प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की अपनी यात्रा से लौट आए हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान ही क्वाड समूह के नेता पहली बार आपस में प्रत्यक्ष तौर पर मिले और इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित भी किया। अमेरिका की कुछ पिछली यात्राओं के उलट प्रधानमंत्री की यह यात्रा सुर्खियों में नहीं रही और इसे उस लिहाज से तैयार भी नहीं किया गया था। यह एक कार्यकुशल आधिकारिक यात्रा थी जिसके तहत भारत के सहयोग और उसकी बहुपक्षीय महत्त्वाकांक्षाओं के दायरे का विस्तार करना अहम चाह थी। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बहुपक्षीय संस्थानों के प्रभाव और उनकी विश्वसनीयता में सुधार करना होगा तभी वे अपनी प्रासंगिकता बरकरार रख पाएंगे। यह बात ध्यान देने लायक है कि एक भारतीय प्रधानमंत्री क्षतिग्रस्त विश्वसनीयता के लिए मौजूदा संस्थानों का उल्लेख कर रहा है। इसे भारत की लंबे समय से चली आ रही सुरक्षा परिषद में और अधिक अधिकारों की मांग के दोहराव के रूप में भी देखा जा सकता है जिसे अमेरिका का भी समर्थन मिला। लेकिन हकीकत में मोदी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक का विशेष उल्लेख किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन अभी भी इसलिए विवादों में है क्योंकि वह महामारी के शुरुआती दौर में उसका सही ढंग से प्रबंधन नहीं कर सका और कोविड-19 के स्रोत की पड़ताल नहीं कर सका। विश्व बैंक की विश्वसनीयता को तब धक्का पहुंचा जब हाल ही में एक आंतरिक रिपोर्ट में कहा गया कि अतीत में उसकी कारोबारी सुगमता रैकिंग में अनियमितता देखी गई हैं।
मोदी ने विश्वसनीयता को पहुंची इस क्षति को सीधे कोविड-19 और जलवायु संकट जैसे वैश्विक संकटों से निपटने में दिखी निष्प्रभाविता से जोड़ दिया। मोदी ने जो आलोचना की वह उचित है और उनकी यह शिकायत बहुपक्षीयता को लेकर भारत की पुरानी शिकायतों से अलग है। वे शिकायतें पश्चिमी देशों के पास मौजूद विरासती शक्ति के बारे में थीं जिनके कारण विश्वयुद्ध के बाद की व्यवस्था बनी। जबकि ताजा टिप्पणियां चीन की बढ़ती शक्ति के कारण मची संस्थागत उथलपुथल का संदर्भ प्रस्तुत करती हैं। बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार लाने के लिए कई स्तरों पर बदलाव लाने होंगे जिससे पारदर्शिता बढ़े और सत्ता संबंध में खुलापन आए। यदि अमेरिका ऐसा करने के लिए आगे नहीं बढ़ता है तो चीन की बढ़ती शक्ति एक के बाद एक संस्थानों को क्षति पहुंचाती जाएगी। इसके बावजूद अमेरिका बहुपक्षीय सुधारों को लेकर धीमा रहा है। विश्व व्यापार संगठन की अपील व्यवस्था में सुधार में उसकी नाकामी यही दर्शाती है।
क्वाड को लेकर काफी ऊर्जा देखने को मिल रही है। क्वाड देशों के चारों नेताओं ने व्हाइट हाउस में मुलाकात की। इसके अलावा भी उनके बीच अनेक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकें आयोजित हुईं। इससे पता चलता है कि इन देशों के बीच सहयोग व्यापक और गहरा हो रहा है। इस बैठक में भी वह रुझान बरकरार रहा जो मार्च 2021 में क्वाड की आभासी बैठक में देखने को मिला था। सदस्य देशों के बीच महामारी से जुड़ी राहत, जलवायु परिवर्तन तथा अन्य अहम अंतरराष्ट्रीय विषयों पर चर्चा हुई। अन्य क्षेत्रों में भी काफी प्रगति हुई। उदाहरण के लिए तकनीकी विकास को रेखांकित करने वाले साझा सिद्धांत जारी करना, अपनाना और उनका संचालन। अनुमान है कि ये सिद्धांत नई पीढ़ी के संचार ढांचे के चयन और प्रबंधन का संचालन करेंगे। यह अच्छी प्रगति है और इससे यह संभावना उत्पन्न होती है कि क्वाड उस क्षेत्र को लेकर ज्यादा मजबूत, खुला और मुक्त विकास पथ मुहैया कराने के दावे को मजबूत करेगा जहां चीन अपने निवेश और व्यापार की बदौलत दबदबा कायम कर रहा है। आशा की जानी चाहिए कि सैद्धांतिक सहयोग की यह नयी भावना जलवायु परिवर्तन, बुनियादी वित्त और संस्थागत सुधार में भी बरकरार रहे।
