सर्विस सेंटर है तो टर्नअराउंड टाइम चौबीस घंटे ही होता है।
कंपनी के मुताबिक दूसरी कंपनियों में ऐसा नहीं है। कुछ कंपनियों में तो कॉल के तीन बाद उस पर काम होता है। राजदान कहते हैं, ‘ग्राहक की संतुष्टि के लिए हमारे यहां हैप्पी कॉलिंग का भी चलन है। ग्राहकों को फोन करके उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने जो शिकायत की थी उसके निदान से वे कितने संतुष्ट हैं।’
दूसरों ने भी लगाया दांव
सैमसंग की देखादेखी इसकी हमवतन प्रतिद्वंद्वी कंपनी एल जी भी कस्टमर सर्विस के मोर्चे पर मजबूत किलेबंदी करने में जुटी है। इस साल एल जी ने 211 सर्विस शुरू की है। कंपनी का दावा है कि ग्राहक की शिकायत पर उसे दो घंटों के भीतर ही कॉल किया जाएगा और एक दिन के अंदर ही अपॉइंटमेंट भी तय कर दिया जाएगा। एल जी के इस अभियान के बारे में सैमसंग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने हमारे मॉडल को ही अपनाया है।
एल जी इलेक्ट्रॉनिक्स में कस्टमर सपोर्ट के प्रमुख संतोष दास कहते हैं, ‘हमारी नई शुरुआत 211 का मकसद ग्राहकों को उनकी जरूरत के हिसाब से सेवा मुहैया कराना है। हम इस तरह की सेवा की जरूरत समझी जा रही थी और हमने इसके लिए एक सर्वे भी किया था जिसमें भी यह बात सामने आई थी। हमने जिन शहरों में भी इस प्रोजेक्ट को शुरू किया है वहां हमें बढ़िया रेस्पाँस मिला है।’
एल जी की 211 अभी 120 शहरों में उपलब्ध है। इसके लिए 8,000 इंजीनियर काम करते हैं। 1,200 सर्विस सेंटर हैं। 500 कॉल सेंटर हैं जो रोजाना 50,000 कॉल हैंडल करते हैं। दूसरी ओर सैमसंग के 900 सर्विस सेंटर हैं। जिसमें से 34 कंपनी के हैं जबकि 218 फ्रेंचाइजी चला रहे हैं और बाकी बचे हुए सर्विस सेंटर डीलरों के जिम्मे हैं। इस मुकाबले में केवल सैमसंग और एल जी ही नहीं है बल्कि कई और खिलाड़ी भी हैं। फिलिप्स ने भी इस साल अपने सर्विस सेंटरों की कायापलट कर दी है।
फिलिप्स ने इसको ‘कंज्यूमर केयर डिविजन’ का नया नाम भी दिया है। इसके 220 फ्रेंचाइजी सर्विस सेंटर हैं। कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट (कंज्यूमर लाइफस्टाइल) एस. नागराजन का कहना है कि कंपनी ने सभी तरह की शिकायतों और कस्टमर सर्विस नंबरों को जोड़कर एक ही कर दिया है और एक कॉल सेंटर के जरिये उसको मॉनिटर किया जाता है। व्हर्लपूल ने पहले तो खुद ही कस्टमर सेवाएं मुहैया कराई थीं लेकिन अब इसने भी आउटसोर्सिंग की राह अख्तियार कर ली है। इसके 600 कस्टमर केयर सेंटर हैं।
रास्ते अनेक पर मंजिल एक
केपीएमजी में कंज्यूमर मार्केट्स के हेड रमेश शर्मा का मानना है कि जो गुणवत्ता कंपनी की कस्टमर सर्विस दे सकती है, वैसा फ्रेंचाइजी सर्विस सेंटर आमतौर पर नहीं दे सकता। वह कहते हैं, ‘कई कंपनियां एक केंद्रीय कॉल सेंटर के जरिये काम कर रही हैं लेकिन सर्विस के लिए फ्रेंचाइजी मॉडल ही अपनाया जा रहा है।’
दूसरी ओर व्हर्लपूल में कंज्यूमर सर्विस के वाइस प्रेसीडेंट राजीव कपूर कहते हैं, ‘दुनिया भर में फ्रें चाइजी मॉडल कारगर रहा है।’ सैमसंग का सर्विस नेटवर्क थोड़ा अलग है। कंपनी खुद ही अपने फ्रेंचाइजियों का ‘प्रबंध’ करती है। राजदान कहते हैं, ‘हमने अपनी फ्रेंचाइजियों की सहूलियत के लिए एक खास मॉडल बना रखा है। हम उनके इंजीनियरों का खर्च उठाते हैं और यहां तक कि उनके टेलीफोन बिल का भी खर्चा उठाते हैं। यह मुनाफा कमाने वाला मॉडल नहीं है। ‘
मजेदार बात यह है कि अब कंपनियां अपनी सर्विस डिविजन के लिए निवेश कर रही हैं। सैमसंग ने तो अपना खर्च बताने से इनकार कर दिया लेकिन एल जी का कहना है कि कंपनी कस्टमर सर्विस को बेहतर बनाने के लिए 75 करोड़ रुपये की रकम खर्च कर रही है। कुछ भी हो कंपनियों के इस तरह के कदमों से सबसे ज्यादा फायदा तो ग्राहक को ही हो रहा है।