पिछले हफ्ते जून के व्यापारिक आंकड़े जारी हुए थे। इसमें साफ तौर पर दिखता है कि निर्यात सेक्टर काफी अच्छे तरीके से काम कर रहा है।
साथ ही, इसमें यह साफ दिखता है कि मुल्क को हर महीने करीब 10 अरब डॉलर का घाटा उठाना पड़ रहा है। इसकी आधी भरपाई तो सेवाओं के कारोबार से होने वाले मुनाफे और परदेस में रहने वाले हिंदुस्तानियों द्वारा अपने घरों में भेजे गए पैसे से हो जाती है।
वहीं, बाकी की भरपाई पूंजी प्रवाह के रास्ते से होती है। ऊपर से हमारे पास 300 अरब डॉलर का भारी भरकम विदेशी मुद्रा भंडार तो है ही है, जो पूरे एक साल के आयात के लिए काफी है। वैसे, इन आंकड़ों से अभी डरने की जरूरत तो है नहीं। फिर भी नकारात्मक रुख को देखते हुए हालत पर नजर रखने का फायदा होगा। अब मिसाल के लिए कारोबारी घाटे को ही ले लीजिए। यह 6 या 7 नहीं, बल्कि पूरे 40 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। इसकी बड़ी वजह है तेल की ऊंची कीमतें।
अप्रैल-जून की तिमाही में अपने मुल्क से कुल मिलाकर 42.8 अरब डॉलर का निर्यात हुआ। पिछले साल के मुकाबले देखें तो इसमें इस साल 22.3 फीसदी का भारी इजाफा हुआ है। जून में इसमें विकास की दर तो खासी तेज रही है, जिससे आगे भी तेजी के संकेत मिल रहे हैं। यह देसी निर्यातकों के लिए जबरदस्त खबर है, खास तौर पर ऐसे वक्त में जब दुनिया भर के निर्यातक खून के आंसू रो रहे हैं। हालांकि, इसका सेहरा रुपये के अवमूल्यन के सिर नहीं जाता है। दुनिया भर की मुद्राओं में भी पिछले कुछ हफ्तों के दौरान खासी गिरावट आई है।
साथ ही, घरेलू बाजार में भी महंगाई की वजह से रुपये के अवमूल्यन का ज्यादा फायदा निर्यातकों को होता दिखाई नहीं दिया। हालांकि, यह कहना काफी मुश्किल है कि निर्यात में इतना जबरदस्त प्रदर्शन आगे भी बरकरार रहेगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में साल के अंत तक आधिकारिक रूप से मंदी के आने की आशंका बाजार में तैर रही है। खैर जो भी हो, लेकिन 2008-09 तक 200 अरब डॉलर के लक्ष्य को पाना काफी टेढ़ी खीर नजर आती है।
इस अवधि के दौरान आयात, निर्यात के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ा है। पिछले साल की तुलना में इस साल पहली तिमाही में आयात में 29.7 फीसदी का इजाफा आया है। मतलब इसमें कुल-मिलाकर 73.2 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। इसमें से तो एक तिहाई हिस्सा यानी 25.5 अरब डॉलर तो कच्चे तेल का ही है। इस दौरान तेल के आयात में पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में पूरे 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। यहां कमजोर होते रुपये ने कच्चे तेल के आयात बिल को बढ़ाने में खासा योगदान दिया।
लंबे समय तक पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में इजाफा नहीं करने की सरकारी नीति की वजह से कच्चे तेल का इस्तेमाल अपने मुल्क में बढ़ता ही गया। इस वजह से यह बिल भी तेजी से ऊपर चढ़ा। इस दौरान अपने मुल्क का कारोबारी घाटा 30 अरब डॉलर के निशान को भी पास गया। मतलब पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले इस दौरान कारोबारी घाटा में पूरे 42 फीसदी का घाटा हुआ। इस हिसाब से तो इस साल कारोबारी घाटा जीडीपी के 10 फीसदी से भी ज्यादा रहा। जैसे-जैसे निर्यात कमजोर पड़ता जाएगा और कारोबारी घाटा बढ़ता जाएगा, इसका असर अर्थव्यवस्था पर साफ तौर पर दिखेगा।